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फर्रुखाबाद में माह महीने में लगेगा रामनगरिया मेला - फर्रुखाबाद पांचाल घाट

फर्रुखाबाद में माह के महीने में रामनगरिया के मेले का आयोजन किया जाएगा. इस मेले में धर्म और अध्यात्म की धारा बहेगी. जिला प्रशासन ने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी है.

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Published : Dec 24, 2022, 9:32 PM IST

फर्रुखाबाद: जनपद में माह के महीने में पांचाल घाट (Farrukhabad Panchal Ghat) पर गंगा की गोद में रामनगरिया मेला लगने जा रहा है. यह मेला मां पतित पावनी गंगा के सानिध्य में ईश्वर की साधना करने का जरिया है. इतना ही नहीं बल्कि इससे रोजगार में भी काफी बढ़ावा मिलेगा है.

इस बार यह मेला 5 जनवरी 2024 से लगने जा रहा है. जिला प्रशासन इसकी तैयारियों में जुट गया है. इसके लिए बिजली, पानी, अस्पताल, सीसीटीवी कैमरा और पुलिस चौकियां आदि की व्यवस्थाएं की जा रही है. एक महीने तक यहां सुबह से गंगा की निर्मल धारा में डुबकी के साथ हर-हर गंगे के नारे गूंजेंगे. वहीं, संतो के ढेरों में दोनों से उठती सुगंध अलौकिक आनंद का एहसास कराती रहेगी. इसके अलावा भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई देगी. वहीं, कहीं राम कथा और श्रीमद् भागवत कथा की अमृत वर्षा, शोभा यात्राओं में संत महात्माओं के अद्भुत प्रदर्शन भी देखने को मिलेंगे. हर वर्ष कल्पवास के लिए यहां 50 हजार से ज्यादा श्रद्धालु शाहजहांपुर, पीलीभीत, बरेली, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बदायूं, हरदोई, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज मध्यप्रदेश में राजस्थान आदि से आते हैं. इनमें संत और ग्रहस्थ दोनों शामिल होते हैं. करीब 4 किलोमीटर मिला क्षेत्र को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इसमें सबसे बड़ा कल्पवास क्षेत्र गंगा पुल के पश्चिम में (Farrukhabad Ramnagariya fair) लगता है. मनोरंजन क्षेत्र में खानपान की दुकानों के साथ झूले तमाशा की ही तमाम वस्तुओं की दुकानें भी सकती हैं. यहां के भुने आलू प्रसिद्ध है.

यहां कल्पवास कब से शुरू हुआ इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है. शमशाबाद के खोर में प्राचीन गंगा के तट पर ढाई घाट का मेला लगता था. यह मेला काफी दूर होने के कारण कुछ साधु संत वर्ष 1950 में पंचाल घाट परमार में कल्पवास करते थे. लेकिन, आम लोगों का कोई सुझाव नहीं था. वर्ष 1955 में पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह ने इस तरह अपनी दिलचस्पी दिखाई. उन्होंने गंगा के तट पर साधु-संतों के ही साथ कांग्रेस का एक कैंप लगाया था. इसके साथ ही उन्होंने पंचायत सम्मेलन, शिक्षक सम्मेलन, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन व सहकारिता सम्मेलन का आयोजन कराया था. उसमें स्थानीय लोग शामिल हुए और इसके बाद मेल की भव्यता बढ़ती गई.

वर्ष 1985 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने मेला रामनगरिया का अवलोकन किया. इसके बाद ही उन्होंने सूरजमुखी गोष्टी में हिस्सा लिया. उन्होंने प्रति वर्ष शासन की ओर से मेले के लिए पांच लाख रुपये देने की घोषणा की. वर्ष 1985 से ही मेला जिला प्रशासन की देखरेख में संचालित (Ramnagariya fair held in Farrukhabad) हो रहा है.

फर्रुखाबाद: जनपद में माह के महीने में पांचाल घाट (Farrukhabad Panchal Ghat) पर गंगा की गोद में रामनगरिया मेला लगने जा रहा है. यह मेला मां पतित पावनी गंगा के सानिध्य में ईश्वर की साधना करने का जरिया है. इतना ही नहीं बल्कि इससे रोजगार में भी काफी बढ़ावा मिलेगा है.

इस बार यह मेला 5 जनवरी 2024 से लगने जा रहा है. जिला प्रशासन इसकी तैयारियों में जुट गया है. इसके लिए बिजली, पानी, अस्पताल, सीसीटीवी कैमरा और पुलिस चौकियां आदि की व्यवस्थाएं की जा रही है. एक महीने तक यहां सुबह से गंगा की निर्मल धारा में डुबकी के साथ हर-हर गंगे के नारे गूंजेंगे. वहीं, संतो के ढेरों में दोनों से उठती सुगंध अलौकिक आनंद का एहसास कराती रहेगी. इसके अलावा भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई देगी. वहीं, कहीं राम कथा और श्रीमद् भागवत कथा की अमृत वर्षा, शोभा यात्राओं में संत महात्माओं के अद्भुत प्रदर्शन भी देखने को मिलेंगे. हर वर्ष कल्पवास के लिए यहां 50 हजार से ज्यादा श्रद्धालु शाहजहांपुर, पीलीभीत, बरेली, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बदायूं, हरदोई, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज मध्यप्रदेश में राजस्थान आदि से आते हैं. इनमें संत और ग्रहस्थ दोनों शामिल होते हैं. करीब 4 किलोमीटर मिला क्षेत्र को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इसमें सबसे बड़ा कल्पवास क्षेत्र गंगा पुल के पश्चिम में (Farrukhabad Ramnagariya fair) लगता है. मनोरंजन क्षेत्र में खानपान की दुकानों के साथ झूले तमाशा की ही तमाम वस्तुओं की दुकानें भी सकती हैं. यहां के भुने आलू प्रसिद्ध है.

यहां कल्पवास कब से शुरू हुआ इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है. शमशाबाद के खोर में प्राचीन गंगा के तट पर ढाई घाट का मेला लगता था. यह मेला काफी दूर होने के कारण कुछ साधु संत वर्ष 1950 में पंचाल घाट परमार में कल्पवास करते थे. लेकिन, आम लोगों का कोई सुझाव नहीं था. वर्ष 1955 में पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह ने इस तरह अपनी दिलचस्पी दिखाई. उन्होंने गंगा के तट पर साधु-संतों के ही साथ कांग्रेस का एक कैंप लगाया था. इसके साथ ही उन्होंने पंचायत सम्मेलन, शिक्षक सम्मेलन, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन व सहकारिता सम्मेलन का आयोजन कराया था. उसमें स्थानीय लोग शामिल हुए और इसके बाद मेल की भव्यता बढ़ती गई.

वर्ष 1985 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने मेला रामनगरिया का अवलोकन किया. इसके बाद ही उन्होंने सूरजमुखी गोष्टी में हिस्सा लिया. उन्होंने प्रति वर्ष शासन की ओर से मेले के लिए पांच लाख रुपये देने की घोषणा की. वर्ष 1985 से ही मेला जिला प्रशासन की देखरेख में संचालित (Ramnagariya fair held in Farrukhabad) हो रहा है.

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