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गाजीपुर: गंगा के तटवर्ती बाढ़ ग्रसित इलाकों के लिए वरदान है यह धान

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में जीवनदायिनी गंगा का बाढ़ के समय रौद्र रूप देखने को मिलता है. हर साल गंगा के पानी में हजारों एकड़ धान की फसल समा जाती है. कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसा धान का बीज इजात किया है, जो 8 से 10 दिनों तक पानी में डूबा रह सकता है.

कृषि वैज्ञानिकों किया धान के बीज का इजात
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Published : Sep 7, 2019, 5:27 PM IST

गाजीपुर: वैज्ञानिकों के इजात किए गए धान के बीज पर बाढ़ के समय कोई प्रभाव नहीं पड़ता. वह बाढ़ के पानी में सड़ता नहीं बल्कि उतरने पर अच्छी पैदावार भी देता है. यह बीज धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति का है. कृषि वैज्ञानिकों ने विशेष किस्म का धान का बीज इजात किया है. इस पर 8 से 10 दिनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और फसल भी अच्छी होगी.

कृषि वैज्ञानिकों ने विशेष धान का बीज किया इजात.

कृषि वैज्ञानिकों ने किया विशेष धान का बीज इजात
किसान बाढ़ वाली जगहों पर खेती नहीं करते, क्योंकि चार-पांच दिन तक गंगा का जलस्तर खेतों तक पहुंचता है और सारी फसल पानी में सड़कर बर्बाद हो जाती है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसा धान का बीज इजात किया है जो 8 से 10 दिनों तक पानी में डूबा रह सकता है. उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. वह बाढ़ के पानी में सड़ता नहीं, बल्कि उतरने पर अच्छी पैदावार भी देता है. धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति ही ऐसी है.

जल संसाधन मंत्रालय
गंगा के तटवर्ती इलाके के लिए यह फसल वरदान से कम नहीं है. तीन मार्च 2018 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में भारत सरकार की तरफ से जल संसाधन मंत्रालय ने बताया कि 1953 से 2017 के बीच भारत में हर साल अलग-अलग राज्यों में 3.941 मीट्रिक हेक्टयेर की फसल बाढ़ के कारण बर्बाद होती है. जिसकी कुल कीमत 1679 करोड़ रुपये आंकी गई है. वहीं किसानों द्वारा धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति के प्रयोग से इस आंकड़े को जरूर कम किया जा सकता है.

इसे भी पढ़ेंं-जम्मू-कश्मीर: फल किसानों को मिली राहत, NAFED खरीदेगा उत्पादकों से फसल

धान की फसल में ज्यादा दिनों तक पानी जमा रहता है. इससे उसका तना नीचे से सड़ने लगता है. वहीं स्वर्णा सबुआ प्रजाति के धान के साथ ऐसा नहीं होता. बाढ़ का पानी उतरने के बाद इस धान की फसल में 8 से 10 दिन बाद बाढ़ का पानी उतरने के बाद उसमें उपस्थित जींस की वजह से कल्ले फूटते हैं.
-मृत्युंजय सिंह, जिला कृषि अधिकारी

गाजीपुर: वैज्ञानिकों के इजात किए गए धान के बीज पर बाढ़ के समय कोई प्रभाव नहीं पड़ता. वह बाढ़ के पानी में सड़ता नहीं बल्कि उतरने पर अच्छी पैदावार भी देता है. यह बीज धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति का है. कृषि वैज्ञानिकों ने विशेष किस्म का धान का बीज इजात किया है. इस पर 8 से 10 दिनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और फसल भी अच्छी होगी.

कृषि वैज्ञानिकों ने विशेष धान का बीज किया इजात.

कृषि वैज्ञानिकों ने किया विशेष धान का बीज इजात
किसान बाढ़ वाली जगहों पर खेती नहीं करते, क्योंकि चार-पांच दिन तक गंगा का जलस्तर खेतों तक पहुंचता है और सारी फसल पानी में सड़कर बर्बाद हो जाती है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसा धान का बीज इजात किया है जो 8 से 10 दिनों तक पानी में डूबा रह सकता है. उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. वह बाढ़ के पानी में सड़ता नहीं, बल्कि उतरने पर अच्छी पैदावार भी देता है. धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति ही ऐसी है.

जल संसाधन मंत्रालय
गंगा के तटवर्ती इलाके के लिए यह फसल वरदान से कम नहीं है. तीन मार्च 2018 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में भारत सरकार की तरफ से जल संसाधन मंत्रालय ने बताया कि 1953 से 2017 के बीच भारत में हर साल अलग-अलग राज्यों में 3.941 मीट्रिक हेक्टयेर की फसल बाढ़ के कारण बर्बाद होती है. जिसकी कुल कीमत 1679 करोड़ रुपये आंकी गई है. वहीं किसानों द्वारा धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति के प्रयोग से इस आंकड़े को जरूर कम किया जा सकता है.

इसे भी पढ़ेंं-जम्मू-कश्मीर: फल किसानों को मिली राहत, NAFED खरीदेगा उत्पादकों से फसल

धान की फसल में ज्यादा दिनों तक पानी जमा रहता है. इससे उसका तना नीचे से सड़ने लगता है. वहीं स्वर्णा सबुआ प्रजाति के धान के साथ ऐसा नहीं होता. बाढ़ का पानी उतरने के बाद इस धान की फसल में 8 से 10 दिन बाद बाढ़ का पानी उतरने के बाद उसमें उपस्थित जींस की वजह से कल्ले फूटते हैं.
-मृत्युंजय सिंह, जिला कृषि अधिकारी

Intro:गंगा के तटवर्ती बाढ़ ग्रसित इलाकों के लिए वरदान हैं यह धान 

गाजीपुर। जीवनदायिनी गंगा बाढ़ के वक्त रौद्र रूप देखने को मिलता है। हर साल गंगा के आगोश में हजारों एकड़ धान की फसल समा जाती है। किसानों की बर्बादी का यह मंजर उत्तर प्रदेश सहित गंगा के तटवर्ती इलाकों में देखने को मिलता है। यह केवल इस साल की कहानी नहीं बल्कि सालों से चली आ रही है प्रथा बन चुकी है। जिससे निजात दिलाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने विशेष किस्म का धान का बीज इजात किया है। जिसपर 8 से 10 दिनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फसल भी अच्छी होगी।




Body:गंगा और बाढ़ के तटवर्ती इलाकों में किसान बाढ़ के इलाकों में खेती नहीं करते। क्योंकि चार-पांच दिन तक गंगा का जलस्तर खेतों तक पहुंचता है और सारी फसल पानी में सड़कर बर्बाद हो जाती है। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसा धान के बीज इजात किया है जो 8 से 10 दिनों तक पानी में डूबा रह सकता है। कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह बाढ़ के पानी मैं सड़ता नहीं बल्कि उतरने पर अच्छी पैदावार भी देता है। धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति ऐसी है।

जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि धान की फसल में ज्यादा दिनों तक पानी जमा रहता है। जिससे उसका तना नीचे से सड़ने लगता है। वहीं स्वर्णा सबुआ प्रजाति के धान के साथ ऐसा नहीं होता। बाढ़ का पानी उतरने के बाद इस धान की फसल में 8 से 10 दिन बाद बाढ़ का पानी उतरने के बाद उसमें उपस्थित जींस की वजह से कल्ले फूटते है। जिससे किसान को अच्छी पैदावार भी है।




Conclusion:इसलिए गंगा के तटवर्ती इलाके के लिए यह फसल वरदान से कम नहीं है। तीन मार्च 2018 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में भारत सरकार की तरफ जल संसाधन मंत्रालय ने बताया कि 1953 से 2017 के बीच भारत में हर साल अलग-अलग राज्यों में 3.941 मीट्रिक हेक्टयेर की फसल बाढ़ के कारण बर्बाद होती है जिसकी कुल कीमत 1679 करोड़ रुपए आंकी गई है। वहीं किसानों द्वारा धान की स्वर्णा सबुआ प्रजाति के प्रयोग से इस आंकड़े को जरूर कम किया जा सकता है।

बाइट - मृत्युंजय सिंह - जिला कृषि अधिकारी, विजुअल )

उज्ज्वल कुमार राय , 7905590969

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