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530 साल पुरानी है यहां की राम लीला, लेकिन क्यों होती है पहले रावण की पूजा ? - खजुहा कस्बे की 530 वर्ष पुरानी रामलीला

यूपी के फतेहपुर में खजुहा कस्बे की ऐतिहासिक रामलीला 530 वर्ष पुरानी है. इस रामलीला की शुरुआत दशहरा के दिन से होती है. यहां की रामलीला में भगवान राम से पहले रावण की पूजा होती है, जो इसे अन्य रामलीला से अलग करती है.

530 वर्ष पुरानी रामलीला.
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Published : Oct 13, 2019, 8:16 PM IST

फतेहपुर: गंगा यमुना के दोआब में बसे खजुहा कस्बे में होने वाली 530 वर्षीय रामलीला अपनी भव्यता के आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है. मुगल रोड के किनारे बसा ऐतिहासिक खजुहा कस्बा पहले व्यापारियों और धनाढ्य लोगों के लिए जाना जाता था, जिसकी छाप यहां की रामलीला में अभी भी देखी जा सकती है. इस रामलीला में भगवान राम से पहले रावण की पूजा होती है, जो इसे अन्य रामलीला से अलग करती है.

530 वर्ष पुरानी रामलीला.
तालाब के किनारे आभासी लंका का निर्माण
इस रामलीला में राम-रावण युद्ध के दौरान विशालकाय पुतले को लकड़ी के पहिए पर व्यवस्थित करके बनाया जाता है. इसका मंचन एक बड़े से तालाब के किनारे एक आभासी लंका मैदान बनाकर किया जाता है. इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. रामलीला के लिए यहां एक माह पहले से ही कुशल कारीगरों के माध्यम से कास्ट पात्र से विशालकाय रावण और राम के स्वरूपों का निर्माण किया जाता है.
गणेश पूजा से शुरु होती है रामलीला
दशहरे के दिन राम जानकी मंदिर में गणेश पूजा से रामलीला शुरु होती है. इस मंदिर में रावण का विशालकाय तांबे का शीश रखा है, जिसकी लोग पूजा करते हैं. वहीं रामलीला में रावण की पूजन के पश्चात भगवान राम की पूजा होती है. आठवें दिन आभासी लंका मैदान में बड़े से तालाब के किनारे रावण का वध होता है. वध के बाद रावण की विधिवत 13वीं की जाती है और लोगों को ब्रम्हभोज कराया जाता है. इन रस्मों को देखने के लिए यहां दूर-दराज से लोग आते हैं. मेले में छोटी बड़ी लगभग दो दर्जन झांकिया सजाई जाती हैं. राम-रावण युद्ध के दिन लाखों की तादात में लोग जुटते हैं.

मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ी है रामलीला की भव्यता
खजुहा कस्बे के पास शाहजहां के पुत्र औरंगजेब और शाह शुजा के मध्य सत्ता के लिए 5 जनवरी 1659 में युद्ध हुआ था. इस युद्ध में औरंगजेब विजेता हुआ, जिसके बाद उन्होनें बाग बादशाही का निर्माण करवाया. औरंगजेब के द्वारा यहां मुगल सल्तनत का प्रभाव देखकर यहां के हिन्दू लोगों ने हिंदू धर्म के प्रभाव को बढ़ाया.

राम जानकी मंदिर की स्थापना
राम जानकी मंदिर के पुजारी पंडित रामजी ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण मराठाओं ने करवाया था, जिसमें केवल गणेश जी की पूजा होती थी. औरंगजेब के काल में यहां के ब्राह्मण लोगों ने राम जानकी मंदिर की स्थापना की और भव्य रामलीला की शुरुआत की. तभी से यह रामलीला निरंतर चली आ रही है. रामलीला में लकड़ी के पहिए पर राम और रावण की विशालकाय संरचना तैयार की जाती है.

इसे भी पढ़ें:- फतेहपुर: तेज रफ्तार ट्रक ने स्कूल जा रही छात्रा को रौंदा, मौत

रावण को जलाना ब्राह्मण का अपमान
रावण की पूजा के सम्बंध में स्थानीय पंडित रामकृपाल बताते हैं कि खजुआ कस्बा में ब्राह्मण लोग अधिक संख्या में रहते थे, जिसके कारण उन्हें रावण को जलाना ब्राह्मण का अपमान लगता था. इसलिए यहां रावण को जलाने के बजाय उन्हें पूजा जाता है.

फतेहपुर: गंगा यमुना के दोआब में बसे खजुहा कस्बे में होने वाली 530 वर्षीय रामलीला अपनी भव्यता के आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है. मुगल रोड के किनारे बसा ऐतिहासिक खजुहा कस्बा पहले व्यापारियों और धनाढ्य लोगों के लिए जाना जाता था, जिसकी छाप यहां की रामलीला में अभी भी देखी जा सकती है. इस रामलीला में भगवान राम से पहले रावण की पूजा होती है, जो इसे अन्य रामलीला से अलग करती है.

530 वर्ष पुरानी रामलीला.
तालाब के किनारे आभासी लंका का निर्माण
इस रामलीला में राम-रावण युद्ध के दौरान विशालकाय पुतले को लकड़ी के पहिए पर व्यवस्थित करके बनाया जाता है. इसका मंचन एक बड़े से तालाब के किनारे एक आभासी लंका मैदान बनाकर किया जाता है. इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. रामलीला के लिए यहां एक माह पहले से ही कुशल कारीगरों के माध्यम से कास्ट पात्र से विशालकाय रावण और राम के स्वरूपों का निर्माण किया जाता है.
गणेश पूजा से शुरु होती है रामलीला
दशहरे के दिन राम जानकी मंदिर में गणेश पूजा से रामलीला शुरु होती है. इस मंदिर में रावण का विशालकाय तांबे का शीश रखा है, जिसकी लोग पूजा करते हैं. वहीं रामलीला में रावण की पूजन के पश्चात भगवान राम की पूजा होती है. आठवें दिन आभासी लंका मैदान में बड़े से तालाब के किनारे रावण का वध होता है. वध के बाद रावण की विधिवत 13वीं की जाती है और लोगों को ब्रम्हभोज कराया जाता है. इन रस्मों को देखने के लिए यहां दूर-दराज से लोग आते हैं. मेले में छोटी बड़ी लगभग दो दर्जन झांकिया सजाई जाती हैं. राम-रावण युद्ध के दिन लाखों की तादात में लोग जुटते हैं.

मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ी है रामलीला की भव्यता
खजुहा कस्बे के पास शाहजहां के पुत्र औरंगजेब और शाह शुजा के मध्य सत्ता के लिए 5 जनवरी 1659 में युद्ध हुआ था. इस युद्ध में औरंगजेब विजेता हुआ, जिसके बाद उन्होनें बाग बादशाही का निर्माण करवाया. औरंगजेब के द्वारा यहां मुगल सल्तनत का प्रभाव देखकर यहां के हिन्दू लोगों ने हिंदू धर्म के प्रभाव को बढ़ाया.

राम जानकी मंदिर की स्थापना
राम जानकी मंदिर के पुजारी पंडित रामजी ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण मराठाओं ने करवाया था, जिसमें केवल गणेश जी की पूजा होती थी. औरंगजेब के काल में यहां के ब्राह्मण लोगों ने राम जानकी मंदिर की स्थापना की और भव्य रामलीला की शुरुआत की. तभी से यह रामलीला निरंतर चली आ रही है. रामलीला में लकड़ी के पहिए पर राम और रावण की विशालकाय संरचना तैयार की जाती है.

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रावण को जलाना ब्राह्मण का अपमान
रावण की पूजा के सम्बंध में स्थानीय पंडित रामकृपाल बताते हैं कि खजुआ कस्बा में ब्राह्मण लोग अधिक संख्या में रहते थे, जिसके कारण उन्हें रावण को जलाना ब्राह्मण का अपमान लगता था. इसलिए यहां रावण को जलाने के बजाय उन्हें पूजा जाता है.

Intro:फतेहपुर- गंगा यमुना के दोआब में बसे खजुहा कस्बे में होने वाली 530 वर्षीय रामलीला अपनी भव्यता के आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है।मुगल रोड के किनारे बसे ऐतिहासिक खजुहा कस्बा व्यापारियों और धनाढ्य लोगो सम्पन्नता के लिए जाना जाता था जिसकी छाप यहां की रामलीला में अभी भी कायम है। यहां रामलीला के दौरान राम रावण युद्ध विशालकाय पुतले को लड़की के पहिए पर व्यवस्थित करके बड़े से तालाब के किनारे आभासी लंका मैदान में मंचन किया जाता है। जिसे देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। वहीं इस रामलीला में भगवान राम से पहले जहां रावण की पूजा होती है जो इसे अन्य रामलीलाओं से अलग कर देती है।


Body:यहां रावण को जलाया नही जाता बल्कि पूजा जाता है

फतेहपुर जिले की खजुहा कस्बे की ऐतिहासिक रामलीला की शुरुआत दशहरा के दिन से होती है। इसके लिए यहां एक माह तक कुशल कारीगरों द्वारा कास्ट एवं तिनरई से विशालकाय रावण और रामदल के स्वरूपों का निर्माण किया जाता है। साथ ही पंचवटी,
दशहरे के दिन रामजानकी मंदिर में गणेश पूजा से रामलीला शुरु होता है। इसी मंदिर में रावण के विशालकाय तांबे का शीश रखा है जिसकी लोग पूजा करते हैं। वहीं रामलीला में रावण की पूजन के पश्चात भगवान राम की पूजा होती है। आठवें दिन आभासी लंका मैदान में बड़े से तालाब के किनारे रावण वध होता है इसके बाद उत्सव में रावण का 13वीं में यहां ब्रम्हभोज कराया जाता है उत्सव मनाया जाता है। इन रस्मो को देखने के लिए यहां दूर दराज से लोग आते हैं। मेले में छोटी बड़ी लगभग दो दर्जन झांकिया सजाई जाती। राम रावण युद्ध के दिन लाखों की तादात में लोग जुटते हैं।


रावण की पूजा के सम्बंध में रामकृपाल बताते हैं कि खजुआ कस्बा में ब्राम्हण लोग अधिक संख्या में रहते थे जिसके कारण उन्हें रावण का जलाना ब्राम्हण का अपमान लगा होगा इस लिए यहां रावण को जलाने के बजाय पूजा जाता है।



मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ी है रामलीला की भव्यता


खजुहा कस्बे के पास की शाहजहां के पुत्र औरंगजेब और शाहशुजा के मध्य सत्ता के लिए 5 जनवरी 1659 युद्ध हुआ था जिसमे औरंगजेब विजेता होने के पश्चात यहीं बाग बादशाही का निर्माण करवाया।औरंगजेब के द्वारा यहां मुगल सल्तनत का प्रभाव देखकर यहां के हिन्दू लोगों ने हिंदू धर्म के प्रभाव को बढ़ाया। चुकी खजुहा मुगल रोड के किनारे है ऐसे ।के व्यापारियों और धनाढ्य लोगों की बस्ती थी इन यहां कई मंदिर कुंआ और तालाब का निर्माण कराया। रामजानकी मंदिर के पुजारी पंडित रामजी ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण मराठा करवाए थे जिसमें केवल गणेश जी की पूजा होती थी। औरंगजेब का काल मे यहां के शुक्ला लोग राम जानकी की स्थापना किए और भव्य रामलीला की शुरुआत किए। तभी से यहाँ रामलीला होती है और लकड़ी के पहिए पर राम और रावण का विशालकाय संरचना व्यवस्थित किया जाता है।





Conclusion:बाईट1 पंडित रामजी
2 रामकृपाल

अभिषेक सिंह फतेहपुर 7860904510
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