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गोरखपुर: रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर श्रमिक, बता रहे हैं ये कारण - migrant labours returned to gorakhpur

गोरखपुर में लोग अब रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों की ओर पलायन करना शुरू कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि उनके सामने अपना पेट पालने का संकट है. अगर वे कोरोना की वजह से घबराएंगे, तो उनके सामने जीवन-यापन का संकट खड़ा हो जाएगा.

gorakhpur
रोजगार के लिए वापस लौट रहे श्रमिक.
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Published : Jul 4, 2020, 2:01 PM IST

गोरखपुर: लॉकडाउन में दिल्ली, हरियाणा, गुजरात आदि प्रदेशों से नौकरी छोड़कर घर वापस लौटे प्रवासी मजदूर एक बार फिर अपने कार्य क्षेत्र में लौटने को मजबूर हो गए हैं. गांव के आसपास रोजगार की कोई व्यवस्था न होने और पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने में खुद को असमर्थ पा रहे मजदूर अब वापस लौट रहे हैं. हर दिन गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर कई शहरों को जाने के लिए लोग पहुंच रहे हैं. इन लोगों को कोरोना के भय से ज्यादा अपने और अपने परिवार के जीवन की चिंता है, जिसके निदान के लिए वह फिर घर से निकल पड़े हैं.

लोगों का कहना है कि उनके सामने अपना पेट पालने का संकट है.

मजबूरी और लाचारी के चलते प्रवासी आज वापस लौट रहे हैं. संकट की घड़ी में घर पहुंचकर कुछ दिनों के लिए यह लोग खुश तो हुए, लेकिन जब खाद, बीज और घर की जरूरतों को पूरा करने का समय आया, तो आर्थिक संकट में उनके हाथ-पांव फूल गये. उत्तर प्रदेश और बिहार के ऐसे तमाम कामगार रेलवे स्टेशन पर हाथ में झोला, सिर पर अनाज की गठरी लिए ट्रेन पकड़ने के लिए भागते दौड़ते नजर आ रहे हैं, जहां से उन्हें अपनी पहले की जिंदगी के लौटने की उम्मीद दिखाई देती है. ऐसे कामगार महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, अहमदाबाद और हैदराबाद की ओर रुख कर रहे हैं. कुछ को तो कंपनियों ने फोन करके बुलाया है तो कुछ के टिकट भी कटाकर भेजे गए हैं. ऐसे प्रवासी साफ तौर पर स्वीकार करते हैं कि उन्हें जब घर के आसपास काम नहीं मिला, तो फिर वहां जाना जरूरी हो गया, जहां से वह लौटे कर आए थे.

जन्मस्थान का मोह करेंगे, तो रोजी-रोटी नहीं मिलेगी

कई ऐसे भी मजदूर हैं, जो श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से अपने घर लौटे थे, लेकिन आज वहीं वापस लौट रहे हैं. इन श्रमिकों का कहना है कि अपने जन्मस्थान का मोह करेंगे, तो रोजी-रोटी नहीं मिलेगी. परिवार को पालने की भी जिम्मेदारी है, जिस वजह से वो बाहरी शहरों को जाने को मजबूर हैं.

उत्पादन के लिए फैक्ट्री मालिकों को है श्रमिकों की जरूरत

कई ऐसे लोग वापस लौट रहे हैं इनमें जिनका दूसरे शहरों में खुद का व्यवसाय था. वहीं अधिकांश इन लोगों में फैक्ट्री वर्कर हैं. इन मजदूरों का कहना है कि कई फैक्ट्रियों में भी ताले पड़े हैं. इसलिए उत्पादन के लिए फैक्ट्री मालिकों को भी श्रमिकों की जरूरत है. लिहाजा संकट की घड़ी में आर्थिक संकट की वजह से ये लोग वापस लौट रहे हैं. परिवार को पालने के संकट के आगे इन लोगों को कोरोना का कोई भय नहीं है. इन लोगों का कहना है कि बचाव कार्य करेंगे और संक्रमण से बचे रहेंगे.

निश्चित रूप से इन मजदूरों का पलायन ये संकेत देता है कि सरकार के दावे फेल हो रहे हैं. सरकार के रोजगार देने के प्रयास कहीं न कहीं से विफल हो रहे हैं या फिर रोजगार के उपाय इन प्रवासी मजदूरों को भा नहीं रहे.

गोरखपुर: लॉकडाउन में दिल्ली, हरियाणा, गुजरात आदि प्रदेशों से नौकरी छोड़कर घर वापस लौटे प्रवासी मजदूर एक बार फिर अपने कार्य क्षेत्र में लौटने को मजबूर हो गए हैं. गांव के आसपास रोजगार की कोई व्यवस्था न होने और पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने में खुद को असमर्थ पा रहे मजदूर अब वापस लौट रहे हैं. हर दिन गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर कई शहरों को जाने के लिए लोग पहुंच रहे हैं. इन लोगों को कोरोना के भय से ज्यादा अपने और अपने परिवार के जीवन की चिंता है, जिसके निदान के लिए वह फिर घर से निकल पड़े हैं.

लोगों का कहना है कि उनके सामने अपना पेट पालने का संकट है.

मजबूरी और लाचारी के चलते प्रवासी आज वापस लौट रहे हैं. संकट की घड़ी में घर पहुंचकर कुछ दिनों के लिए यह लोग खुश तो हुए, लेकिन जब खाद, बीज और घर की जरूरतों को पूरा करने का समय आया, तो आर्थिक संकट में उनके हाथ-पांव फूल गये. उत्तर प्रदेश और बिहार के ऐसे तमाम कामगार रेलवे स्टेशन पर हाथ में झोला, सिर पर अनाज की गठरी लिए ट्रेन पकड़ने के लिए भागते दौड़ते नजर आ रहे हैं, जहां से उन्हें अपनी पहले की जिंदगी के लौटने की उम्मीद दिखाई देती है. ऐसे कामगार महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, अहमदाबाद और हैदराबाद की ओर रुख कर रहे हैं. कुछ को तो कंपनियों ने फोन करके बुलाया है तो कुछ के टिकट भी कटाकर भेजे गए हैं. ऐसे प्रवासी साफ तौर पर स्वीकार करते हैं कि उन्हें जब घर के आसपास काम नहीं मिला, तो फिर वहां जाना जरूरी हो गया, जहां से वह लौटे कर आए थे.

जन्मस्थान का मोह करेंगे, तो रोजी-रोटी नहीं मिलेगी

कई ऐसे भी मजदूर हैं, जो श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से अपने घर लौटे थे, लेकिन आज वहीं वापस लौट रहे हैं. इन श्रमिकों का कहना है कि अपने जन्मस्थान का मोह करेंगे, तो रोजी-रोटी नहीं मिलेगी. परिवार को पालने की भी जिम्मेदारी है, जिस वजह से वो बाहरी शहरों को जाने को मजबूर हैं.

उत्पादन के लिए फैक्ट्री मालिकों को है श्रमिकों की जरूरत

कई ऐसे लोग वापस लौट रहे हैं इनमें जिनका दूसरे शहरों में खुद का व्यवसाय था. वहीं अधिकांश इन लोगों में फैक्ट्री वर्कर हैं. इन मजदूरों का कहना है कि कई फैक्ट्रियों में भी ताले पड़े हैं. इसलिए उत्पादन के लिए फैक्ट्री मालिकों को भी श्रमिकों की जरूरत है. लिहाजा संकट की घड़ी में आर्थिक संकट की वजह से ये लोग वापस लौट रहे हैं. परिवार को पालने के संकट के आगे इन लोगों को कोरोना का कोई भय नहीं है. इन लोगों का कहना है कि बचाव कार्य करेंगे और संक्रमण से बचे रहेंगे.

निश्चित रूप से इन मजदूरों का पलायन ये संकेत देता है कि सरकार के दावे फेल हो रहे हैं. सरकार के रोजगार देने के प्रयास कहीं न कहीं से विफल हो रहे हैं या फिर रोजगार के उपाय इन प्रवासी मजदूरों को भा नहीं रहे.

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