फर्रुखाबाद: जिले में बनी मुगलकालीन इमारतें बिना रखरखाव के अभाव में अब दरक रही हैं. खुदागंज गांव में बनी मुगलकालीन मस्जिद और सराय आज भी गौरवशाली इतिहास की गवाही दे रही है. दोनों स्थानों को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर रखा है. लेकिन रखरखाव की कोई सुधि नहीं ली जा रही है.
पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड में फर्रुखाबाद जनपद के गांव खुदागंज स्थित मुगलकालीन मस्जिद और सराय संरक्षित स्थल के रूप में दर्ज है. दोनों स्थानों पर पुरातत्व विभाग ने अपना बोर्ड लगा रखा है, जिस पर वहां किसी प्रकार का निर्माण करने व स्मारकों को क्षति पहुंचाने पर रोक लगाने संबंधित निर्देश लिखे हैं. पुरातत्व विभाग इन दिनों विश्व धरोहर सप्ताह मना रहा है. इसके बावजूद इन स्थानों की कोई सुधि नहीं ली गई है.
ईटीवी भारत की टीम जब उस मस्जिद और सराय पर पहुंची तो हकीकत कुछ और ही थी. मस्जिद की हालत जर्जर लग रही थी. वहीं सराय के अंदर बनी कोठियों में लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा था. सराय में स्थित कोठियों में लोगों ने जानवर बांध रखा था, वहीं जानवरों के लिए भूसा भी रखा हुआ था. सराय परिसर में गंदगी का अंबार देखने को मिला. अगर इसी तरह पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान नहीं देता है तो यह पुरानी धरोहर विलुप्त हो जाएगी. वहीं इस पर कोई भी जनप्रतिनिधि बोलने के लिए तैयार नहीं है.
खुदागंज गांव के रहने वाले सफीफुद्दीन दिन बताते हैं कि इस मस्जिद और सराय का निर्माण शेर शाह सूरी के जमाने हुई है. लगभग 1540 ईसवी में यह बनकर तैयार हुई थी. उन्होंने बताया कि हमने अपने बुजुर्गों से सुना है कि मुगलकाल में व्यापारी दूसरे शहरों से आने जाने के लिए बैलगाड़ियों का उपयोग करते थे,जिससे स्थानीय नवाब की ओर से उनके ठहरने के लिए सराय का निर्माण कराया गया था. यहां एक मस्जिद भी बनवाई गई थी. लेकिन रखरखाव के अभाव में सराय का स्वरूप अब बदल गया है.
वहीं बद्री विशाल डिग्री कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर अभिषेक शुक्ला ने बताया खुदागंज में सराय और मस्जिद है. फर्रुखाबाद के प्रसिद्ध स्टेशन का भी निर्माण शेरशाह सूरी ने कराया था. शेर शाह सूरी ने इन सरायों का निर्माण केवल फर्रुखाबाद में ही नहीं, बल्कि पूरे साम्राज्य में बड़े पैमाने पर कराया था. शेरशाह सूरी ने जीटी रोड का भी निर्माण कराया था.
उन्होंने बताया कि वर्तमान हालात बहुत ही खराब है. इस ओर पुरातत्व विभाग बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा है. प्रशासन भी इस की ओर ध्यान नहीं है. इस समय के जो युवा हैं, उन्हें इन चीजों से प्रेरणा लेने की जरूरत है,लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है. विशेष तौर पर पुरातत्व विभाग को इस तरफ ध्यान देना चाहिए.