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गोरखपुर में रोजाना 200 लोग बने रहे स्ट्रीट डॉग के शिकार, इलाज सिर्फ एक जगह की उपलब्ध

कुत्ते सबसे वफादार पालतू पशु माने जाते हैं, मगर इनकी बाइट लोगों को मुसीबत में डाल देती है. गोरखपुर में रोजाना औसतन 200 लोग कुत्तों का शिकार बन रहे हैं ( Dog bite cases in Gorakhpur). इतने सारे मामले को हैंडल करने के लिए पूरा जिला एक ही अस्पताल पर निर्भर है. जिले में डॉग बाइट रेबीज वैक्सीन (Dog bite Rabies Vaccine) देने वाले चुनिंदा प्राइवेट हॉस्पिटल ही हैं.

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Etv Bharat Rabies Vaccine in Gorakhpur
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Published : Dec 5, 2022, 7:08 PM IST

Updated : Dec 5, 2022, 8:06 PM IST

गोरखपुर : पालतू हों या आवारा, हमलावर कुत्तों की खबर आए दिन सुर्खियां बन रही हैं. कभी नोएडा के बड़े-बड़े अपार्टमेंट की लिफ्ट में कुत्ते बच्चों पर अटैक करते हुए नजर आए तो कभी यूपी के अस्पतालों में शव नोचने की खबर लोगों को हैरानी में डाल गई. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी कुत्तों का आतंक है. गोरखपुर जिला अस्पताल के आंकड़ों को देखें तो यह पता चलता है कि जिले में रोजाना औसतन 121 लोगों को कुत्ते (Dog bite Cases in Gorakhpur) काट रहे हैं. यहां के नगर निगम, जिला पंचायत और नगर पंचायत के पास स्ट्रीट डॉग को पकड़ने के कोई इंतजाम नहीं है.

गोरखपुर में रोजाना 200 लोग बने रहे स्ट्रीट डॉग के शिकार.

गोरखपुर में नवंबर महीने में ही 17 दिन में करीब 2065 लोगों को स्ट्रीट डॉग ने अपना शिकार बनाया. रोजाना गोरखपुर जिला अस्पताल में नए और पुराने मिलाकर कुल 170 से लेकर 220 लोगों को वैक्सीन लगाई जाती है. जिला अस्पताल का प्रबंधन भी डॉग बाइट यानी कुत्तों के काटने के मामले से परेशान है. जिला अस्पताल के एसआईसी डॉक्टर राजेंद्र ठाकुर कहते हैं कि कुत्ता काटने के बाद रेबीज के वैक्सीन लगाई जाती है. यह वैक्सीन सिर्फ जिला अस्पताल में उपलब्ध है. अगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भी इसके वैक्सीन लगाए जाते तो जिला अस्पताल का लोड कम होता. उनका कहना है कि स्ट्रीट डॉग बाइट के मामले पहले के मुकाबले बढ़े हैं. इस कारण कभी-कभी वैक्सीन की शॉर्टेज महसूस होती है. हालांकि ऐसी स्थिति में मुख्यालय जानकारी भेजकर रेबीज की वैक्सीन समय से मंगा ली जाती है.

कुत्तों के शिकार बने लोगों की एक और मुसीबत है. जिला अस्पताल के आर्मी सेंटर पर पेशेंट को सिर्फ फर्स्ट बाइट की वैक्सीन लगाई जाती है. मगर जब डॉग बाइट गंभीर होती है तो अस्पताल प्रबंधन मरीज को बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर देता है. दो या तीन बाइट वाले पेशेंट के इलाज के लिए जिला अस्पताल में कोई व्यवस्था नहीं है. यहां ई-मेमो ग्लोबिन वैक्सीन की सप्लाई नहीं होती है. कई बार तो जिला अस्पताल में भी वैक्सीन का टोटा हो जाता है. ऐसे हालात में वन बाइट यानी मामूली तौर से जख्मी हुए मरीज को प्राइवेट अस्पतालों में एक बार वैक्सीन लगाने के लिए 300 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. गहरे जख्म वाले मरीजों को 3000 रुपये तक खर्च करना पड़ता है. प्रॉब्लम यह है कि गोरखपुर के सभी प्राइवेट हॉस्पिटल्स में रेबीज की वैक्सीन उपलब्ध नहीं होती है.

अब सवाल यह है कि जब गोरखपुर में डॉग बाइट के केस बढ़ रहे हैं तो नगर निगम उन्हें पकड़ने और नसबंदी जैसे उपाय क्यों नहीं कर रहा है ? इस संबंध में नगर आयुक्त अविनाश कुमार सिंह ने कहा कि फिलहाल नगर निगम के पास कुत्तों को पकड़ने की व्यवस्था नहीं है. जल्दी ही कोई न कोई व्यवस्था बनाई जाएगी.

पढ़ें : चलते-चलते आई छींक और युवक की हो गई मौत, देखें मौत का लाइव वीडियो

गोरखपुर : पालतू हों या आवारा, हमलावर कुत्तों की खबर आए दिन सुर्खियां बन रही हैं. कभी नोएडा के बड़े-बड़े अपार्टमेंट की लिफ्ट में कुत्ते बच्चों पर अटैक करते हुए नजर आए तो कभी यूपी के अस्पतालों में शव नोचने की खबर लोगों को हैरानी में डाल गई. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी कुत्तों का आतंक है. गोरखपुर जिला अस्पताल के आंकड़ों को देखें तो यह पता चलता है कि जिले में रोजाना औसतन 121 लोगों को कुत्ते (Dog bite Cases in Gorakhpur) काट रहे हैं. यहां के नगर निगम, जिला पंचायत और नगर पंचायत के पास स्ट्रीट डॉग को पकड़ने के कोई इंतजाम नहीं है.

गोरखपुर में रोजाना 200 लोग बने रहे स्ट्रीट डॉग के शिकार.

गोरखपुर में नवंबर महीने में ही 17 दिन में करीब 2065 लोगों को स्ट्रीट डॉग ने अपना शिकार बनाया. रोजाना गोरखपुर जिला अस्पताल में नए और पुराने मिलाकर कुल 170 से लेकर 220 लोगों को वैक्सीन लगाई जाती है. जिला अस्पताल का प्रबंधन भी डॉग बाइट यानी कुत्तों के काटने के मामले से परेशान है. जिला अस्पताल के एसआईसी डॉक्टर राजेंद्र ठाकुर कहते हैं कि कुत्ता काटने के बाद रेबीज के वैक्सीन लगाई जाती है. यह वैक्सीन सिर्फ जिला अस्पताल में उपलब्ध है. अगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भी इसके वैक्सीन लगाए जाते तो जिला अस्पताल का लोड कम होता. उनका कहना है कि स्ट्रीट डॉग बाइट के मामले पहले के मुकाबले बढ़े हैं. इस कारण कभी-कभी वैक्सीन की शॉर्टेज महसूस होती है. हालांकि ऐसी स्थिति में मुख्यालय जानकारी भेजकर रेबीज की वैक्सीन समय से मंगा ली जाती है.

कुत्तों के शिकार बने लोगों की एक और मुसीबत है. जिला अस्पताल के आर्मी सेंटर पर पेशेंट को सिर्फ फर्स्ट बाइट की वैक्सीन लगाई जाती है. मगर जब डॉग बाइट गंभीर होती है तो अस्पताल प्रबंधन मरीज को बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर देता है. दो या तीन बाइट वाले पेशेंट के इलाज के लिए जिला अस्पताल में कोई व्यवस्था नहीं है. यहां ई-मेमो ग्लोबिन वैक्सीन की सप्लाई नहीं होती है. कई बार तो जिला अस्पताल में भी वैक्सीन का टोटा हो जाता है. ऐसे हालात में वन बाइट यानी मामूली तौर से जख्मी हुए मरीज को प्राइवेट अस्पतालों में एक बार वैक्सीन लगाने के लिए 300 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. गहरे जख्म वाले मरीजों को 3000 रुपये तक खर्च करना पड़ता है. प्रॉब्लम यह है कि गोरखपुर के सभी प्राइवेट हॉस्पिटल्स में रेबीज की वैक्सीन उपलब्ध नहीं होती है.

अब सवाल यह है कि जब गोरखपुर में डॉग बाइट के केस बढ़ रहे हैं तो नगर निगम उन्हें पकड़ने और नसबंदी जैसे उपाय क्यों नहीं कर रहा है ? इस संबंध में नगर आयुक्त अविनाश कुमार सिंह ने कहा कि फिलहाल नगर निगम के पास कुत्तों को पकड़ने की व्यवस्था नहीं है. जल्दी ही कोई न कोई व्यवस्था बनाई जाएगी.

पढ़ें : चलते-चलते आई छींक और युवक की हो गई मौत, देखें मौत का लाइव वीडियो

Last Updated : Dec 5, 2022, 8:06 PM IST
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