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EXCLUSIVE: ISRO चीफ का बड़ा खुलासा, NGLV से भारत को अंतरिक्ष में मिलेगा नया मुकाम - NEXT GENERATION LAUNCH VEHICLE

इसरो चीफ वी नारायणन ने ईटीवी भारत को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में NGLV के बारे में कई जानकारियां दी हैं. (अनुभा जैन की रिपोर्ट)

ISRO Chairman talks about NGLV in an exclusive interview with ETV Bharat
ईटीवी भारत के साथ नई पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल के बारे में एक्सक्लूसिव बात करते हुए इसरो चीफ (फोटो - ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Tech Team

Published : Feb 17, 2025, 4:22 PM IST

Updated : Feb 17, 2025, 4:30 PM IST

बेंगलुरु: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यूनियन कैबिनेट ने 16 जनवरी 2025 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित इसरो के सतीश धवन स्पेस सेंटर में तीसरे लॉन्च पैड (TLP) की स्थापना की मंजूरी दी है. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों और भविष्य के मिशन्स की सफलता के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है. इस कदम से 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष स्थापना (BAS) और संचालन के साथ-साथ चांद पर भारतीय एस्ट्रोनॉट्स की लैंडिंग तक में भी काफी मदद मिलेगी. इतना ही नहीं थर्ड लॉन्च पैड नेक्स्ट जनरेशन के लॉन्च व्हीकल (NGLV) को डेवलप करने में भी काफी मदद करेगा.

नया लॉन्च व्हीकल मौजूद लॉन्च व्हीकल LVM3 की तुलना में तीन गुना ज्यादा पेलोड क्षमता होगी. इसकी लागत भी 1.5 गुना ज्यादा होगी. हालांकि, NGLV की खास बात यह है कि उसे दोबारा भी उपयोग (Reusability) किया जा सकेगा. इसका मतलब है कि नए लॉन्च व्हीकल को एक बार लॉन्च करने के बाद फिर से भी इस्तेमाल किया जा सकेगा, इससे अंतरिक्ष में जाने की लागत कम हो जाएगी. नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल में ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम होगा, जो पर्यावरण को बेहतर बनाए रखने में मदद करेगा.

ISRO launch vehicles at a glance
इसरो के लॉन्च व्हीकल्स (फोटो - ISRO)

इस वक्त भारत के पास बहुत सारे रॉकेट हैं, जैसे- PSLV, GSLV, LVM3 और SSLV, जिनका इस्तेमाल सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए किया जाता है. इन रॉकेट्स के जरिए इसरो 10 टन तक के सैटेलाइट्स को पृथ्वी की निचली कक्षा यानी लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) में भेज सकता है और 4 टन तक के सैटेलाइट्स को जियो-सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में भेज सकता है.

अब एक नया थर्ड लॉन्च पैड बनाया जाएगा, जो इन रॉकेट्स को लॉन्च करने के लिए यूज़ होगा और उसके जरिए अंतरिक्ष यात्रा का एक नया युग शुरू होगा, जो इसरो और भारत की विश्व की अंतरिक्ष उपलब्धियों में एक नई ऊंचाईयों तक लेकर जाने में मदद करेगा. इसरो के नए अध्यक्ष, वी नायारणन ने ईटीवी भारत को दिए एक स्पेशल इंटरव्यू में नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी.

उन्होंने बताया कि, "इसरो ने अपनी यात्रा 1979 में एक छोटे से रॉकेट SLV-3 से शुरू की थी, जो सिर्फ 40 किलोग्राम का पेलोड (सामान) ही पृथ्वी की निचली ऑर्बिट तक लेकर जा सकता था, उसके बाद इतने वर्षों में इसरो ने 6 जनरेशन्स के लॉन्च व्हीकल डेवलप किए जिनमें - SLV 3, ASLV, PSLV, GSLV Mk II, GSLV Mk III और SSLV शामिल हैं. हाल ही में इसरो ने अपने 100वें लॉन्च की उपलब्धि भी हासिल की थी. तब से लेकर अब तक में पेलोड क्षमता काफी बढ़ी है. अब 8,500 किलोग्राम तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा तक लेकर जाया जा सकता है."

30,000 किलोग्राम तक का पेलोड

उन्होंने कहा कि, अब NGLV की क्षमता इससे भी बहुत अधिक होगी, क्योंकि वो 30,000 किलोग्राम तक का पेलोड लेकर अंतरिक्ष तक जा पाएगा. यह क्षमता SLV-3 की तुलना में 1000 गुना ज्यादा होगी. NGLV की लंबाई 93 मीटर होगी और उसका वजन 1000 टन होगा. इसमें तीन स्टेज और दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन बूस्टर होंगे, जिनमें से हरेक में 190 टन प्रोपेलैंट होगा.

उन्होंने बताया कि पहला स्टेज नौ इंजन के द्वारा चलेगा, जिनमें हरेक इंजन 100 टन थ्रस्ट जनरेट करेगा और इसमें 475 टन प्रोपेलैंट होगा. वहीं, दूसरे स्टेज में दो इंजन होंगे, जबकि ऊपर C32 क्रायोजेनिक स्टेज में लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हायड्रोजन प्रोपेलेंट का कॉम्बिनेशन उपयोग किया जाएगा. इसरो चीफ ने इसे समझाते हुए कहा कि नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल इसरो की स्पेस एक्सप्लोर करने की क्षमता को बढ़ा देंगे.

"इसरो के अध्यक्ष ने बताया कि, पिछले लॉन्च व्हीकल्स एक ही बार इस्तेमाल करने के लिए डिजाइन किए गए थे, लेकिन नई व्हीकल में एक बेहद महत्वपूर्ण विशेषता - फर्स्ट स्टेज में रिकवरी और रीयूज़ है, जो इसे ज्यादा उपयोगी बनाता है. यह नया इनोवेशन हमारे लिए एक महत्वपूर्ण छलांग है, जो अंतरिक्ष मिशन में आने वाले खर्च को कम करेगा और स्पेस ऑपरेशन्स में स्थिरता भी प्रदान करेगा. फर्स्ट स्टेज को लॉन्च के बाद फिर से रिकवर किया जाएगा, जो फिर से फ्यूचर में होने वाले अंतरिक्ष मिशन के लिए तैयारी करेंगे."

NGLV के बनने से भारत के नेशनल और कमर्शियल मिशन्स सक्षम और आसान हो जाएंगे, जिनमें भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन तक ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की खोज के साथ-साथ पृथ्वी की निचली कक्षा में पृथ्वी का अवलोकन करने के लिए सैटेलाइट और कम्यूनिकेशन समेत देश के पूरे स्पेस इकोसिस्टम को फायदा पहुंचाएगा. इस प्रोजेक्ट से इंडियन स्पेस इकोसिस्टम की काबिलियत और क्षमता बढ़ेगी. इस पर कुल 8,240 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें डवलेपमेंट कॉस्ट, तीन डेवलपमेंटल फ्लाइट्स, प्रोग्राम मैनेजमेंट और लॉन्च कैंपन शामिल होंगे.

2032 तक पूरा होगा प्लान

इसरो के स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के प्रोग्राम डायरेक्टर और वीएसएससी में नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च वाहन (NGLV) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस. शिवकुमार, पिछले 8 सालों में NGLV के लिए किए गए डेवलपमेंट की निगरानी कर रहे हैं, जिसे दिसंबर 2032 तक पूरा किया जाएगा. उन्होंने इस प्रोजेक्ट के दौरान आने वाली आगे की चुनौतियों के बारे में बात करते हुए कहा कि, "यह एक बहुत बड़ा काम है. अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन को बनाने से लेकर चंद्रमा पर उतरने तक, सभी कुछ के लिए नए सिस्टम और व्हीकल कॉन्फ़िगरेशन की जरूरत होगी. हमारा लक्ष्य एक ऐसा स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम स्थापित करना है जो पेलोड के लिए कॉस्ट-इफेक्टिव और सुविधाजनक होगा, फिर चाहे वो कार्गो हो, ह्यूमन हो या फिर कोई वैज्ञानिक प्रयोग हो."

फिलहाल, भारत का स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम दो लॉन्च पैड्स पर निर्भर रहता है. इनमें PSLV और SSLV के लिए फर्स्ट लॉन्च पैड (FLP) जबकि GSLV और LVM3 के लिए सेकंड लॉन्च पैड (SLP) शामिल है. फर्स्ट लॉन्च पैड की स्थापना 30 साल पहले हुई थी और सेकंड लॉन्च पैड करीब पिछले 20 साल से सेवा दे रहा है और इसी लॉन्च पैड से चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया था और अब गगनयान ह्यूमन स्पेसफ्लाइट को भी इसी लॉन्च पैड से लॉन्च करने की तैयारी की जा रही है.

2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) और 2040 तक एस्ट्रोनॉट्स के चांद पर लैंड करने जैसे भारत के कई बड़े स्पेस मिशन्स हैं, जिनके लिए भारी लॉन्च व्हीकल्स और ए़डवांस प्रपल्शन सिस्टम्स की जरूरत पड़ेगी और उसके लिए थर्ड लॉन्च पैड की जरूरत है. नया लॉन्च पैड नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल्स (NGLV) को सपोर्ट करेगा और सेकंड लॉन्च पैड के बैकअप के रूप में काम करेगा. इससे अगले 25-30 सालों में भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं और काबिलियत में काफी बढ़ोतरी होगी.

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नया लॉन्च व्हीकल मौजूद लॉन्च व्हीकल LVM3 की तुलना में तीन गुना ज्यादा पेलोड क्षमता होगी. इसकी लागत भी 1.5 गुना ज्यादा होगी. हालांकि, NGLV की खास बात यह है कि उसे दोबारा भी उपयोग (Reusability) किया जा सकेगा. इसका मतलब है कि नए लॉन्च व्हीकल को एक बार लॉन्च करने के बाद फिर से भी इस्तेमाल किया जा सकेगा, इससे अंतरिक्ष में जाने की लागत कम हो जाएगी. नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल में ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम होगा, जो पर्यावरण को बेहतर बनाए रखने में मदद करेगा.

ISRO launch vehicles at a glance
इसरो के लॉन्च व्हीकल्स (फोटो - ISRO)

इस वक्त भारत के पास बहुत सारे रॉकेट हैं, जैसे- PSLV, GSLV, LVM3 और SSLV, जिनका इस्तेमाल सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए किया जाता है. इन रॉकेट्स के जरिए इसरो 10 टन तक के सैटेलाइट्स को पृथ्वी की निचली कक्षा यानी लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) में भेज सकता है और 4 टन तक के सैटेलाइट्स को जियो-सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में भेज सकता है.

अब एक नया थर्ड लॉन्च पैड बनाया जाएगा, जो इन रॉकेट्स को लॉन्च करने के लिए यूज़ होगा और उसके जरिए अंतरिक्ष यात्रा का एक नया युग शुरू होगा, जो इसरो और भारत की विश्व की अंतरिक्ष उपलब्धियों में एक नई ऊंचाईयों तक लेकर जाने में मदद करेगा. इसरो के नए अध्यक्ष, वी नायारणन ने ईटीवी भारत को दिए एक स्पेशल इंटरव्यू में नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी.

उन्होंने बताया कि, "इसरो ने अपनी यात्रा 1979 में एक छोटे से रॉकेट SLV-3 से शुरू की थी, जो सिर्फ 40 किलोग्राम का पेलोड (सामान) ही पृथ्वी की निचली ऑर्बिट तक लेकर जा सकता था, उसके बाद इतने वर्षों में इसरो ने 6 जनरेशन्स के लॉन्च व्हीकल डेवलप किए जिनमें - SLV 3, ASLV, PSLV, GSLV Mk II, GSLV Mk III और SSLV शामिल हैं. हाल ही में इसरो ने अपने 100वें लॉन्च की उपलब्धि भी हासिल की थी. तब से लेकर अब तक में पेलोड क्षमता काफी बढ़ी है. अब 8,500 किलोग्राम तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा तक लेकर जाया जा सकता है."

30,000 किलोग्राम तक का पेलोड

उन्होंने कहा कि, अब NGLV की क्षमता इससे भी बहुत अधिक होगी, क्योंकि वो 30,000 किलोग्राम तक का पेलोड लेकर अंतरिक्ष तक जा पाएगा. यह क्षमता SLV-3 की तुलना में 1000 गुना ज्यादा होगी. NGLV की लंबाई 93 मीटर होगी और उसका वजन 1000 टन होगा. इसमें तीन स्टेज और दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन बूस्टर होंगे, जिनमें से हरेक में 190 टन प्रोपेलैंट होगा.

उन्होंने बताया कि पहला स्टेज नौ इंजन के द्वारा चलेगा, जिनमें हरेक इंजन 100 टन थ्रस्ट जनरेट करेगा और इसमें 475 टन प्रोपेलैंट होगा. वहीं, दूसरे स्टेज में दो इंजन होंगे, जबकि ऊपर C32 क्रायोजेनिक स्टेज में लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हायड्रोजन प्रोपेलेंट का कॉम्बिनेशन उपयोग किया जाएगा. इसरो चीफ ने इसे समझाते हुए कहा कि नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल इसरो की स्पेस एक्सप्लोर करने की क्षमता को बढ़ा देंगे.

"इसरो के अध्यक्ष ने बताया कि, पिछले लॉन्च व्हीकल्स एक ही बार इस्तेमाल करने के लिए डिजाइन किए गए थे, लेकिन नई व्हीकल में एक बेहद महत्वपूर्ण विशेषता - फर्स्ट स्टेज में रिकवरी और रीयूज़ है, जो इसे ज्यादा उपयोगी बनाता है. यह नया इनोवेशन हमारे लिए एक महत्वपूर्ण छलांग है, जो अंतरिक्ष मिशन में आने वाले खर्च को कम करेगा और स्पेस ऑपरेशन्स में स्थिरता भी प्रदान करेगा. फर्स्ट स्टेज को लॉन्च के बाद फिर से रिकवर किया जाएगा, जो फिर से फ्यूचर में होने वाले अंतरिक्ष मिशन के लिए तैयारी करेंगे."

NGLV के बनने से भारत के नेशनल और कमर्शियल मिशन्स सक्षम और आसान हो जाएंगे, जिनमें भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन तक ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की खोज के साथ-साथ पृथ्वी की निचली कक्षा में पृथ्वी का अवलोकन करने के लिए सैटेलाइट और कम्यूनिकेशन समेत देश के पूरे स्पेस इकोसिस्टम को फायदा पहुंचाएगा. इस प्रोजेक्ट से इंडियन स्पेस इकोसिस्टम की काबिलियत और क्षमता बढ़ेगी. इस पर कुल 8,240 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें डवलेपमेंट कॉस्ट, तीन डेवलपमेंटल फ्लाइट्स, प्रोग्राम मैनेजमेंट और लॉन्च कैंपन शामिल होंगे.

2032 तक पूरा होगा प्लान

इसरो के स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के प्रोग्राम डायरेक्टर और वीएसएससी में नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च वाहन (NGLV) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस. शिवकुमार, पिछले 8 सालों में NGLV के लिए किए गए डेवलपमेंट की निगरानी कर रहे हैं, जिसे दिसंबर 2032 तक पूरा किया जाएगा. उन्होंने इस प्रोजेक्ट के दौरान आने वाली आगे की चुनौतियों के बारे में बात करते हुए कहा कि, "यह एक बहुत बड़ा काम है. अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन को बनाने से लेकर चंद्रमा पर उतरने तक, सभी कुछ के लिए नए सिस्टम और व्हीकल कॉन्फ़िगरेशन की जरूरत होगी. हमारा लक्ष्य एक ऐसा स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम स्थापित करना है जो पेलोड के लिए कॉस्ट-इफेक्टिव और सुविधाजनक होगा, फिर चाहे वो कार्गो हो, ह्यूमन हो या फिर कोई वैज्ञानिक प्रयोग हो."

फिलहाल, भारत का स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम दो लॉन्च पैड्स पर निर्भर रहता है. इनमें PSLV और SSLV के लिए फर्स्ट लॉन्च पैड (FLP) जबकि GSLV और LVM3 के लिए सेकंड लॉन्च पैड (SLP) शामिल है. फर्स्ट लॉन्च पैड की स्थापना 30 साल पहले हुई थी और सेकंड लॉन्च पैड करीब पिछले 20 साल से सेवा दे रहा है और इसी लॉन्च पैड से चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया था और अब गगनयान ह्यूमन स्पेसफ्लाइट को भी इसी लॉन्च पैड से लॉन्च करने की तैयारी की जा रही है.

2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) और 2040 तक एस्ट्रोनॉट्स के चांद पर लैंड करने जैसे भारत के कई बड़े स्पेस मिशन्स हैं, जिनके लिए भारी लॉन्च व्हीकल्स और ए़डवांस प्रपल्शन सिस्टम्स की जरूरत पड़ेगी और उसके लिए थर्ड लॉन्च पैड की जरूरत है. नया लॉन्च पैड नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल्स (NGLV) को सपोर्ट करेगा और सेकंड लॉन्च पैड के बैकअप के रूप में काम करेगा. इससे अगले 25-30 सालों में भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं और काबिलियत में काफी बढ़ोतरी होगी.

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Last Updated : Feb 17, 2025, 4:30 PM IST
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