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गोरखपुर: सावन का तीसरा सोमवार आज, मोटेश्वर नाथ धाम में लगी भक्तों की भीड़

गोरखपुर के ताज पिपरा स्थित मोटेश्वर नाथ शिव मंदिर में सावन के तीसरे दिन भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली. सावन के साथ नागपंचमी भी होने के कारण कांवड़ियों की लंबी लाइन बाबा के जलाभिषेक के लिए लगी रही. स्वंय सेवकों ने नगरवासियों के सहयोग से कांवड़ियों के रहने और खाने-पीने प्रसाद आदि की भरपूर व्यवस्था भी की गई है.

मोटेश्वर धाम में लगी भक्तों की भीड़.
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Published : Aug 5, 2019, 12:49 PM IST

गोरखपुरः जनपद के ताजपिपरा स्थित मोटेश्वर नाथ शिव मंदिर सदियों पुराना है. श्रवण मास के तीसरे सोमवार को यहां कांवड़ियों की भीड़ जलाभिषेक करने उमड़ी. इस दौरान हर-हर महादेव के जयकारे से पूरा मंदिर परिसर गुंजयमान हो गया. कांवड़ियों का बड़ा जत्था सरयू नदी से कांवड़ में जल भर रविवार को ही मोटेश्वर शिव मंदिर पहुंचा. प्रबंध समीति के सदस्यों की मानें तो सोमवार की भीड़ 50 हजार कांवड़ियों से अधिक रही, जिसमें महिला और नन्हे-मुन्हें श्रद्धालुओं ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. स्वंय सेवकों ने नगरवासियों के सहयोग से कांवड़ियों के रहने खाने-पीने प्रसाद आदि की भरपूर व्यवस्था भी की.

मोटेश्वर धाम में लगी भक्तों की भीड़.

कब और कैसे हुई मोटेश्वर शिव मंदिर की स्थापना-
पिपराइच-गोरखपुर मार्ग पर नगर पंचायत पिपराइच कार्यालय स्थित मोटेश्वर शिव मंदिर बहुत पुराना है. पूर्वांचल के लोगों के लिए आस्था का वरदान माना जाता है. समिति अध्यक्ष मनीष रामरायका बताते हैं कि पुरातन में जहां शिवलिंग स्थित है, वहां के पूरे क्षेत्रफल में खेती कि जाती थी.

वर्ष 1871 में एक दिन एक किसान अपने खेत में जुताई कर रहा था. उसका हल एक पत्थर से टकरा गया. किसान ने ग्रामीणों के सहयोग से पत्थर की खुदाई शुरू कर दी. खुदाई के दौरान वहां एक शिवलिंग के आकार का पत्थर निकला. गांव वालों ने उसे शिवलिंग मानकर उसकी पूजा अर्चना के साथ स्थापित कर दिया. आज भी शिवलिंग में कुदाल के चोट का निशा देखने को मिलेगा. धीरे-धीरे यह पत्थर विशाल रूप धारण कर लिया. इसी कारण इनका नाम मोटेश्वर नाथ पड़ा.

स्वर्गीय शान्ति गिरी महराज ने 1945-46 में इस मंदिर को धीरे-धीरे गोरखनाथ मंदिर का प्रारुप देना शुरू कर दिया. समय गुजरने के बाद उन्होंने अपने शिष्य संतोष गिरी को अपना उत्तराधिकारी बना कर अपना शरीर त्याग दिया. लगभग 25 वर्ष से संतोष गिरी महराज के देख रेख और मार्ग दर्शन में इस मंदिर को आगे की तरफ ले जा रहे हैं. 1993 में पहले शान्ति गिरी महराज के प्रयास से कस्बे के कुछ लोगों को लेकर यहां सरयू नदी से जल लाकर जलाभिषेक कार्यक्रम शुरू कर दिया. धीरे धीर कावडिय़ों की संख्या बढ़ती गई .

बड़हलगंज सरयू नदी से लोग लगभग 85 किमी पैदल चल कर पिपराइच आते हैं. आस पास के अधिकतर लोग वहां शुक्रवार को जाते हैं रात्रि वहां विश्राम करते हैं. शनिवार प्रातः संकल्प के साथ जल लेकर चलते हैं. लोगों का यह मान्यता है कि वहां से पांच वर्ष लगातार जल लाकर यहां चढ़ाने से शिवशंकर से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूर्ण होतीं हैं. पुत्र धन का लाभ लोगों का होता है. हमारे यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम में मंदिर पर बड़े-बड़े धर्मशाला बनाए गए हैं.

गांव के लोगों का मानना है कि वे अपने अपने कन्याओं की दिखाई कराते है तो शंकर जी की कृपा से उस कन्या का विवाह शीघ्र होता है. जिनके पुत्र नहीं होते है वह लोग हमारे वहां सर्वाधिक पूजा कराते हैं. 20 वर्ष से भव्य मेला लगता है. सावन के प्रत्येक सोमवार और नागपंचमी के दिन भव्य मेला लगता है. 40 वर्षों से मकरसंक्रांति का भव्य मेला लगता चला आ रहा है. हमारे वहां भीम सरोवर भी है. जिस पर भीम भगवन भी हैं और छठ मैय्या का भी एक मेला लगता है. जिस पर छठ मैय्या का मूर्ति स्थापना है.

मैं यहां पर करीब 25 वर्षों से पूजापाठ कर रहा हूं. लोग बताते हैं कि यहां के मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. यह मंदिर जमीन की खुदाई करते समय शिवलिंग निकला. तब यह मंदिर बन कर के तैयार हुआ तब से लोग बड़हलगंज से जल लाकर भोले बाबा को चढ़ाते है. और अपनी मन्नतें मांगते हैं हर वर्ष करीब डेढ सो गांव से लगभग 30 हजार कांवड़ियां जलाभिषेक करने आते हैं.
-संतोष गिरी, मुख्य पूजारी, मेटेश्वर नाथ मंदिर

गोरखपुरः जनपद के ताजपिपरा स्थित मोटेश्वर नाथ शिव मंदिर सदियों पुराना है. श्रवण मास के तीसरे सोमवार को यहां कांवड़ियों की भीड़ जलाभिषेक करने उमड़ी. इस दौरान हर-हर महादेव के जयकारे से पूरा मंदिर परिसर गुंजयमान हो गया. कांवड़ियों का बड़ा जत्था सरयू नदी से कांवड़ में जल भर रविवार को ही मोटेश्वर शिव मंदिर पहुंचा. प्रबंध समीति के सदस्यों की मानें तो सोमवार की भीड़ 50 हजार कांवड़ियों से अधिक रही, जिसमें महिला और नन्हे-मुन्हें श्रद्धालुओं ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. स्वंय सेवकों ने नगरवासियों के सहयोग से कांवड़ियों के रहने खाने-पीने प्रसाद आदि की भरपूर व्यवस्था भी की.

मोटेश्वर धाम में लगी भक्तों की भीड़.

कब और कैसे हुई मोटेश्वर शिव मंदिर की स्थापना-
पिपराइच-गोरखपुर मार्ग पर नगर पंचायत पिपराइच कार्यालय स्थित मोटेश्वर शिव मंदिर बहुत पुराना है. पूर्वांचल के लोगों के लिए आस्था का वरदान माना जाता है. समिति अध्यक्ष मनीष रामरायका बताते हैं कि पुरातन में जहां शिवलिंग स्थित है, वहां के पूरे क्षेत्रफल में खेती कि जाती थी.

वर्ष 1871 में एक दिन एक किसान अपने खेत में जुताई कर रहा था. उसका हल एक पत्थर से टकरा गया. किसान ने ग्रामीणों के सहयोग से पत्थर की खुदाई शुरू कर दी. खुदाई के दौरान वहां एक शिवलिंग के आकार का पत्थर निकला. गांव वालों ने उसे शिवलिंग मानकर उसकी पूजा अर्चना के साथ स्थापित कर दिया. आज भी शिवलिंग में कुदाल के चोट का निशा देखने को मिलेगा. धीरे-धीरे यह पत्थर विशाल रूप धारण कर लिया. इसी कारण इनका नाम मोटेश्वर नाथ पड़ा.

स्वर्गीय शान्ति गिरी महराज ने 1945-46 में इस मंदिर को धीरे-धीरे गोरखनाथ मंदिर का प्रारुप देना शुरू कर दिया. समय गुजरने के बाद उन्होंने अपने शिष्य संतोष गिरी को अपना उत्तराधिकारी बना कर अपना शरीर त्याग दिया. लगभग 25 वर्ष से संतोष गिरी महराज के देख रेख और मार्ग दर्शन में इस मंदिर को आगे की तरफ ले जा रहे हैं. 1993 में पहले शान्ति गिरी महराज के प्रयास से कस्बे के कुछ लोगों को लेकर यहां सरयू नदी से जल लाकर जलाभिषेक कार्यक्रम शुरू कर दिया. धीरे धीर कावडिय़ों की संख्या बढ़ती गई .

बड़हलगंज सरयू नदी से लोग लगभग 85 किमी पैदल चल कर पिपराइच आते हैं. आस पास के अधिकतर लोग वहां शुक्रवार को जाते हैं रात्रि वहां विश्राम करते हैं. शनिवार प्रातः संकल्प के साथ जल लेकर चलते हैं. लोगों का यह मान्यता है कि वहां से पांच वर्ष लगातार जल लाकर यहां चढ़ाने से शिवशंकर से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूर्ण होतीं हैं. पुत्र धन का लाभ लोगों का होता है. हमारे यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम में मंदिर पर बड़े-बड़े धर्मशाला बनाए गए हैं.

गांव के लोगों का मानना है कि वे अपने अपने कन्याओं की दिखाई कराते है तो शंकर जी की कृपा से उस कन्या का विवाह शीघ्र होता है. जिनके पुत्र नहीं होते है वह लोग हमारे वहां सर्वाधिक पूजा कराते हैं. 20 वर्ष से भव्य मेला लगता है. सावन के प्रत्येक सोमवार और नागपंचमी के दिन भव्य मेला लगता है. 40 वर्षों से मकरसंक्रांति का भव्य मेला लगता चला आ रहा है. हमारे वहां भीम सरोवर भी है. जिस पर भीम भगवन भी हैं और छठ मैय्या का भी एक मेला लगता है. जिस पर छठ मैय्या का मूर्ति स्थापना है.

मैं यहां पर करीब 25 वर्षों से पूजापाठ कर रहा हूं. लोग बताते हैं कि यहां के मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. यह मंदिर जमीन की खुदाई करते समय शिवलिंग निकला. तब यह मंदिर बन कर के तैयार हुआ तब से लोग बड़हलगंज से जल लाकर भोले बाबा को चढ़ाते है. और अपनी मन्नतें मांगते हैं हर वर्ष करीब डेढ सो गांव से लगभग 30 हजार कांवड़ियां जलाभिषेक करने आते हैं.
-संतोष गिरी, मुख्य पूजारी, मेटेश्वर नाथ मंदिर

Intro:गोरखपुर के ताजपिपरा स्थित मोटेश्वर शिव का प्राचीन मंदिर है. क्षेत्रीय लोगों के लिए आस्था का केन्द्र माना जाता है. मुरादें पूरी होने के लिए श्रद्धालु 85 किमी दूर सरयू नदी से जल ले कर पैदल ही चल कर जलाभिषेक करने जाते है. दर्शनार्थियों की माने तो वहां एक लोटा जल चढ़ाने से ही सबकी मुरादें पूरी हो जाता है.

पिपराइच गोरखपुरः जनपद के ताजपिपरा स्थित मोटेश्वर नाथ शिव मंदिर सदियों पूराना है. श्रवण मास के तीसरे सोमवार को वहां कावडिय़ों की बेशूमार भीड़ जलाभिषेक करने उमड़ी. इस दौरान हर हर महादेव के जयकारे से मंदिर परिसर गुंजयमान है. शिवमंदिर के स्वंयसेवकों के साथ साथ पुलिस प्रशासन भी भीड़ को संभालने में पसीना बहा रहे है. कावड़ियों का बड़ा जत्था सरयू नदी से कावड़ में जल भर रविवार को ही मोटेश्वर शिव मंदिर पहूंचा गया. प्रबंध समीति के सदस्यों की माने तो आज की इतिहासिक भीड़ 50 हजार कावडिय़ों से अधिक है. जिसमें महिला तथा नन्हे मुन्हें श्रद्धालु ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. स्वंयसेवकों ने कावडिय़ों के रहने खाने पीने प्रसाद आदि की व्यस्था नगरवासियों के सहयोग से भरपूर किया है.Body:मोटेश्वर शिव के विशेष उपासना माह का मध्यकाल चल रहा है. सावन के तीसरे सोमवार को मोटे शिव बाबा के दर्शन और जलाभिषेक करने के लिए कावडिय़ों की लम्बी लम्बी कतार लगी है. बताया जाता है कि भूतनाथ मोटेश्वर शिव को प्रसन्न करने के लिए कावडिया 85 किमी दूर बड़हलगंज स्थित सरयू नदी से जल कावड़ में भर कर, पैदल चलकर जलाभिषेक करने मोटे शिव मंदिर पर आते हैं. सावन के तीसरे सोमवार के दिन नांग पंचमी पड़ने से मोटे शिव का जलाभिषेक करने रविवार से ही कांवड़ियों बड़ा जत्था बड़हलगंज से पहूंचा है. रात भर विश्राम करने के पश्चात भोर में जलाभिषेक के लिए उनका जमावड़ा मंदिर गेट पर उमड़ पड़ा.
मंदिर पर दर्जनों पुरोहितों द्वारा कांवड़ पूजा रुद्राभिषेक शिव पुराण शिव तांडव आदि का पूजा पाठ चलता रह. सावन के हर सोमवार को भक्तों की लगने वाली लम्बी-लम्बी कतारें से भारी भीड़ लगती है. भीड़ भाड़ में चोर उच्चकों पर नजर रखने के लिए सीसी कैमरा और महिला तथा कई थाने की पुलिस जवानों की तैनाती की गई है. वहां आने वाले कांवड़ियों के कमल रखने एवं उनके विश्राम, निशुल्क भोजन, सुरक्षा आदि की व्यवस्था की गयी है. पूजा के सामाग्री फूल भांग धतूरा दूध जल आदि पूजा के सामान बच्चों के लिए झूला तथा मेला में सिंगार मिठाई आज की दुकानें सजी हुई हैं.

कब और कैसे हुई मोटे शिव मंदिर की स्थापना
पिपराइच गोरखपुर मार्ग पर नगर पंचायत पिपराइच कार्यालय के सामने स्थित मोटेश्वर शिव मंदिर बहुत पुराना है. पूर्वांचल के लोगों के लिए आस्था का वरदान माना जाता है. समीति अध्यक्ष मनीष रामरायका बताते है कि पुरातन में जहां शिवलिंग स्थित है वहां के पूरे क्षेत्रफल में खेती कि जाती थी. वर्ष 1871में एक दिन एक किसान अपने खेत में जुताई कर रहा था. उसका हल एक पत्थर से टकरा गया. किसान ग्रामीणों के सहयोग से पत्थर की खुदाई शुरु कर दिया. खुदाई के दौरान वहां एक शिवलिंग के आकार का पत्थर निकाला. गांव वाले उसे शिवलिंग मान कर उसकी पूजा अर्चना के साथ स्थापना किये. आज भी शिवलिंग में कुदाल के चोट का निशा देखने को मिलेगा. धीरे धीरे यह पत्थर विशाल रुप धारण कर लिया इसके नाते इस का नाम मोटेश्वर नाथ पड़ा. जैसे जैसे समय वितता गया पत्थर बढ़ता गया.
कई साधू संत आए लेकिन मंदिर का विकास नहीं हुआ. जब स्वर्गीय शान्ति गिरी महराज 1945 - 46 में आये तो इस मंदिर को धीरे धीरे गोरखनाथ मंदिर का प्रारुप देना शुरु कर दिया. समय गुजरने के बाद उन्होंने अपने शिष्य संतोष गिरी को अपना उत्तराधिकारी बना कर अपना शरीर त्याग दिया. लगभग 25 वर्ष से संतोष गिरी महराज के देख रेख और मार्ग दर्शन में इस मंदिर को आगे की तरफ ले जा रहे है. आज मंदिर काफि विशाल हो चूका है. 1993 में पहले शान्ति गिरी महराज के प्रयास से कस्बे के कुछ लोगों को लेकर यहां पर जलाभिषेक कार्यक्रम, सरयू नदि से जल लाकर चढ़ाना शुरु कर दिया. धीरे धीर कावडिय़ों की संख्या बढ़ती गई और आज करीब 30 हजार कावडिया सावन के प्रत्येक सोमवार को जल चढ़ाने आते है. Conclusion:बड़हलगंज सरयू नदि से जो लोग जल लेकर आते है वह लोग लगभग 85 किमी पैदल चल कर पिपराइच आते है. आस पास के अधिकतर लोग वहां शुक्रवार को जाते है रात्रि वहां विश्राम करते है. शनिवार प्रातः संकल्प के साथ जल लेकर चलते है. लोगों का यह मान्यता है कि वहां से पांच वर्ष लगातार जल लाकर यहां चढाने से शिवशंकर से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. पुत्र धन का लाभ लोगों का होता है. हमारे यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम में मंदिर पर बड़े बड़े धर्मशाला बनाए गए है. गांव के लोगों का मानना है कि वे अपने कन्याओं की दिखाई कराते है तो शंकर जी की कृपा से उस कन्या का विवाह शिघ्र होता है. जिनके पुत्र नही होते है वह लोग हमारे वहां सर्वाधिक पूजा कराते है. 20 वर्ष से भव्य मेला लगता है. सावन के प्रत्येक सोमवार और नागपंचमी के दिन भव्य मेला लगता है. 40 वर्षों से मकरसंक्रांति का भव्य मेला लगता चला आरहा है. हमारे वहां भीम सरोवर भी है. जिस पर भीम भगवन भी है. और छठ मैय्या का भी एक मेला लगता है. जिस पर छठ मैय्या का मूर्ति स्थापना है.
बाइट- मनीष रामरायका (अध्यक्ष मोटेश्वर नाथ मंदिर)

मै यहां पर करीब 25 वर्षों से पूजापाठ कर रहा हूं. लोग बताते है कि यहां के मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. यह मंदिर जमीन की खुदाई करते समय शिवलिंग निकला. तब यह मंदिर बन कर के तैयार हुआ तब से लोग बड़हलगंज से जल लाकर भोले बाबा को चढाते है. और अपनी मन्नतें मांगते है हर वर्ष करीब डेढ सो गांव से लगभग 30 हजार कावड़िया जलाभिषेक करने आते है.

बाइट-संतोष गिरी ( मुख्य पूजारी मेटेश्वर नाथ मंदिर)

नौसढ़ बहरामपुर से आई हूं मेरा वहां पर मयका है मै अपने मम्मी के साथ आई हूं. 30 किमी पैदल कर मोटेश्वर नाथ का दर्शन करने आई हूं. मेरी मम्मी कई बार यहां आ चुकीं है. यहां के भोले नाथ से मेरी बहुत आस्था है. जो भी मन्नत मांगो पूरी हो जाती है.

बाइट- रीमा देबी (दर्शनार्थिनि)
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