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गोरखपुर: बकरीद की नमाज अदा कर अकीदतमंदों ने दिया भाईचारे का संदेश - bakrid celebration in gorakhpur

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बकरीद के मौके पर अकीदतमंदों ने नमाज अदा की. इस दौरान अकीदतमंदों ने अमन और तरक्की के लिए दुआ मांगी. साथ ही गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे के गले मिले और भाईचारे का संदेश दिया.

बकरीद पर पढ़ी गई नमाज.
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Published : Aug 12, 2019, 9:29 AM IST

गोरखपुरः जिले के बैलों स्थित मदरसा मकतब में बकरीद के अवसर पर अकीदतमंदों ने नमाज अदा की. पूरी दुनिया में एक साथ मनाए जाने वाले इस त्यौहार को मुस्लिम समाज के लोग कुर्बानी के रूप में मनाते हैं. मुस्लिम समुदाय का तीन दिवसीय यह त्यौहार अरबी कैलेंडर के मुताबिक जिलहिज्जा के 10 तारीख से शुरू होता है.

बकरीद की नमाज अदा करते अकीदतमंद.

कहां से शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा
जनपद के बैलों स्थित मदरसा मकतब के मौलाना आस मोहम्मद ने बताया कि जाईज मवेशियों को अल्लाह के नाम पर किसी खाश अवसर पर कुर्बान करने का नाम कुर्बानी है. कुर्बानी हजरते इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है. हजरते इब्राहिम के ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि आप अपने सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान करें. तब पहले हजरते इब्राहिम ने ऊंटों की कुर्बानी की. फिर पुनः दूसरे दिन भी वही ख्वाब देखा. तीसरे दिन उनकी नजर अपने बडे़ बेटे हजरते इस्माइल पर पड़ी तो देखा कि संसार में सबसे अजीज मेरे बेटे इस्माइल से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता है.

बेटे की दी कुर्बानी
अपने रबताला की राजामंदी के लिए हजरते इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल से अल्लाह के फरमान की सच्चाई बताई तो उनका बेटा भी हंसी-खुशी अपने रब पर जान न्यौछावर करने के लिए रजामंद हो गया. उसी दिन हजरते इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को साथ लेकर एक पहाड़ के किनारे सुनसान जगह पर पहुंच गए. यहां उन्होंने बेटे की आंखों पर पट्टी बांध दी और गले पर चमचमाती तेजधारी चाकू चला दी. कुछ देर बाद उनके बगल में फरिस्तों के सरदार हजरते जिब्रिल खडे़ हो गए. उन्होंने जिब्रिल से पूछा ये क्या मामला है तो फरिस्तों के सरदार ने जवाब दिया कि अल्लाह आप का इम्तहान ले रहा था. इसलिए स्वर्ग से दुंम्बा भेजा और आपके बेटे को महफूज करने का हुक्म दिया. वास्तव में आप अल्लाह के नेक पैगम्बरों में से एक हैं. उसी दिन से बकरीद के त्यौहार पर कुर्बानी करने की परंपरा कायम हुई.

इसे हज का महीना भी कहते हैं
इस पवित्र त्यौहार को दुनिया भर के अकीदतमंद एक साथ मनाते हैं. फिलहाल दो प्रमुख विशेषताएं सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं. पहला ईद-उल-अजहा के दिन ईदगाह में नमाज अदा की जाती है. इसके बाद जायज मवेशियों की कुर्बानी करना और दूसरा हज के अरकान पूरा करना. मुस्लिम बंदे पर हज फर्ज होने की कई शर्तें मुकम्मल होने पर इसकी अदायगी के लिए हजयात्रा करना होता है, जिनके ऊपर हज फर्ज हो जाता है उसको हज करने की नियत से सऊदी अरब के मक्का नामक शहर में स्थित काबा शरीफ जाना पड़ता है.

इसे भी पढ़ेः- स्वतंत्रता दिवस पर करिए राजभवन की सैर, राज्यपाल ने दिए निर्देश

मैं देशवासियों से अपने मुस्लिम भाइयों से गुजारिश करता हूं कि ऐ मेरे भाइयों अल्लाह के नाम पर जानवरों को कुर्बान कर देना काफी नहीं है. बल्कि इस मौके पर कुर्बानी की मंशा यह है कि जहां आप अपने जानवरों की कुर्बानी करते हैं, वही आप अपने नफरतों को कुर्बान कर दें और तमाम चीजों को कुर्बान कर के अपने गुनाहों को भी कुर्बान कर दें. आज अपने पापों को कुर्बान कर दें और एक दूसरे से गले मिलकर भाईचारे का सबूत दें.
-आस मोहम्मद मिस्वाही, मौलाना

गोरखपुरः जिले के बैलों स्थित मदरसा मकतब में बकरीद के अवसर पर अकीदतमंदों ने नमाज अदा की. पूरी दुनिया में एक साथ मनाए जाने वाले इस त्यौहार को मुस्लिम समाज के लोग कुर्बानी के रूप में मनाते हैं. मुस्लिम समुदाय का तीन दिवसीय यह त्यौहार अरबी कैलेंडर के मुताबिक जिलहिज्जा के 10 तारीख से शुरू होता है.

बकरीद की नमाज अदा करते अकीदतमंद.

कहां से शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा
जनपद के बैलों स्थित मदरसा मकतब के मौलाना आस मोहम्मद ने बताया कि जाईज मवेशियों को अल्लाह के नाम पर किसी खाश अवसर पर कुर्बान करने का नाम कुर्बानी है. कुर्बानी हजरते इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है. हजरते इब्राहिम के ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि आप अपने सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान करें. तब पहले हजरते इब्राहिम ने ऊंटों की कुर्बानी की. फिर पुनः दूसरे दिन भी वही ख्वाब देखा. तीसरे दिन उनकी नजर अपने बडे़ बेटे हजरते इस्माइल पर पड़ी तो देखा कि संसार में सबसे अजीज मेरे बेटे इस्माइल से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता है.

बेटे की दी कुर्बानी
अपने रबताला की राजामंदी के लिए हजरते इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल से अल्लाह के फरमान की सच्चाई बताई तो उनका बेटा भी हंसी-खुशी अपने रब पर जान न्यौछावर करने के लिए रजामंद हो गया. उसी दिन हजरते इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को साथ लेकर एक पहाड़ के किनारे सुनसान जगह पर पहुंच गए. यहां उन्होंने बेटे की आंखों पर पट्टी बांध दी और गले पर चमचमाती तेजधारी चाकू चला दी. कुछ देर बाद उनके बगल में फरिस्तों के सरदार हजरते जिब्रिल खडे़ हो गए. उन्होंने जिब्रिल से पूछा ये क्या मामला है तो फरिस्तों के सरदार ने जवाब दिया कि अल्लाह आप का इम्तहान ले रहा था. इसलिए स्वर्ग से दुंम्बा भेजा और आपके बेटे को महफूज करने का हुक्म दिया. वास्तव में आप अल्लाह के नेक पैगम्बरों में से एक हैं. उसी दिन से बकरीद के त्यौहार पर कुर्बानी करने की परंपरा कायम हुई.

इसे हज का महीना भी कहते हैं
इस पवित्र त्यौहार को दुनिया भर के अकीदतमंद एक साथ मनाते हैं. फिलहाल दो प्रमुख विशेषताएं सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं. पहला ईद-उल-अजहा के दिन ईदगाह में नमाज अदा की जाती है. इसके बाद जायज मवेशियों की कुर्बानी करना और दूसरा हज के अरकान पूरा करना. मुस्लिम बंदे पर हज फर्ज होने की कई शर्तें मुकम्मल होने पर इसकी अदायगी के लिए हजयात्रा करना होता है, जिनके ऊपर हज फर्ज हो जाता है उसको हज करने की नियत से सऊदी अरब के मक्का नामक शहर में स्थित काबा शरीफ जाना पड़ता है.

इसे भी पढ़ेः- स्वतंत्रता दिवस पर करिए राजभवन की सैर, राज्यपाल ने दिए निर्देश

मैं देशवासियों से अपने मुस्लिम भाइयों से गुजारिश करता हूं कि ऐ मेरे भाइयों अल्लाह के नाम पर जानवरों को कुर्बान कर देना काफी नहीं है. बल्कि इस मौके पर कुर्बानी की मंशा यह है कि जहां आप अपने जानवरों की कुर्बानी करते हैं, वही आप अपने नफरतों को कुर्बान कर दें और तमाम चीजों को कुर्बान कर के अपने गुनाहों को भी कुर्बान कर दें. आज अपने पापों को कुर्बान कर दें और एक दूसरे से गले मिलकर भाईचारे का सबूत दें.
-आस मोहम्मद मिस्वाही, मौलाना

Intro:पुरी दुनिया में एक साथ मनाये जाने वाला मुस्लिम समुदाय का तीन दिवसीय त्योहार ईद उल अजहा (बकरीद) की नमाज अकीदतमंदों ने अमनोआमान से अदा किया. खुतबा के बाद ईमान ने सामुहिक तौर पर मुल्क के अमन व तरक्की के लिए दुआ मांगी. अकीदतमंद गिलेशिकवे भूल कर एक दुसरे के गले मिले और भाईचारे का संदेश दिया.
पिपराइच गोरखपुरः उल्लेखनीय है कि मुस्लिम समुदाय का तीन दिवसीय त्योहार अरबी कैलेंडर के मुताबिक जिलहिज्जा के 10 तारीख से शुरु होता है हजरत इब्राहीम खलीलुल्लाह की याद को ताजा करने के लिए 10 वी,11वी,12वी जिलहिज्जा को कुर्बानी पेश किया जाता है. इस महीने को हज का महीना भी कहा जाता है. यह पवित्र त्योहार दुनिया भर के अकीदतमंद एक साथ मनाते है. इस त्यौहार की अनगिनत विशेषताएं है. फिलहाल दो प्रमुख विशेषताएं सर्वाधिक प्रसिद्ध. पहला ईद उल अजहा के दिन ईदगाह में नमाज अदायगी के बाद जाईज मवेशियों की कुर्बानी करना. दूसरा हज के अरकान पूरा करना. वैसे तो हज सब पे फर्ज नही है. मुस्लिम बंदे पर हज फर्ज होने की कई शर्तें मुकम्मल होने पर इसकी अदायगी के लिए हजयात्रा करना होता है. जिनके ऊपर हज फर्ज होजाता है. उसको हज करने की नियत से सऊदी अरबीया के मक्का नामक सहर में स्थित काबा शरीफ जाना पड़ता है. जिस दिन बकरीद की नमाज पढी जाती है उसी दिन हज के भी अरकान मक्का शरीफ में पुरा किये जाते है.Body:
&कुर्बानी क्या है और कुर्बानी की परम्परा कहां से कायम हुई&

जनपद के बैलों स्थित मदरसा मकतब के मौलाना आस मोहम्मद ने बताया कि जाईज मवेशियों को अल्लाह के नाम पर किसी खाश अवसर पर कुर्बान करने का नाम कुर्बानी है. कुर्बानी हजरते इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है. हजरते इब्राहिम (अ.स) के ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि आप अपने सबसे प्यारी और सबसे महबूब चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान करें. तब पहले दिन हजरते इब्राहिम (अ.स) ने पहले ऊंटों की कुर्बानी की पुनः दुसरे भी वही ख्वाब देखा, तीसरे दिन उनकी नजर अपने बडे बेटे हजरते इसमाईल (अ.स.) पर पड़ी तो देखा कि संसार में सबसे अजीज मेरा बेटा इस्माईल से बढ कर दुनिया में कुछ भी नही हो सकता है. अपने रबताला की राजामंदी के लिए हजरते इब्राहिम (अ.स.) ने अपने बेटे हजरत इस्माईल (अ.स.) से अल्लाह के फरमान की सच्चाई बताया तो उनका बेटा भी हसी खुसी अपने रब पर जान निछावर करने के लिए रजामंद हो गया. उन्होंने बेटे की कुर्बान देने की बात अपने पत्नी हजरते हाजरा से बताया. उनकी पत्नी ने भी बेटे की बलि देने की मंजूरी दे दिया. उसी दिन अपने बेटे इस्माइल (अ.स) को साथ लिए और एक पहाड के किनारे सुनसान जगह पर पहूंच कर अपने और बेटे की आंखों पर पट्टी बांध कर बेटे के गले पर चमचमाती तेजधारी चाकू चला दिया. आंखों से पट्टी हटाये तो देखा कि बेटा बगल मे है और एक दुंम्बा ( स्वर्गीय मवेशी) की गर्दन कट चूकी है. बगल में फरिस्तों के सरदार हजरते जिब्रिल (अ.स.) खडे है. उन्होने जिब्रिल से पुछा ये क्या मामला है तो फरिस्तो के सरदार ने जवाब दिया कि अल्लाह आप का इम्तहान ले रहा था. इसलिए स्वर्ग से दुंम्बा भेजा और आपके बेटे को महफूज करने का हुक्म दिया. वास्तव में आप अल्लाह के नेक पैगम्बरों में से एक है. उसी दिन से बकरीद के त्यौहार पर कुर्बानी करने की परम्परा कायम हुई.Conclusion:
हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे की कुर्बानी पेश की. रब के जानिब से मेढा आया और मेढे की कुर्बानी पेश हुई. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की बचत हुई. हजरत इब्राहिम अली सलाम की हिफाजत की गई. अब यहां अल्लाह ताला ने फरमाया ए इब्राहिम तुमने मेरे हुक्म को पूरा कर दिया. अब कुर्बानी मेढे की हुई. और वहीं उम्मते मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम को हुक्म हुआ कि रहती दुनिया तक उम्मते मोहम्मद कुर्बानी करेगी. आज हम ईद ए कुर्बा के मौके पर कुर्बानी पेश करते है. मै देशवासियों से अपने इस्लामी भाईयों से गुजारिश करता हुं कि ए मेरे भाईयों अल्लाह के नाम पर जानवरों को कुर्बान कर देना काफि नही है बल्कि इस मौके पर कुर्बानी की मंशा यह है की जहां आप अपने जानवरों की कुर्बानी करते हैं वही आप अपने नफरतों को कुर्बान कर दें. अपने एखतलाफ को भी कुर्बान कर दें. और दुश्मनी को भी कुर्बान कर दें. और तमाम चीजों को कुर्बान कर के अपने गुनाहों को भी कुर्बान कर दें. आज अपने पापों को कुर्बान कर दें और एक दूसरे से गले मिलकर भाईचारगी की सबूत दें. और मोहब्बत के साथ जिंदगी गुजारने की कोशिश करें और कुर्बानी करते समय इस बात यह ख्याल रखें कि हमारे दूसरे भाइयों को तकलीफ न पहूंचने पाये हो सके तो कुर्बानी को परदे के अन्दर अरें ज्यादा बेहतर होगा.

बाइट-आस मोहम्मद मिस्वाही (मौलाना)

रफिउल्लाह अन्सारी-8318103822
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