गोरखपुर: देश की स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में जिले के एक वीर योद्धा को हमेशा याद किया जाएगा. इस वीर का नाम शहीद बंधु सिंह है, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़कर अंग्रेजी सैनिकों के खात्मे का एक बड़ा आंदोलन छेड़ दिया था. जिनकी बहादुरी और चालाकी से तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत हिल गई थी.
बंधू सिंह की वीर गाथा
बंधु सिंह का जन्म 1 मई 1833 को डुमरी रियासत के बाबू शिव प्रसाद सिंह के जमींदार परिवार में हुआ था, जो आज चौरी-चौरा क्षेत्र का हिस्सा है. बंधू सिंह तरकुलहा देवी के भक्त थे. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूर्वांचल में क्रांति के अग्रदूत रहे बंधू सिंह की वीरता की गाथा आज भी हर किसी की जुबान पर है. यही वजह है कि देश में जब स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारियां चल रही हैं तो राष्ट्रहित के लिए अपना सर्वस्व न्यौच्छावर कर देने वाले ऐसे क्रांतिकारी को याद किए बिना कैसे रहा जा सकता है.
24 वर्ष की आयु में अंग्रेजों से लिया लोहा
भारतीय इतिहास कांग्रेस के कार्यकारिणी सदस्य और गोरखपुर विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर एसएनआर रिजवी कहते हैं कि बंधू सिंह बहुत बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे. दुर्भाग्य से उनका योगदान दर्ज नहीं किया जा सका, लेकिन इस पर काम करने की आवश्यकता है. 1857 में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ भड़के जनविद्रोह की अगुवाई पूर्वांचल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह ने की थी उस समय वह 24 वर्ष के थे. जहां अंग्रेज अपने ऐशो आराम में व्यस्त थे तो वहीं बंधू सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर बिहार से आ रहे सरकारी खजाने को लूटकर अकाल पीड़ितों में बांट रहे थे. उनके एक हमले में उस समय गोरखपुर के कलेक्टर भी मारे गए थे.
घाघरा और गंडक नदी पर किया कब्जा
बंधू सिंह ने घाघरा और गंडक नदियों पर कब्जा कर अंग्रेजों की सप्लाई लाइन तोड़ दी थी. तब अंग्रेजों ने नेपाल के राजा से मदद मांगी थी तब नेपाल के राजा ने अपने प्रधान सेनापति पहलवान सिंह को फौज के साथ भेजा था, लेकिन पहलवान सिंह लड़ाई में मारा गया. जिसके बाद बंधू सिंह को जंगलों में शरण लेनी पड़ी और अंग्रेजों ने डुमरी रियासत पर तीन तरफ से हमला कर दिया. मोतीराम के पूरब दुबियारी पुल के पास बंधू सिंह के भाई करिया सिंह, हम्मन सिंह, तेजई सिंह और फतेह सिंह ने अंग्रेजों से कड़ा मुकाबला किया, लेकिन अंत में वीर गति को प्राप्त हुए. अंग्रेजों ने बंधू सिंह की हवेली को आग के हवाले कर दिया और उनकी रियासत को तोहफे के तौर पर मुखबिरों में बांट दिया.
कई अंग्रेज सिपाहियों को उतारा मौत के घाट
बंधू सिंह जंगल में रहते और जंगल की तरफ आने वाले अंग्रेज सिपाहियों को मौत के घाट उतार देते थे. तरकुलहा देवी मंदिर के पास तरकुल के पेड़ के नीचे मिट्टी की पिंडी बनाकर देवी की वह उपासना भी करते थे. यहीं पर वे मां के चरणों में अंग्रेजों के सिर चढ़ाते और अंग्रेजों से लड़ने की शक्ति मांगते थे. इससे घबराकर अंग्रेजों ने अपने मुखबिरों के तंत्र को सक्रिय कर दिया और अंतत: बंधू सिंह पकड़े गए. 12 अगस्त 1858 को अलीनगर चौराहे पर स्थित बरगद के पेड़ पर उन्हें सरेआम फांसी दे दी गई. जनश्रुतियों के मुताबिक बंधू सिंह के गले का फंदा 6 बार टूटा, लेकिन सातवीं बार जब फंदा उनके गले में डाला गया तो उन्होंने अपनी आराध्य तरकुलहा देवी से प्रार्थना की वह उन्हें मुक्त करें. इसके बाद अंग्रेज उन्हें फांसी देने में सफल रहे.
बंधू सिंह पर जारी किया गया डाक टिकट
बंधू सिंह का ताल्लुक जिस डुमरी रियासत से है वहां के गांव वालों को उनके नाम पर फक्र है. इन पर यूपी की योगी सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया है. प्रदेश सरकार ने तरकुलहा देवी स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय भी लिया है. वहां शहीद स्मारक, विश्रामालय, धर्मशाला, तालाब, मंदिर आदि के सौन्दर्यीकरण के साथ मंदिर के मुख्य मार्ग का नामकरण बंधू सिंह मार्ग के रूप में किया गया है.