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गाजीपुर का टेरी घाट रेलवे स्टेशन कैसे बन गया ताड़ी घाट, सुनिए इतिहासकार की जुबानी - टेरी घाट

गाजीपुर को वीर सपूतों की धरती के नाम से भी जाना जाता है. इसी जिले में गंगा नदी के किनारे ताड़ी घाट रेलवे स्टेशन है. इतिहासकार ओबेदुर रहमान बताते हैं कि इस स्टेशन पर रवींद्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद का भी आगमन हो चुका है.

गाजीपुर का टेरी घाट रेलवे स्टेशन कैसे बन गया ताड़ी घाट
गाजीपुर का टेरी घाट रेलवे स्टेशन कैसे बन गया ताड़ी घाट
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Published : Feb 8, 2021, 10:48 AM IST

Updated : Feb 9, 2021, 8:27 AM IST

गाजीपुर: जिले में एक ऐसा स्टेशन है जो काफी पुराना इतिहास अपने आप मे समेटे हुए है. हम बात कर रहे हैं गाजीपुर जिले के ताड़ी घाट रेलवे स्टेशन की, जिसकी स्थापना 5 अक्टूबर 1880 में हुई थी. इस स्टेशन का नाम टेरी नाम के एक अंग्रेज के नाम पर टेरी घाट रखा गया था, लेकिन अब यह स्टेशन ताड़ी घाट हो चुका है, जिस समय इस स्टेशन का शुभारंभ हुआ था, उस समय सबसे पहली भाप इंजन ट्रेन का परिचालन शुरू हुआ था. गाजीपुर का ताड़ीघाट रेलवे स्टेशन आज 141 साल बाद इलेक्ट्रिक इंजन तक पहुंच चुका है.

जानकारी देते इतिहासकार

टेरी से ताड़ीघाट की कहानी

जानकार बताते हैं कि यह रेलवे स्टेशन पहले टेरी घाट के नाम से शुरू हुआ और आज ताड़ीघाट के नाम से जाना जा रहा है. इस स्टेशन पर गुलाब की महक की ख्याति को सुनकर रविंद्र नाथ टैगोर का भी जनपद आगमन इसी स्टेशन के पर हुआ था. अपने 6 माह के प्रवास के दौरान उन्होंने यहां करीब 28 कविताएं भी लिखीं. इतना ही नहीं स्वामी विवेकानंद भी इस स्टेशन की यात्रा कर जनपद आ चुके हैं.

ताड़ीघाट को जिला मुख्यालय से जोड़ने का प्रस्ताव भी ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा रखा गया था, जिसके लिए बकायदे 8500 का टेंडर भी किया गया था. लेकिन उस वक्त लगातार स्वतंत्रता आंदोलन के चलते यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया, लेकिन मोदी सरकार बनने के बाद उस वक्त का प्रोजेक्ट पटेल आयोग में भी शुमार हुआ था. पटेल आयोग की संस्तुति के अनुसार तत्कालीन रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के द्वारा इस ताड़ीघाट को गंगा नदी पर ब्रिज बनाकर जिला मुख्यालय से मिलाने का कार्य मौजूदा समय में चल रहा है.

इतिहासकार ओबेदुर रहमान जनपद के जाने-माने इतिहासकारों में शुमार हैं. वे अब तक कई पुस्तकें लिख चुके हैं, जो उर्दू और हिंदी जुबान में भी हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त स्टेशन के निर्माण का मेन मकसद व्यवसाय को बढ़ावा देना और अधिक से अधिक राजस्व की प्राप्ति के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा इसका निर्माण कराया गया था. क्योंकि उसके पूर्व जनपद में व्यवसाय का एकमात्र साधन गंगा नदी थी, जिसमें नाव और स्ट्रीमर के माध्यम से व्यवसाय किया जाता था.

रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बिताए छह माह

उन्होंने बताया कि जनपद गाजीपुर का यह ताड़ीघाट स्टेशन अपने आप में भी ऐतिहासिक स्टेशन है, क्योंकि इसी स्टेशन पर रविंद्र नाथ टैगोर गाजीपुर में हो रही गुलाब की खेती की महक की ख्याति को सुनकर आए थे, क्योंकि एक अंग्रेज लेखक ने अपने पुस्तक में लिखा था कि गाजीपुर की हर गली और चौराहे पर गुलाब की खुशबू मिलती है. इसी खुशबू के लिए रविंद्र नाथ टैगोर ने गाजीपुर की यात्रा की थी. उन्होने अपने छह माह के प्रवास के दौरान करीब 28 कविताएं लिखी. गाजीपुर के 6 माह के प्रवास का वृतांत उन्होंने मानसी में भी लिखा हुआ है.

स्वामी विवेकानंद का गाजीपुर आगमन

उन्होंने बताया कि इसके अलावा इसी स्टेशन पर स्वामी विवेकानंद का भी आगमन हो चुका है, क्योंकि उस वक्त जनपद के रहने वाले पवहारी बाबा की ख्याति जनपद गाजीपुर ही नहीं देश के कोने कोने में थी. उन्हीं से मुलाकात के लिए स्वामी विवेकानंद भी गाजीपुर स्टेशन पर आए थे, फिर यहां से इक्का गाड़ी से गाजीपुर के कुर्था गांव स्थित पवहारी आश्रम गए थे. उनके कई दिनों के इंतजार के बाद भी पवहारी बाबा से मुलाकात नहीं हो पाई थी.

दिलदारनगर से ताड़ी घाट के विषय में जानकारी के लिए डब्लयू इरविन की गाज़ीपुर गजेटियर , गाज़ीपुर ,पृष्ठ 34 तथा नेविल का गाज़ीपुर गजेटियर ,खंड 29 ,पृष्ठ 121 तथा फिशर एंड गिल ,गाज़ीपुर गजेटियर ,खंड 29,भाग 2 ,पृष्ठ 58 पर विववरण दर्ज है कि जनपद में सबसे पहले रेलवे लाइन 1862 में जमानिया ,भदौरा गहमर प्रोजेक्ट शुरू हुआ और उसके बाद दिलदारनगर , नगसर तथा ताड़ी घाट प्रोजेक्ट 1880 में पूर्ण हुआ. इसके बाद 1902 में गाज़ीपुर औरहर ,बलिया पूर्ण हुआ था.

गाजीपुर: जिले में एक ऐसा स्टेशन है जो काफी पुराना इतिहास अपने आप मे समेटे हुए है. हम बात कर रहे हैं गाजीपुर जिले के ताड़ी घाट रेलवे स्टेशन की, जिसकी स्थापना 5 अक्टूबर 1880 में हुई थी. इस स्टेशन का नाम टेरी नाम के एक अंग्रेज के नाम पर टेरी घाट रखा गया था, लेकिन अब यह स्टेशन ताड़ी घाट हो चुका है, जिस समय इस स्टेशन का शुभारंभ हुआ था, उस समय सबसे पहली भाप इंजन ट्रेन का परिचालन शुरू हुआ था. गाजीपुर का ताड़ीघाट रेलवे स्टेशन आज 141 साल बाद इलेक्ट्रिक इंजन तक पहुंच चुका है.

जानकारी देते इतिहासकार

टेरी से ताड़ीघाट की कहानी

जानकार बताते हैं कि यह रेलवे स्टेशन पहले टेरी घाट के नाम से शुरू हुआ और आज ताड़ीघाट के नाम से जाना जा रहा है. इस स्टेशन पर गुलाब की महक की ख्याति को सुनकर रविंद्र नाथ टैगोर का भी जनपद आगमन इसी स्टेशन के पर हुआ था. अपने 6 माह के प्रवास के दौरान उन्होंने यहां करीब 28 कविताएं भी लिखीं. इतना ही नहीं स्वामी विवेकानंद भी इस स्टेशन की यात्रा कर जनपद आ चुके हैं.

ताड़ीघाट को जिला मुख्यालय से जोड़ने का प्रस्ताव भी ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा रखा गया था, जिसके लिए बकायदे 8500 का टेंडर भी किया गया था. लेकिन उस वक्त लगातार स्वतंत्रता आंदोलन के चलते यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया, लेकिन मोदी सरकार बनने के बाद उस वक्त का प्रोजेक्ट पटेल आयोग में भी शुमार हुआ था. पटेल आयोग की संस्तुति के अनुसार तत्कालीन रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के द्वारा इस ताड़ीघाट को गंगा नदी पर ब्रिज बनाकर जिला मुख्यालय से मिलाने का कार्य मौजूदा समय में चल रहा है.

इतिहासकार ओबेदुर रहमान जनपद के जाने-माने इतिहासकारों में शुमार हैं. वे अब तक कई पुस्तकें लिख चुके हैं, जो उर्दू और हिंदी जुबान में भी हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त स्टेशन के निर्माण का मेन मकसद व्यवसाय को बढ़ावा देना और अधिक से अधिक राजस्व की प्राप्ति के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा इसका निर्माण कराया गया था. क्योंकि उसके पूर्व जनपद में व्यवसाय का एकमात्र साधन गंगा नदी थी, जिसमें नाव और स्ट्रीमर के माध्यम से व्यवसाय किया जाता था.

रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बिताए छह माह

उन्होंने बताया कि जनपद गाजीपुर का यह ताड़ीघाट स्टेशन अपने आप में भी ऐतिहासिक स्टेशन है, क्योंकि इसी स्टेशन पर रविंद्र नाथ टैगोर गाजीपुर में हो रही गुलाब की खेती की महक की ख्याति को सुनकर आए थे, क्योंकि एक अंग्रेज लेखक ने अपने पुस्तक में लिखा था कि गाजीपुर की हर गली और चौराहे पर गुलाब की खुशबू मिलती है. इसी खुशबू के लिए रविंद्र नाथ टैगोर ने गाजीपुर की यात्रा की थी. उन्होने अपने छह माह के प्रवास के दौरान करीब 28 कविताएं लिखी. गाजीपुर के 6 माह के प्रवास का वृतांत उन्होंने मानसी में भी लिखा हुआ है.

स्वामी विवेकानंद का गाजीपुर आगमन

उन्होंने बताया कि इसके अलावा इसी स्टेशन पर स्वामी विवेकानंद का भी आगमन हो चुका है, क्योंकि उस वक्त जनपद के रहने वाले पवहारी बाबा की ख्याति जनपद गाजीपुर ही नहीं देश के कोने कोने में थी. उन्हीं से मुलाकात के लिए स्वामी विवेकानंद भी गाजीपुर स्टेशन पर आए थे, फिर यहां से इक्का गाड़ी से गाजीपुर के कुर्था गांव स्थित पवहारी आश्रम गए थे. उनके कई दिनों के इंतजार के बाद भी पवहारी बाबा से मुलाकात नहीं हो पाई थी.

दिलदारनगर से ताड़ी घाट के विषय में जानकारी के लिए डब्लयू इरविन की गाज़ीपुर गजेटियर , गाज़ीपुर ,पृष्ठ 34 तथा नेविल का गाज़ीपुर गजेटियर ,खंड 29 ,पृष्ठ 121 तथा फिशर एंड गिल ,गाज़ीपुर गजेटियर ,खंड 29,भाग 2 ,पृष्ठ 58 पर विववरण दर्ज है कि जनपद में सबसे पहले रेलवे लाइन 1862 में जमानिया ,भदौरा गहमर प्रोजेक्ट शुरू हुआ और उसके बाद दिलदारनगर , नगसर तथा ताड़ी घाट प्रोजेक्ट 1880 में पूर्ण हुआ. इसके बाद 1902 में गाज़ीपुर औरहर ,बलिया पूर्ण हुआ था.

Last Updated : Feb 9, 2021, 8:27 AM IST
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