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हमीरपुर: जान हथेली पर रखकर दो जून की रोटी जुटाने की जद्दोजहद

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Published : Jan 3, 2020, 11:59 AM IST

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में गरीब तबके के लोग दो वक्त की रोटी के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाए बैठे हैं. युवा बेतवा नदी से मौरंग निकालकर आस-पास के बाजारों में बेचकर अपना पेट पाल रहे हैं.

जिदंगी दाव पर लगाकर मौरंग बेच रहे युवक
जिदंगी दाव पर लगाकर मौरंग बेच रहे युवक

हमीरपुर: जिले में आपदाओं की मार झेलने वाले युवा रोजगार न मिलने के चलते वर्षों से पलायन को मजबूर हैं. जिन युवाओं ने पलायन नहीं किया वह दो जून की रोटी जुटाने की जुगत में जिंदगी दांव पर लगाने को मजबूर हैं.

खूनी हाईवे के नाम से बदनाम एनएच 34 पर जान हथेली पर रखकर युवा बेतवा नदी से मौरंग निकालकर आस-पास के बाजारों में बेचते हैं. हाईवे पर चलने वाले बेलगाम ट्रकों की चपेट में आकर कई युवा अपनी जिंदगी तक गंवा चुके हैं, लेकिन पेट की खातिर यह युवा तमाम खतरे मोल लेकर मौरंग ढोने को मजबूर हैं.

जिदंगी दाव पर लगाकर मौरंग बेच रहे युवक
गरीबी में हो रहा बुरा हाल
  • युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने कई प्रयास किए हैं.
  • सरकार के प्रयास सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए.
  • उद्योग स्थापित करने के लिए लखनऊ में आयोजित इन्वेस्टर मीट में कई उद्योगपतियों ने उद्योग लगाने के लिए एमओयू साइन किए थे.
  • बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण उनके प्रोजेक्ट परवान नहीं चढ़ सके.
  • सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने कारण खेती भी घाटे का सौदा साबित होने लगी.
  • गरीब तबके के लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने लगा है.

नदी से मौरंग निकालकर पालते हैं पेट

  • दो वक्त की रोटी के लिए युवा बेतवा नदी से मौरंग निकालकर उसे बेचकर अपना पेट पाल रहे हैं.
  • युवक का कहना है कि मौरंग निकालकर रिक्शे के सहारे उसे भरुआ सुमेरपुर बेचने के लिए जाते हैं.
  • हाईवे पर भारी ट्रैफिक होने के चलते उनकी जान पर हर वक्त खतरा बना रहता है.
  • परिवार का भरण पोषण करने के लिए वे मजबूर होकर यह खतरा उठाते हैं.

इसे भी पढ़ें:- 40 जिलों की पैदल यात्रा कर यातायात नियमों के प्रति किया गया जागरूक

हमीरपुर: जिले में आपदाओं की मार झेलने वाले युवा रोजगार न मिलने के चलते वर्षों से पलायन को मजबूर हैं. जिन युवाओं ने पलायन नहीं किया वह दो जून की रोटी जुटाने की जुगत में जिंदगी दांव पर लगाने को मजबूर हैं.

खूनी हाईवे के नाम से बदनाम एनएच 34 पर जान हथेली पर रखकर युवा बेतवा नदी से मौरंग निकालकर आस-पास के बाजारों में बेचते हैं. हाईवे पर चलने वाले बेलगाम ट्रकों की चपेट में आकर कई युवा अपनी जिंदगी तक गंवा चुके हैं, लेकिन पेट की खातिर यह युवा तमाम खतरे मोल लेकर मौरंग ढोने को मजबूर हैं.

जिदंगी दाव पर लगाकर मौरंग बेच रहे युवक
गरीबी में हो रहा बुरा हाल
  • युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने कई प्रयास किए हैं.
  • सरकार के प्रयास सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए.
  • उद्योग स्थापित करने के लिए लखनऊ में आयोजित इन्वेस्टर मीट में कई उद्योगपतियों ने उद्योग लगाने के लिए एमओयू साइन किए थे.
  • बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण उनके प्रोजेक्ट परवान नहीं चढ़ सके.
  • सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने कारण खेती भी घाटे का सौदा साबित होने लगी.
  • गरीब तबके के लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने लगा है.

नदी से मौरंग निकालकर पालते हैं पेट

  • दो वक्त की रोटी के लिए युवा बेतवा नदी से मौरंग निकालकर उसे बेचकर अपना पेट पाल रहे हैं.
  • युवक का कहना है कि मौरंग निकालकर रिक्शे के सहारे उसे भरुआ सुमेरपुर बेचने के लिए जाते हैं.
  • हाईवे पर भारी ट्रैफिक होने के चलते उनकी जान पर हर वक्त खतरा बना रहता है.
  • परिवार का भरण पोषण करने के लिए वे मजबूर होकर यह खतरा उठाते हैं.

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Intro:जान हथेली पर रखकर दो जून की रोटी जुटाने की जद्दोजहद

हमीरपुर। दशकों से प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलने वाले बुंदेलखंड के जिले हमीरपुर के युवा रोजगार ना होने के चलते वर्षों से पलायन को मजबूर होते चले आए हैं। वहीं जिन युवाओं ने पलायन नहीं किया वह दो जून की रोटी जुटाने की जुगत में जिंदगी दांव पर लगाने को मजबूर हैं। खूनी हाईवे के नाम से बदनाम एनएच 34 पर जान हथेली पर रखकर यह युवा बेतवा नदी से मौरंग निकालकर आसपास के बाजारों में बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। हाईवे पर चलने वाले बेलगाम ट्रकों की चपेट में आकर कई युवा अपनी जिंदगी तक गंवा चुके हैं, लेकिन पापी पेट की खातिर यह युवा तमाम खतरे मोल लेकर मौरंग ढोने को मजबूर हैं।


Body:वैसे तो युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने कई प्रयास किए लेकिन सरकार के प्रयास सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए। उद्योग स्थापित करने के लिए लखनऊ में आयोजित इन्वेस्टर मीट में कई उद्योगपतियों ने उद्योग लगाने के लिए एमओयू तो साइन किए लेकिन बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण उनके प्रोजेक्ट परवान नहीं चढ़ सके। वहीं दूसरी ओर सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने कारण खेती भी घाटे का सौदा साबित होने लगी। जिससे गरीब तबके के लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने लगा। जिससे निजात पाने के लिए बेतवा नदी से निकलने वाली मौरंग ही उनके जीवन का सहारा बन गई है।


Conclusion:नदी से मौरंग निकाल कर अपना पेट पालने वाले शंकर बताते हैं कि वे भारी मशक्कत के बाद बेतवा नदी से मौरंग निकालकर रिक्शे के सहारे उसे भरुआ सुमेरपुर बेचने के लिए जाते हैं। वे बताते हैं कि हाईवे पर भारी ट्रैफिक होने के चलते उनकी जान पर हर वक्त खतरा बना रहता है लेकिन अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए वे मजबूरी में यह खतरा उठाते हैं।

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नोट : पहली बाइट शंकर की व दूसरी बाइट रमेश की है।
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