गोरखपुरः जिले में तीन रामलीलाओं का इतिहास बहुत पुराना है. ये तीनों रामलीला शारदी नवरात्र से पहले प्रारंभ होने से लेकर मध्यकाल और कुछ दिनों के अंतराल पर प्रारंभ होती है. जिसका आनंद उठाने के लिए सिर्फ शहर ही नहीं दूरदराज के जिलों के लोग भी यहां आते हैं. यहां की सबसे प्राचीन रामलीला बर्डघाट की है. इसका आयोजन तब से होता आ रहा है, जब गोरखपुर का पूरा परिवेश गांव जैसा था. संस्कृति और संस्कारों के प्रति लोगों का गहरा लगाव था. लोग अन्य आवश्यक कार्यों की भांति रामलीला में भी भरपूर समय और समर्पण देते थे.
कार्यक्रम के आयोजन की प्रकृति काफी प्रभावी ढंग से होती है. यह रामलीला 1858 से प्रारंभ हुई, जो आज भी चली आ रही है. देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी यहां के आयोजन समिति को अपना बधाई संदेश भेजते हैं. यह नवरात्र के 2 दिन पहले प्रारंभ होती है. इसमें विजयदशमी के दिन रावण वध किया जाता है. इसका सबसे अद्भुत आयोजन राघव-शक्ति के मिलन का है. जिसे देखने के लिए अपार भीड़ जुटती है. यह रामलीला के दौरान होता है, जब भगवान राम मां दुर्गा की आरती उतारते हैं. यह देश में अपनी तरह का पहला आयोजन है, जो भगवान राम द्वारा मां दुर्गा की आराधना से जुड़ा है. जिसे रावण वध की चिंता को दूर करने के लिए राम ने किया था. राम बारात में आयोजन समिति के अलावा हजारों लोग शामिल होते हैं. लोग भगवान राम को अपने कंधे पर उठाकर चलते हैं. उनकी आरती उतारते हैं.
इसी तरह दूसरी रामलीला शहर में 1914 से आयोजित होती आ रही है. जिसे आर्य नगर की रामलीला कहते हैं. इसकी शुरुआत बाबू गिरधर दास समेत अन्य लोगों ने मिलकर प्रारंभ कराया था. यह बर्डघाट की रामलीला के एक दिन बाद शुरू होती है. गोरखनाथ मंदिर के पास स्थित मानसरोवर मैदान में इसका आयोजन किया जाता है. इस जगह को रामलीला समिति को बाबू गिरधर दास ने दान किया था. यहां रावण दशहरे के दूसरे दिन जलाया जाता है. विजयदशमी के दिन गोरक्ष पीठाधीश्वर के रूप में योगी आदित्यनाथ यहां विजय जुलूस के साथ आते हैं और भगवान राम को तिलककर विजय श्री का आशीष देते हैं. इन रामलीला के पात्र अयोध्या, वैशाली, गोंडा, सीतामढ़ी से आते हैं. प्रस्तुतियां देख हर कोई त्रेतायुग की याद में खो जाता है. राम बारात में बैंड बाजा बजाने वाला मालिक मुस्लिम समाज से है जो यह सेवा मुफ्त देता है.
इसके साथ ही यहां की प्रसिद्ध रामलीलाओं में से एक धर्मशाला की रामलीला है. जो नवरात्र के तीसरे दिन से प्रारंभ होती है. यहां रावण वध पूर्णिमा के दिन होता है. धर्मशाला बाजार रामलीला को सन 1918 में अभयचंद, राम प्रसाद पांडेय आदि लोगो ने प्रारंभ किया था. तब इस रामलीला के लिए कोई स्थाई स्थान नहीं था. इसलिए इसका स्थान परिवर्तित होता रहता था. लेकिन 1946 में इस रामलीला समिति ने रामलीला के लिए सुमेर सागर रोड पर जमीन खरीद लिया. जिसके बाद जटाशंकर चौक के समीप अपने निश्चित स्थान पर अनवरत प्रतिवर्ष यहां रामलीला संपन्न होती चली आ रही है. यहां लोग रामरथ को खींचते हैं. रावण वध में गजब का उल्लास देखने को मिलता है.
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ये तीनों रामलीला ऐतिहासिक हैं. जिससे दस दिनों तक शहर में विशेष चहल-पहल बनी रहती है. इसके अलावा अन्य जगहों पर भी रामलीला का आयोजन होता है, लेकिन अपने साज-सजा और इतिहास को समेटने और राम बारात में बरातियों-घरातियों के लिए होने वाले भोज का आयोजन भी लोगों को खूब भाता है.