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महाराणा प्रताप के लिए इनके पूर्वज बनाते थे हथियार, अब फुटपाथ पर जीने को मजबूर - fatehpur news

जिले में महाराणा प्रताप के साथ जंगल में जीवन व्यतीत करने वाले कुछ समुदाय हैं, जो आज लोहा पीटकर अपने जीवन का गुजर बसर कर रहे है.

डिजाईन फोटो.
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Published : May 9, 2019, 11:56 PM IST

Updated : May 10, 2019, 7:56 PM IST

फतेहपुर : भारतीय इतिहास में 21 जून 1576 हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पराक्रम से देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ है. महाराणा प्रताप कभी भी अकबर के सामने झुके नहीं, भले ही उनको पूरा राज त्यागना पड़ा. प्रताप के स्वाभिमान से प्रेरित होकर प्रजा भी उनके साथ जंगलों में भटकी.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.
उन परिवारों में से एक वर्ग ऐसा भी था, जो युद्ध लड़ने के लिए तलवार और हथियार बनाता था, मगर ये परिवार आज भी बंजारे का जीवन जी रहा है और अपने स्वाभिमान को बनाए रख फुटपाथ पर जीवन व्यतीत कर रहा है.

उत्तर प्रदेश में कई जनजातियां रहती है, जो जंगल के आस-पास रहते हैं. इनका पहनावा भी राजस्थानी राजपूत संस्कृति से मिलता है. इन जनजातियों में थारू जनजाति प्रमुख है. फतेहपुर जिले में महाराणा प्रताप के साथ जंगल में जीवन व्यतीत करने वाले कई समुदाय हैं, जिनमें लोह पिटवा समुदाय शामिल हैं.

ये समुदाय रोड के किनारे झोपड़ी में रहते हैं और लोहे के औजार बना अपनी जीविका चलाते हैं. फतेहपुर के बिंदकी कस्बे में लगभग 50 वर्षों से फुटपाथ पर कई परिवार झोपड़ी में रहकर लोहा पीटने का काम करते हैं. अकबर और महाराणा प्रताप में जब युद्ध हुआ, तभी से इन परिवारों के पूर्वज घर छोड़ जंगल में रहने लगे.

पहले गांव-गांव घूमकर गाय बकरी खरीदते व बेचते थे, लेकिन वह काम बंद हो जाने के बाद किसी तरह लोहे के औजार बनाकर दो वक्त की रोटी कमा पाते हैं. ये लोग 30-40 सालों से सड़क के किनारे जीवन जी रहें हैं. सरकार की ओर से आज तक इन्हें मदद के नाम पर आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. इनका भी सपना है कि ये लोग घर में रहें. इनके बच्चे स्कूल जा सकें, लेकिन जब हुकूमत बेपरवाह हो, तो इन सपनों का क्या?

फतेहपुर : भारतीय इतिहास में 21 जून 1576 हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पराक्रम से देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ है. महाराणा प्रताप कभी भी अकबर के सामने झुके नहीं, भले ही उनको पूरा राज त्यागना पड़ा. प्रताप के स्वाभिमान से प्रेरित होकर प्रजा भी उनके साथ जंगलों में भटकी.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.
उन परिवारों में से एक वर्ग ऐसा भी था, जो युद्ध लड़ने के लिए तलवार और हथियार बनाता था, मगर ये परिवार आज भी बंजारे का जीवन जी रहा है और अपने स्वाभिमान को बनाए रख फुटपाथ पर जीवन व्यतीत कर रहा है.

उत्तर प्रदेश में कई जनजातियां रहती है, जो जंगल के आस-पास रहते हैं. इनका पहनावा भी राजस्थानी राजपूत संस्कृति से मिलता है. इन जनजातियों में थारू जनजाति प्रमुख है. फतेहपुर जिले में महाराणा प्रताप के साथ जंगल में जीवन व्यतीत करने वाले कई समुदाय हैं, जिनमें लोह पिटवा समुदाय शामिल हैं.

ये समुदाय रोड के किनारे झोपड़ी में रहते हैं और लोहे के औजार बना अपनी जीविका चलाते हैं. फतेहपुर के बिंदकी कस्बे में लगभग 50 वर्षों से फुटपाथ पर कई परिवार झोपड़ी में रहकर लोहा पीटने का काम करते हैं. अकबर और महाराणा प्रताप में जब युद्ध हुआ, तभी से इन परिवारों के पूर्वज घर छोड़ जंगल में रहने लगे.

पहले गांव-गांव घूमकर गाय बकरी खरीदते व बेचते थे, लेकिन वह काम बंद हो जाने के बाद किसी तरह लोहे के औजार बनाकर दो वक्त की रोटी कमा पाते हैं. ये लोग 30-40 सालों से सड़क के किनारे जीवन जी रहें हैं. सरकार की ओर से आज तक इन्हें मदद के नाम पर आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. इनका भी सपना है कि ये लोग घर में रहें. इनके बच्चे स्कूल जा सकें, लेकिन जब हुकूमत बेपरवाह हो, तो इन सपनों का क्या?

Intro:फतेहपुर: भारतीय इतिहास में 21 जून 1576 हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पराक्रम से देश का बच्चा वाकिफ है। महाराणा प्रताप अकबर के सामने झुके नही उसके लिए पूरा राज त्यागना पड़ा। महाराणा प्रताप ने परिवार के साथ जंगल मे रहकर मुगल सेना से गुरिल्ला युद्ध किए। राणा प्रताप के स्वाभिमान से प्रेरित होकर प्रजा भी साथ साथ जंगल जंगल भटकी। उन्हीं में से एक वर्ग था जो युद्ध लड़ने के लिए तलवार और हथियार बनाते थे। इनका परिवार आज भी बंजारे का जीवन जी रहा है और अपने स्वाभिमान को बनाये रख फुटपाथ पर जीवन व्यतीत कर रहा है।


Body:महाराणा प्रताप के साथ जंगल मे जीवन व्यतीत करने वाले कई समुदाय हैं जिनमे थारू और भील जनजाति हैं जो जंगल के आस पास रहते हैं इनका पहनावा भी राजस्थानी राजपूत संस्कृति से मिलता है। वहीं उत्तर प्रदेश के कई जिलों में लोह पिटवा समुदाय खाना बदोश का जीवन व्यतीत करते हैं। ये रोड के किनारे झोपड़ी में रहते हैं और लोहे के औजार बना अपना जीविका चलाते हैं। फतेहपुर के बिंदकी कस्बे में लगभग 50 वर्ष से फुटपाथ कई परिवार झोपड़ी में रहकर लोहा पीटने का काम करते हैं इनका पहनावा और बोली भी राजस्थानी है। लुल्ली बताते हैं कि अकबर और राणा प्रताप में जब युद्ध हुआ तभी से हमारे पूर्वज घर छोड़ जंगल मे रहने लगे। हम लोग यहाँ 40 साल से रहतें हैं पहले गांव गांव घूमकर गाय बकरी खरीदते बेचते थे लेकिन वह काम अब बन्द हो गया यही लोहे का काम कर जीवन गुजारते हैं। हम लोग वोट भी देते हैं आधार कार्ड भी है। राशन मिलता है कोटे का। लेकिन कोई सरकार हमारे सब के लिए कुछ नही करती है। अंगूरी ने बताया कि हमारे कई पीढ़ी से लोग भटक रहे हैं। हम लोग भी 30-40 साल से यहीं सड़क के किनारे जीवन जी रहें हैं कोई सरकार हमारे लिए कुछ नही करती । हमलोग भी घरों में रहना चाहते हैं हमारे लोग के भी बच्चे पढ़े और अच्छा काम करें लेकिन कोई नही कुछ करता है। अभी रोड़ पर हैं सफाई के नाम पर हमें हटा दिया जाएगा। सुशीला कहती हैं कि मैने पिछली बार कमल को दिया था इसबार भी कमल को दूंगी । लेकिन कुछ कोई करता नही है हम गरीबो के लिए।


Conclusion:इन्ही लोगों की तरह सैकड़ों परिवार विभिन्न जिलों के गांव गांव शहर शहर भटक रहें हैं। ये अपनी राजस्थानी पहचान को आज भी कायम रखे हैं। वहीं इनके अंदर आज भी स्वाभिमान है ये किसी दूसरे के आगे हाथ नही फैलाते हैं न ही दूसरों की मजदूरी करते हैं ये स्वयं का काम कर गरीबी में जीवन का गुजारा करते हैं।लुल्ली ने बताया कि साल में एक दो बार राजस्थान के जोधपुर में अपने पूर्वजों के देवी देवताओं की पूजा करने जाते हैं। हम शादी विवाह भी इधर ही अपने समुदाय में करते हैं। इस समुदाय के लोग वर्षो से बंजारा का जीवन जीते आ रहें हैं लेकिन अब ये सरकार की सहायता का आस लगाए हैं कि कोई स्थाई निवास हो बच्चों पढ़े और अच्छा जीवन जीए। बाइट - 1लुल्ली 2 अंगूरी 3 सुशीला अभिषेक सिंह फतेहपुर 9121293017
Last Updated : May 10, 2019, 7:56 PM IST
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