गोरखपुर: जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है, गोरखपुर में राजनीतिक पारा चढ़ता जा रहा है. जिले का सदर विधानसभा सीट इन दिनों चर्चा के केंद्र में है, क्योंकि यहां से सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद चुनाव लड़ रहे हैं. इसके साथ ही जिले की जिस सीट पर सबसे ज्यादा घमासान है, उसका नाम गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट है. इस सीट पर वर्तमान में भाजपा के विधायक विपिन सिंह काबिज हैं. वो सीएम योगी के बेहद करीबी हैं. साथ ही उन्होंने क्षेत्र में 1400 करोड़ के विकास कार्य भी कराए हैं. लेकिन इस सीट पर निषाद पार्टी के प्रमुख डॉ. संजय निषाद समझौते के तहत अपना दावा मजबूत करने में जुटे हैं.
सूत्रों की मानें तो करीब एक सप्ताह पहले यह सीट भाजपा के खाते में पूरी तरह से फाइनल हो चुकी थी. लेकिन जिस दिन दिल्ली में भाजपा के सहयोगी दलों में अपना दल की अनुप्रिया पटेल गुट और डॉ. संजय निषाद के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बैठक हुई, तभी से इस सीट पर पेंच फंस गया है. भाजपा के कार्यकर्ता व खुद विधायक जहां प्रचार-प्रसार में ढीले हो गए हैं और टिकट के इंतजार में हैं तो वहीं निषाद पार्टी के नेता क्षेत्र में खासा सक्रिय नजर आ रहे हैं. लेकिन क्षेत्र में उनका पुरजोर विरोध हो रहा है और हर दिन विरोध के वीडियो वायरल हो रहे हैं.
खैर, जब ईटीवी भारत समझौते की राजनीति में फंसी गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट की पड़ताल को क्षेत्र की निषाद बाहुल्य गांव में पहुंची तो पता चला कि इस बिरादरी के ऊपर अपना दावा जताते हुए संजय निषाद समझौते से भाजपा में इस सीट को हथियाना चाहते हैं. विधानसभा के नौसढ़ क्षेत्र में निषाद बिरादरी के लोगों की काफी संख्या है. यहां के लोगों के बीच ईटीवी भारत ने अपनी चौपाल लगाई तो लोगों ने कहा कि वो संजय निषाद को सिर्फ सुने हैं. अपने दुख-सुख में कभी खड़ा नहीं पाए. ऐसे में उनके साथ वह लोग कैसे जा सकते हैं. भाजपा की सरकार में विधायक विपिन सिंह ने उनके समाज के लोगों को शौचालय, आवास, राशन की सुविधा, पेंशन, बिजली कनेक्शन सब कुछ दिलवाए. हर दुख-सुख में खड़े रहते हैं. ऐसे में निषाद समाज का बड़ा हिस्सा विपिन सिंह के साथ खड़ा है.
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सूत्रों की मानें तो भाजपा और निषाद समाज पार्टी के बीच समझौता होकर अगर गोरखपुर ग्रामीण की सीट निषाद पार्टी के खाते में जाती है तो इस सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में पूर्व विधायक विजय बहादुर यादव की जीत सुनिश्चित हो गई. वह लगातार पार्टी के निर्देश के क्रम में क्षेत्र में सक्रिय हैं. इधर, भाजपा के लोग पिछले 10 दिनों से समझौते के भंवर में फंसकर टिकट की आस लगाए बैठे हैं. इस सीट पर भितरघात भी जबरदस्त होगी. ऐसे में निषाद पार्टी को भी बड़ा नुकसान यहां प्रत्याशी होने पर उठाना पड़ सकता है.
यह सीट अगर भाजपा के खाते में जाती है और मौजूदा विधायक टिकट पाने में कामयाब होते हैं तो योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जुड़ी यह सीट भाजपा के खाते में जा सकती है. क्षेत्र के लोगों का साफ कहना है कि समझौते के साथ यहां के समीकरण पर भी भाजपा को विचार करना चाहिए. सिर्फ ब्लैकमेल और दबाव की राजनीति का संगठन के बड़े नेताओं को शिकार नहीं होना चाहिए.
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