हमीरपुर: बुंदेलखंड के किसानों की बदहाली दूर करने के लिए बुंदेलखंड पैकेज की चिंता में डूबे रहने वालों को किसानों की जरा भी फिक्र नहीं है. ऐसा हम नहीं कह रहे, पूर्ववर्ती सपा शासनकाल में बुंदेलखंड पैकेज से जिले में करोड़ों की धनराशि खर्च कर बनाई गई मंडियों की बदहाली इसकी गवाही दे रही हैं.
किसानों के लिए जिले में बनाई गई 24 मंडियों में से ज्यादातर मंडियां आज बबूल के जंगल में तब्दील होने को हैं. वहीं दूसरी तरफ किसान खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है, जो धनराशि तत्कालीन यूपी सरकार ने मंडियां बनवाने में खर्च की अगर वहीं धनराशि सिंचाई व्यवस्था को मजबूत करने पर खर्च की गई होती, तो आज किसानों की बदहाली काफी हद तक दूर हो गई होती.
मंडियां बनाने के लिए मिले थे डेढ़ सौ करोड़ रुपये
साल 2012 में तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा अखिलेश सरकार को बुंदेलखंड पैकेज के तहत, जो धनराशि उपलब्ध कराई गई थी. उस धनराशि में से लगभग डेढ़ सौ करोड़ का प्रयोग अखिलेश सरकार ने किसानों की बदहाली दूर करने के नाम पर मंडियां बनाने में खपा दीं. बुंदेलखंड पैकेज के तहत जिले में 23 उपमंडियां (ग्रामीण अवस्थापना केंद्र) बनाए गए, जिनमें से प्रत्येक की लागत लगभग दो करोड़ है.
इसके अलावा बिंवार थाना क्षेत्र के धनपुरा में लगभग 100 एकड़ जमीन पर एक आलीशान विशिष्ट मंडी बनाई गई. इसके निर्माण में लगभग 100 करोड़ रुपये सरकार द्वारा खर्च किए गए. इस आलीशान मंडी में व्यापारियों और पल्लेदारों के ठहरने के लिए तमाम सारी सुविधाओं का ख्याल भी रखा गया.
आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस बनाए गए कमरे
व्यापारियों के ठहरने के लिए आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस कमरे बनाए गए. वहीं बैंक एवं पुलिस चौकी की स्थापना की भी पर्याप्त व्यवस्था की गई, लेकिन इन सबके बावजूद बिना किसी कार्य योजना के बनाई गई यह मंडियां जंगल में तब्दील होने लगी हैं. जिले में बनाई गई ज्यादातर मंडियों में क्रय-विक्रय का कार्य अभी तक नहीं शुरू हो पाया है.
मंडियों के संचालन के लिए किए गए तमाम प्रयास
राज्य उत्पादन एवं मंडी परिषद ने इन मंडियों का निर्माण करने के बाद जिले की मंडी समितियों को साल 2017 में सौंप दिया था, जिसके बाद से जिला प्रशासन ने इन मंडियों के संचालन के तमाम प्रयास किए. लेकिन यह मंडिया चालू नहीं हो सकीं. जिले के आला अधिकारी वीरान पड़ी इन मंडियों को लेकर यह तो स्वीकारते हैं कि मंडियों का निर्माण बिना किसी कार्य योजना के किया गया. लेकिन वह कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार कर देते हैं.
वहीं जानकार बताते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलने वाले बुंदेलखंड क्षेत्र के किसान अपना पेट भरने भर को पर्याप्त अन्न बड़ी मुश्किल से पैदा कर पाते हैं ऐसे में वे मंडियों में क्या बेचने जाएंगे.
ट्यूबवेल लगवाए होते तो बदल जाती किसानों की तकदीर
वीरान पड़ी मंडियों को देखकर पौंथिया के किसान बद्रीनाथ बताते हैं कि सरकार ने इन मंडियों को बनवाने में जितनी धनराशि खर्च की है. अगर इतनी ही धनराशि सरकार किसानों के खेतों में ट्यूबवेल लगाने पर खर्च कर देती तो इससे किसानों की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल सकती थी. वे बताते हैं कि बेमतलब साबित हो रही इन मंडियों जंगल का रूप ले लिया है. इसके अलावा अराजक तत्वों के लिए भी ये सुरक्षित अड्डा बन गई हैं.
इतना ही नहीं पिछले कई वर्षों से वीरान पड़ी इन मंडियों की सुरक्षा में दिन रात पीआरडी जवान भी तैनात किए गए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि किसानों के फायदे के लिए बनाई गई यह मंडियां किसानों को तो फायदा नहीं पहुंचा पा रही हैं. उल्टा सरकार पर बोझ जरूर बन गई हैं.
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