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गोरखपुर में मनाई गई शनि जयंती - gorakhpur news

गोरखपुर में शुक्रवार को शनि जयंति मनाई गई. हिंदी मास के ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को इनका जन्म हुआ था. शनि भगवान सूर्य और छाया की सन्तान हैं.

शनि जयंति पर विशेष
शनि जयंति पर विशेष
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Published : May 22, 2020, 3:58 PM IST

गोरखपुर : संकट और समाधान के देवता माने जाने वाले भगवान शनि की आज यानि शुक्रवार को जयंती है. हिंदी मास के ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को इनका जन्म हुआ था. शनि भगवान सूर्य और छाया की सन्तान हैं. सूर्य के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनि प्रारम्भ से ही विपरीत स्वभाव के थे.

संकट और समाधान के देवता शनि
कहते हैं कि जब शनि पैदा हुए, तो उनकी दृष्टि अपने पिता सूर्य पर पड़ते ही उन्हे कुष्ठ रोग हो गया था. धीरे-धीरे जब शनि बड़े होने लगे, तो उनका अपने पिता से भी मतभेद गहरा होने लगा. सूर्य सदैव अपने पुत्र के प्रति चिन्तित रहते थे. वह चाहते थे कि शनि अच्छा कार्य करें और एक आदर्श स्थापित करें, लेकिन उन्हें निरंतर ही निराश होना पड़ा. सन्तानों के योग्य होने पर सूर्य ने प्रत्येक सन्तान के लिए पृथक लोक की व्यवस्था की, किन्तु शनि अपने लोक से सन्तुष्ट नहीं हुए.

शनि ने बनाई समस्त लोकों पर आक्रमण की योजना
जिले के जाने-माने ज्योतिषी शरद चंद मिश्र के अनुसार शनि समस्त लोकों पर आक्रमण करने की योजना बना डाली. सूर्य को शनि की इस भावना से अत्यन्त कष्ट हुआ. अब तो शनि के आतंकों की पराकाष्ठा ही हो चुकी थी. अन्ततः सूर्य ने भगवान शिव से निवेदन किया कि वे ही शनि को समझाएं. भगवान शिव ने शनि को चेतावनी दी, परन्तु शनि ने भगवान शिव की भी उपेक्षा कर दी. उपेक्षा से भगवान शिव अत्यन्त क्रुद्ध हुए और उन्होंने शनि को दण्डित करने का निश्चय किया.

शिव के साथ हुआ शनि का युद्ध
घनघोर युद्ध के पश्चात भगवान शिव के प्रहार से शनि अचेत हो गए. पुत्र की स्थिति को देखकर सूर्य का पुत्र मोह जाग्रत हो गया. उन्होंने भगवान शिव से शनि को जीवन दान देने की प्रार्थना की. शिव जी ने सूर्य की प्रार्थना स्वीकार कर शनि को छोड़ दिया. इस घटना से शनि ने भगवान शिव की समर्थता स्वीकार की. शनि ने यह भी इच्छा अभिव्यक्त की कि वे अपनी समस्त सेवाएं भगवान शिव को समर्पित करना चाहते हैं. शनि के रणकौशल से अभिभूत भगवान शंकर ने शनि को अपना सेवक बना लिया और उसे अपना दण्डाधिकारी नियुक्त किया.

शनि के कारण ही हुआ लंकाधिपति रावण का संहार
शनि यह अधिकार प्राप्त होने के पश्चात एक सच्चे न्यायाधीश की भांति जीवों को दण्ड देकर भगवान शिव के कार्य में सहायता करने लगे. अब शनि किसी को व्यर्थ परेशान नही करते हैं. कहा जाता है कि शनि के कारण ही पार्वती पुत्र भगवान गणेश का शिरच्छेदन हुआ. भगवान राम को वनवास हुआ और लंकाधिपति रावण का संहार हुआ. शनि के कोप कारण ही विक्रमादित्य जैसे राजा को कई कष्टों का सामना करना पड़ा. त्रेता युग में राजा हरिश्चंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी.

राजा नल और दमयन्ती को जीवन में कई प्रकार के कष्टों का सामना शनि के कुदृष्टि के कारण करना पड़ा. ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि का जन्म होने के कारण इस तिथि को शनि जयन्ती मनाई जाती है. इस दिन शनिवार के निमित्त जो भी पूजा, जप, तप आदि उपाय किए जाते हैं, उनसे शनि देवता शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनके दुःख तथा कष्टों में कमी करते हुए उसे श्रेष्ठ जीवन- यापन करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं.

गोरखपुर : संकट और समाधान के देवता माने जाने वाले भगवान शनि की आज यानि शुक्रवार को जयंती है. हिंदी मास के ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को इनका जन्म हुआ था. शनि भगवान सूर्य और छाया की सन्तान हैं. सूर्य के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनि प्रारम्भ से ही विपरीत स्वभाव के थे.

संकट और समाधान के देवता शनि
कहते हैं कि जब शनि पैदा हुए, तो उनकी दृष्टि अपने पिता सूर्य पर पड़ते ही उन्हे कुष्ठ रोग हो गया था. धीरे-धीरे जब शनि बड़े होने लगे, तो उनका अपने पिता से भी मतभेद गहरा होने लगा. सूर्य सदैव अपने पुत्र के प्रति चिन्तित रहते थे. वह चाहते थे कि शनि अच्छा कार्य करें और एक आदर्श स्थापित करें, लेकिन उन्हें निरंतर ही निराश होना पड़ा. सन्तानों के योग्य होने पर सूर्य ने प्रत्येक सन्तान के लिए पृथक लोक की व्यवस्था की, किन्तु शनि अपने लोक से सन्तुष्ट नहीं हुए.

शनि ने बनाई समस्त लोकों पर आक्रमण की योजना
जिले के जाने-माने ज्योतिषी शरद चंद मिश्र के अनुसार शनि समस्त लोकों पर आक्रमण करने की योजना बना डाली. सूर्य को शनि की इस भावना से अत्यन्त कष्ट हुआ. अब तो शनि के आतंकों की पराकाष्ठा ही हो चुकी थी. अन्ततः सूर्य ने भगवान शिव से निवेदन किया कि वे ही शनि को समझाएं. भगवान शिव ने शनि को चेतावनी दी, परन्तु शनि ने भगवान शिव की भी उपेक्षा कर दी. उपेक्षा से भगवान शिव अत्यन्त क्रुद्ध हुए और उन्होंने शनि को दण्डित करने का निश्चय किया.

शिव के साथ हुआ शनि का युद्ध
घनघोर युद्ध के पश्चात भगवान शिव के प्रहार से शनि अचेत हो गए. पुत्र की स्थिति को देखकर सूर्य का पुत्र मोह जाग्रत हो गया. उन्होंने भगवान शिव से शनि को जीवन दान देने की प्रार्थना की. शिव जी ने सूर्य की प्रार्थना स्वीकार कर शनि को छोड़ दिया. इस घटना से शनि ने भगवान शिव की समर्थता स्वीकार की. शनि ने यह भी इच्छा अभिव्यक्त की कि वे अपनी समस्त सेवाएं भगवान शिव को समर्पित करना चाहते हैं. शनि के रणकौशल से अभिभूत भगवान शंकर ने शनि को अपना सेवक बना लिया और उसे अपना दण्डाधिकारी नियुक्त किया.

शनि के कारण ही हुआ लंकाधिपति रावण का संहार
शनि यह अधिकार प्राप्त होने के पश्चात एक सच्चे न्यायाधीश की भांति जीवों को दण्ड देकर भगवान शिव के कार्य में सहायता करने लगे. अब शनि किसी को व्यर्थ परेशान नही करते हैं. कहा जाता है कि शनि के कारण ही पार्वती पुत्र भगवान गणेश का शिरच्छेदन हुआ. भगवान राम को वनवास हुआ और लंकाधिपति रावण का संहार हुआ. शनि के कोप कारण ही विक्रमादित्य जैसे राजा को कई कष्टों का सामना करना पड़ा. त्रेता युग में राजा हरिश्चंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी.

राजा नल और दमयन्ती को जीवन में कई प्रकार के कष्टों का सामना शनि के कुदृष्टि के कारण करना पड़ा. ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि का जन्म होने के कारण इस तिथि को शनि जयन्ती मनाई जाती है. इस दिन शनिवार के निमित्त जो भी पूजा, जप, तप आदि उपाय किए जाते हैं, उनसे शनि देवता शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनके दुःख तथा कष्टों में कमी करते हुए उसे श्रेष्ठ जीवन- यापन करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं.

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