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आपदा में अवसर तलाश रहे फुटकर विक्रेता, महंगाई इतनी कि सिर चकरा जाए

कोरोनाकाल में महंगाई अपनी चरम सीमा पर है. थोक मंडियों से आपको थोड़ी राहत जरूर मिल सकती है, लेकिन जैसे ही आप फुटकर मंडियों का रुख करेंगे तो आप ठगी का शिकार होने लगेंगे.

कोरोनाकाल में महंगाई की मार
कोरोनाकाल में महंगाई की मार
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Published : May 28, 2021, 4:46 PM IST

गोरखपुर: कोरोनाकाल में महंगाई अपने चरम सीमा पर है. Wholesale markets से आपको थोड़ी राहत जरुर मिल सकती है, लेकिन जैसे ही आप फुटकर मंडियों का रुख करेंगे तो आप ठगी का शिकार होने लगेंगे. दरअसल, फुटकर व्यापारी प्रिंट मूल्य के हिसाब से इस दौर में चीजों को बेच रहे हैं. कुछ नियंत्रित चीजें ही इस दौरान बिक्री में शामिल हैं, जो लोगों के जीवन में हर दिन प्रयोग होने वाली हैं और इसी में लोग ठगे जा रहे हैं. सबसे ज्यादा महंगाई की मार खाद्य तेलों पर दिखाई दे रही है. चाहे वह सरसों का तेल हो या रिफाइंड. महंगाई के इस दौर में अगर कुछ सबसे सस्ता मिल रहा है तो वह हैं हरी सब्जियां.

कोरोनाकाल में महंगाई की मार
महंगाई पर नियंत्रण का नहीं दिख रहा कोई उपाय पान गुटखा के शौकीन लोग चोरी-छिपे बंद दुकानों से कुछ ओवररेटिंग के साथ अपना काम पूरा कर रहे हैं. यही हाल ऑटो पार्ट्स को लेकर है. सभी शोरूम बंद चल रहे हैं, इसलिए पार्ट्स की न तो डिमांड हो रही है न ही सप्लाई. गोरखपुर में हीरो मोटर शोरूम के मालिक नितिन मातनहेलिया से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा कि ऑटो पार्ट्स के दाम में फिलहाल किसी भी तरह की कोई महगांई नहीं हुई है. लॉकडाउन खुलने के बाद ही पार्ट्स की डिमांड होगी तभी सप्लाई के अनुरूप दाम को बताया जा सकेगा. अगर वास्तविक रूप से देखा जाए तो असली महंगाई खाने-पीने के ही सामानों में ही है. दाल, सरसों का तेल, आलू और प्याज महंगा मिल रहा है. इस बीच प्रशासन की नजर भी कोरोना महामारी और उसकी जरूरतों की सप्लाई पर ही बनी हुई है. इसमें ऑक्सीजन और दवाएं शामिल हैं. फुटकर में बढ़ी महंगाई पर नियंत्रण का भी कोई उपाय शहर में नहीं हो पाया है. जो कार्रवाई हुई वह ऑक्सीजन और दवा की काला बाजारियों के खिलाफ हुई है.

इसे भी पढ़ें:दो दिवसीय दौरे पर गोरखपुर पहुंचे सीएम योगी, एम्स का किया निरीक्षण

खाद्य एवं औषधि प्रशासन के प्रभारी गुंजन कुमार परिवार सहित कोरोना पॉजिटिव हैं. वहीं ईटीवी ने बढ़ती महंगाई को लेकर व्यापारी नेताओं और आम लोगों से बातचीत की. लोगों ने मिलीजुली प्रतिक्रियाएं दी. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि जब लोग अपनी जान बचाने के लिए जुटे हुए हैं और उन्हें जरूरत का सामान देने वाले अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं तो लोगों को थोड़ी बहुत महंगाई की परवाह नहीं करना चाहिए. व्यापारी नेताओं का मानना है कि सरकार को महंगाई पर नियंत्रण के लिए कदम उठाना चाहिए. तेल और दलहन जैसी चीजों के आयात का जिम्मा सिर्फ एक दो बड़े उद्योगपतियों, व्यापारियों को न देकर इसे और लोगों में भी बांटना चाहिए, जिससे महंगाई दर पर नियंत्रण स्थापित होगा. चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष ने तो पीएम मोदी को ट्वीट कर महंगाई पर नियंत्रण की मांग की है.


इनके चीजों के दाम बढ़े

सरसों के तेल में ब्रांडेड कंपनियों की बात करें तो बैल कोल्हू तेल का थोक मूल्य 170 रुपये लीटर है, जो फुटकर में 180 से 185 रुपये लीटर बिक रहा है. यह मूल्य कोरोना से पहले 140 से 145 रुपये था. वहीं फॉर्चून जैसा ब्रांड 165 रुपये लीटर में थोक में बिक रहा है. सरसों का तेल निकालने वाली ऑयल मिलों पर काले और पीले सरसों के हिसाब से मूल्य लगभग 200 रुपये लीटर तक पहुंच गया है. कोरोना की महामारी के शुरुआत में अप्रैल महीने में यह 160 रुपये लीटर बिक रहा था. चीनी थोक में 36 रुपये किलो बिक रही है. खुले बाजार में इसकी कीमत 40 से 42 रुपये है. आटे का थोक बाजार नरम हुआ है. थोक में 18 रुपये किलो बिकने वाला आटा फुटकर में 25 रुपये किलो तक बिक रहा है. मैदे का खुदरा मूल्य भी थोक मूल्य से डेढ़ गुना है. अरहर की दाल कोरोना से पहले 75 रुपये किलो तक थी, लेकिन आज यह 95 से 110 रुपये किलो तक बिक रही है. सब्जियों में आलू 20 से 22 रुपये किलो तो प्याज 30 रुपये किलो तक पहुंच गया है. मंडी में प्याज 18 से 20 रुपये किलो है. फलों में महंगाई दिख रही है. संतरा का मिलना मुश्किल और मिला भी तो 150 रुपये किलो जो डेढ़ माह पहले 50-60 रुपये था. सेब 250 से 150 रुपये किलो तक का है. अंगूर 70 रुपये किलो से बढ़कर 150 रुपये किलो बिक रहा है. विटामिन सी का अद्भुत स्रोत वाली कीवी अप्रैल में 15 रुपये पीस बिक रही थी जो आज 50 रुपये में बिक रही है.

गोरखपुर: कोरोनाकाल में महंगाई अपने चरम सीमा पर है. Wholesale markets से आपको थोड़ी राहत जरुर मिल सकती है, लेकिन जैसे ही आप फुटकर मंडियों का रुख करेंगे तो आप ठगी का शिकार होने लगेंगे. दरअसल, फुटकर व्यापारी प्रिंट मूल्य के हिसाब से इस दौर में चीजों को बेच रहे हैं. कुछ नियंत्रित चीजें ही इस दौरान बिक्री में शामिल हैं, जो लोगों के जीवन में हर दिन प्रयोग होने वाली हैं और इसी में लोग ठगे जा रहे हैं. सबसे ज्यादा महंगाई की मार खाद्य तेलों पर दिखाई दे रही है. चाहे वह सरसों का तेल हो या रिफाइंड. महंगाई के इस दौर में अगर कुछ सबसे सस्ता मिल रहा है तो वह हैं हरी सब्जियां.

कोरोनाकाल में महंगाई की मार
महंगाई पर नियंत्रण का नहीं दिख रहा कोई उपाय पान गुटखा के शौकीन लोग चोरी-छिपे बंद दुकानों से कुछ ओवररेटिंग के साथ अपना काम पूरा कर रहे हैं. यही हाल ऑटो पार्ट्स को लेकर है. सभी शोरूम बंद चल रहे हैं, इसलिए पार्ट्स की न तो डिमांड हो रही है न ही सप्लाई. गोरखपुर में हीरो मोटर शोरूम के मालिक नितिन मातनहेलिया से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा कि ऑटो पार्ट्स के दाम में फिलहाल किसी भी तरह की कोई महगांई नहीं हुई है. लॉकडाउन खुलने के बाद ही पार्ट्स की डिमांड होगी तभी सप्लाई के अनुरूप दाम को बताया जा सकेगा. अगर वास्तविक रूप से देखा जाए तो असली महंगाई खाने-पीने के ही सामानों में ही है. दाल, सरसों का तेल, आलू और प्याज महंगा मिल रहा है. इस बीच प्रशासन की नजर भी कोरोना महामारी और उसकी जरूरतों की सप्लाई पर ही बनी हुई है. इसमें ऑक्सीजन और दवाएं शामिल हैं. फुटकर में बढ़ी महंगाई पर नियंत्रण का भी कोई उपाय शहर में नहीं हो पाया है. जो कार्रवाई हुई वह ऑक्सीजन और दवा की काला बाजारियों के खिलाफ हुई है.

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खाद्य एवं औषधि प्रशासन के प्रभारी गुंजन कुमार परिवार सहित कोरोना पॉजिटिव हैं. वहीं ईटीवी ने बढ़ती महंगाई को लेकर व्यापारी नेताओं और आम लोगों से बातचीत की. लोगों ने मिलीजुली प्रतिक्रियाएं दी. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि जब लोग अपनी जान बचाने के लिए जुटे हुए हैं और उन्हें जरूरत का सामान देने वाले अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं तो लोगों को थोड़ी बहुत महंगाई की परवाह नहीं करना चाहिए. व्यापारी नेताओं का मानना है कि सरकार को महंगाई पर नियंत्रण के लिए कदम उठाना चाहिए. तेल और दलहन जैसी चीजों के आयात का जिम्मा सिर्फ एक दो बड़े उद्योगपतियों, व्यापारियों को न देकर इसे और लोगों में भी बांटना चाहिए, जिससे महंगाई दर पर नियंत्रण स्थापित होगा. चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष ने तो पीएम मोदी को ट्वीट कर महंगाई पर नियंत्रण की मांग की है.


इनके चीजों के दाम बढ़े

सरसों के तेल में ब्रांडेड कंपनियों की बात करें तो बैल कोल्हू तेल का थोक मूल्य 170 रुपये लीटर है, जो फुटकर में 180 से 185 रुपये लीटर बिक रहा है. यह मूल्य कोरोना से पहले 140 से 145 रुपये था. वहीं फॉर्चून जैसा ब्रांड 165 रुपये लीटर में थोक में बिक रहा है. सरसों का तेल निकालने वाली ऑयल मिलों पर काले और पीले सरसों के हिसाब से मूल्य लगभग 200 रुपये लीटर तक पहुंच गया है. कोरोना की महामारी के शुरुआत में अप्रैल महीने में यह 160 रुपये लीटर बिक रहा था. चीनी थोक में 36 रुपये किलो बिक रही है. खुले बाजार में इसकी कीमत 40 से 42 रुपये है. आटे का थोक बाजार नरम हुआ है. थोक में 18 रुपये किलो बिकने वाला आटा फुटकर में 25 रुपये किलो तक बिक रहा है. मैदे का खुदरा मूल्य भी थोक मूल्य से डेढ़ गुना है. अरहर की दाल कोरोना से पहले 75 रुपये किलो तक थी, लेकिन आज यह 95 से 110 रुपये किलो तक बिक रही है. सब्जियों में आलू 20 से 22 रुपये किलो तो प्याज 30 रुपये किलो तक पहुंच गया है. मंडी में प्याज 18 से 20 रुपये किलो है. फलों में महंगाई दिख रही है. संतरा का मिलना मुश्किल और मिला भी तो 150 रुपये किलो जो डेढ़ माह पहले 50-60 रुपये था. सेब 250 से 150 रुपये किलो तक का है. अंगूर 70 रुपये किलो से बढ़कर 150 रुपये किलो बिक रहा है. विटामिन सी का अद्भुत स्रोत वाली कीवी अप्रैल में 15 रुपये पीस बिक रही थी जो आज 50 रुपये में बिक रही है.

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