गोरखपुर: कहते हैं संघर्ष का परिणाम एक न एक दिन मिलता जरूर है. ईटीवी भारत अपने दर्शकों/पाठकों को आज एक ऐसे ही व्यक्ति की कहानी से रूबरू कराएगा, जिन्होंने अपने संघर्षों की ऐसी गाथा लिखी जिसकी बदौलत वह न सिर्फ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भरोसा जीतने में कामयाब हुए बल्कि जड़ और जंगल के बीच बसे अपने लोगों के जीवन को उबारने में उन्होंने जो खून पसीना बहाया, उसकी कद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की. ऐसे शख्स का नाम राम गणेश है, जो अभी 15 अगस्त को लाल किले पर पीएम मोदी के विशेष आमंत्रित सदस्यों की श्रेणी में शामिल होकर पहली बार राजधानी पहुंचे. वह लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी के भाषण को सुनने और उन्हें देखने के बाद गदगद हो गए. दिल्ली से लौटने के बाद ईटीवी भारत से खास बातचीत में राम गणेश ने कहा जिस तरह का काम योगी-मोदी कर रहे हैं, उनकी इच्छा है कि वे लोग लंबे समय तक देश के लिए कार्य करें.
कुसम्ही के घने जंगलों के बीच जिस जमीन पर राम गणेश के पूर्वज 1918 से रहते चले आ रहे, खेती-बाड़ी भी करते थे उस जमीन पर देश की आजादी के बाद भी वनटांगियों का कोई अधिकार नहीं था. इनकी बस्ती तक जाने के लिए कच्चा-पक्का कोई मार्ग नहीं था. बिजली, पानी, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं थीं. इन्ही व्यवस्थाओं को लागू करने के लिए वनटांगियों की एक टुकड़ी के साथ राम गणेश जिला प्रशासन, शासन से लगातार संघर्ष कर रहे थे. उनके इस संघर्ष को तत्कालीन सांसद और वर्तमान में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देखा तो उन्हें अपना सहारा दिया. सरकार की मंशा के विपरीत वनटांगियों के बीच योगी जगाकर एक पाठशाला स्थापित किए. योगी राम गणेश को लेकर देश-प्रदेश की सरकारों से वनटांगियों को मूलभूत अधिकार देने की लड़ाई लड़ते रहे, लेकिन इन्हें अधिकारी और व्यवस्थाएं तब मिलीं जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. वनटांगिया गांव राजस्व गांव घोषित हुआ और राम गणेश ने जो सपना देखा था वह पूरा हुआ.
ईटीवी भारत से बातचीत में राम गणेश कहते हैं कि उनको जो पहचान और सफलता मिली है, उसकी देन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. सीएम योगी ने वनटांगियों की जिंदगी को पटरी पर लाने का कार्य किया. राम गणेश तो एक माध्यम था. वनटांगियों की समस्याओं को लेकर योगी आदित्यनाथ तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए, प्रशासन के लोगों को जगाने के लिए उन्होंने जो कार्य किया यह सम्मान उसी का ही फल है. राम गणेश ने कहा कि वह अपने युवा काल से ही जंगल में बसे हुए अपने समुदाय के लोगों को जरूरी सुविधाओं को दिलाने का प्रयास करते रहे. हालांकि जब प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ कुर्सी पर बैठे तो उन्होंने सबसे पहले इसे राजस्व गांव के रूप में घोषित किया. इसके बाद जंगल के बीच बसी हजारों की आबादी को वह सभी जरूरी सुविधाएं मिलने लगीं, जो बाकी गांव में उपलब्ध हैं.
राम गणेश कहते हैं कि उनके गांव में आज अधिकांश लोगों के पास प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास से मिला पक्का मकान है. शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है. सड़क, शौचालय, बिजली के साथ राशन की दुकान भी गांव में मौजूद है, जिससे अब वनटांगियों को कहीं भटकना नहीं पड़ता. राम गणेश एक मजिस्ट्रेट के साथ दिल्ली लाल किला परिसर तक प्रशासनिक व्यवस्था में पहुंचाए गए थे. दिल्ली पहुंचने पर उनके खाने-पीने और ठहरने की व्यवस्था यूपी भवन में की गई थी. खुद को मिले इस सम्मान से राम गणेश बेहद उत्साहित हैं. वह कहते हैं कि अब उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है. जिस काम से उनको पहचान और नाम मिला है, उसे और बड़े मुकाम तक पहुंचाना अब उनका लक्ष्य है.
राम गणेश जब दिल्ली से गांव लौटे तो उनके घर पर मिलने-जुलने वालों की भीड़ लग गई. वह बार-बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभार जताना नहीं भूलते. उन्होंने कहा कि देश को आजादी भले ही 1947 में मिल गई थी, लेकिन वनटांगिया अपने बसावट काल 1918 से लेकर 2017 तक गुलामी की दशा में जी रहे थे. उन्हें वास्तविक आजादी तब मिली जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. राम गणेश कहते हैं कि जब वह आजाद ही नहीं थे तो उन्हें आजादी के जश्न में शामिल होने का मौका भी कैसे मिलता. धन्य हैं बाबा योगी आदित्यनाथ जिनकी वजह से वनटांगियों की जिंदगी में सही मायने में आजादी आई. अब तो प्रधानमंत्री ने आजादी के समारोह में उन्हें विशिष्ट अतिथि बना कर और भी गौरवान्वित कर दिया है. आज तक वनटांगिया 'जंगली' थे, लेकिन अब इंसान की जिंदगी की ओर कदम बढ़ा चुके हैं. वह अपने मूल अधिकार के प्रति जाग गया है.