फतेहपुर: गंगा यमुना के दोआब में बसे खजुहा कस्बे में होने वाली 530 वर्षीय रामलीला अपनी भव्यता के आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है. मुगल रोड के किनारे बसा ऐतिहासिक खजुहा कस्बा पहले व्यापारियों और धनाढ्य लोगों के लिए जाना जाता था, जिसकी छाप यहां की रामलीला में अभी भी देखी जा सकती है. इस रामलीला में भगवान राम से पहले रावण की पूजा होती है, जो इसे अन्य रामलीला से अलग करती है.
मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ी है रामलीला की भव्यता
खजुहा कस्बे के पास शाहजहां के पुत्र औरंगजेब और शाह शुजा के मध्य सत्ता के लिए 5 जनवरी 1659 में युद्ध हुआ था. इस युद्ध में औरंगजेब विजेता हुआ, जिसके बाद उन्होनें बाग बादशाही का निर्माण करवाया. औरंगजेब के द्वारा यहां मुगल सल्तनत का प्रभाव देखकर यहां के हिन्दू लोगों ने हिंदू धर्म के प्रभाव को बढ़ाया.
राम जानकी मंदिर की स्थापना
राम जानकी मंदिर के पुजारी पंडित रामजी ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण मराठाओं ने करवाया था, जिसमें केवल गणेश जी की पूजा होती थी. औरंगजेब के काल में यहां के ब्राह्मण लोगों ने राम जानकी मंदिर की स्थापना की और भव्य रामलीला की शुरुआत की. तभी से यह रामलीला निरंतर चली आ रही है. रामलीला में लकड़ी के पहिए पर राम और रावण की विशालकाय संरचना तैयार की जाती है.
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रावण को जलाना ब्राह्मण का अपमान
रावण की पूजा के सम्बंध में स्थानीय पंडित रामकृपाल बताते हैं कि खजुआ कस्बा में ब्राह्मण लोग अधिक संख्या में रहते थे, जिसके कारण उन्हें रावण को जलाना ब्राह्मण का अपमान लगता था. इसलिए यहां रावण को जलाने के बजाय उन्हें पूजा जाता है.