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श्रमिकों से 'गुलजार' रहने वाला जरदोजी उद्योग हुआ 'वीरान', अपनी छाप तलाश रहा फर्रुखाबाद - जरदोजी और छपाई उद्योग पर लॉकडाउन का प्रभाव

लॉकडाउन ने देश के हर एक वर्ग को बुरी तरह से प्रभावित किया है. सारे उद्योग-धंधे बंद पड़े हैं. ऐसा ही कुछ हाल है फर्रुखाबाद के जरदोजी कारोबार से जुड़े लोगों का है. हाथ की छपाई से सिल्क की साड़ियों पर चित्र और डिजाइन बनाकर पूरे देश में फर्रुखाबाद का लोहा मनवाने वाले उद्योग वर्तमान समय में बंद पड़े हैं.

crisis on printing and zardozi industry during lockdown in farrukhabad
जरदोजी और छपाई उद्योग पर लॉकडाउन का प्रभाव
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Published : May 13, 2020, 12:46 PM IST

फर्रुखाबाद: प्रदेश की अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए यूपी सरकार की ओर से उद्योग-धंधों को चलाने के लिए हरी झंडी दे दी गई है, लेकिन फर्रुखाबाद का प्रमुख जरदोजी और छपाई उद्योग सन्नाटे में है. परिवहन सेवा बंद होने के कारण न तो कच्चा माल आ पा रहा है और न ही यहां से उत्पादों की देश-विदेश में आपूर्ति हो पा रही है. यदि यही हाल रहा तो यहां के कारखाने भी अधिक दिन नहीं चल सकेंगे.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

लॉकडाउन में छूट मिलने पर यहां उद्योगों के लिए न तो श्रमिक तो मिल रहे हैं और न कच्चा माल ही मिल पा रहा है. कच्चे माल की कमी से छपाई उद्योग पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. जिन कारखानों के पास पहले से जो कच्चा माल था सिर्फ वही कारखाने चल रहे हैं. ऐसे में करीब 40 फीसदी कारखाने बंदी की कगार पर हैं. लॉकडाउन में छपाई कारोबार अब अपनी छाप खोता जा रहा है. वहीं मुंबई, दिल्ली और पंजाब के बाजारों से मांग भी नहीं आ रही है. इस वजह से भी काम तेजी से शुरू नहीं हो पा रहा है. लोकल बाजार में बिकने वाली शॉल और स्टॉल की ही थोड़ी बहुत मांग है.

crisis on printing and zardozi industry during lockdown in farrukhabad
छपाई करते कारीगर.

श्रमिकों के सामने रोजी रोटी का संकट
जिले में 125 इकाइयां ही रजिस्टर्ड हैं, लेकिन इसकी आड़ में लगभग 250 से अधिक छोटे-बड़े कई अवैध कारखाने चल रहे हैं. शहर के जरदोजी और कपड़ा छपाई कारखानों में तकरीबन 25 हजार से अधिक लोग काम करते हैं. लॉकडाउन के कारण इन कारीगरों और श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है. ग्रीन जोन में शामिल फर्रुखाबाद में कुछ शर्तों के साथ जिला प्रशासन ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी प्राप्त सात कपड़ा छपाई कारखाना खोलने की अनुमति दी है, लेकिन कारखाना मालिक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए करीब 35 प्रतिशत लोगों को ही अल्टरनेट डेज के आधार पर बुला पा रहे हैं.

crisis on printing and zardozi industry during lockdown in farrukhabad
छपाई कारखाने में काम करते मजदूर.

तमिलनाडु से नहीं आ पा रहा कपड़ा
कारखाना मालिक संतोष साध ने बताया कि कपड़ा तमिलनाडु के ईरोड से आता है. लॉकडाउन के कारण 25 मार्च से कारखाना बंद था. अब 4 मई से काम शुरू हो सका है. एक-दो आर्डर ही मिल रहे हैं, जिन्हें अपने रिस्क पर छाप रहे हैं. कुछ आर्डर कैंसिल भी हो चुके हैं. मुश्किल यह है कि अभी वही कारखाने ही चल रहे हैं, जिनके पास कच्चा माल है. बाहर से कपड़ा न आया तो 4 से 5 दिन बाद कारखाना बंद करना मजबूरी होगी. उन्होंने बताया कि फर्रुखाबाद से जर्मनी, स्पेन, लंदन, फ्रांस, इटली समेत अन्य स्थानों पर माल जाता है, लेकिन कोरोना के चलते इन देशों के हालात भी बदतर है.

कोरोना महामारी का अंधेरा काल
जरदोजी का माल मुंबई, दिल्ली और पंजाब की मंडियों में जाता है. लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में ऑर्डर निरस्त हो गए थे. कभी इन कारखानों में लाखों का माल तैयार किया जाता था, लेकिन कोरोना महामारी के अंधेरे काल में उत्पादन क्षमता घट कर मात्र कुछ हजार तक सिमट गई है. आलम यह है कि कभी कारीगरों से गुलजार रहने वाली छपाई कारोबार की फैक्ट्रियां अब वीरान होती जा रही है.

फर्रुखाबाद: प्रदेश की अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए यूपी सरकार की ओर से उद्योग-धंधों को चलाने के लिए हरी झंडी दे दी गई है, लेकिन फर्रुखाबाद का प्रमुख जरदोजी और छपाई उद्योग सन्नाटे में है. परिवहन सेवा बंद होने के कारण न तो कच्चा माल आ पा रहा है और न ही यहां से उत्पादों की देश-विदेश में आपूर्ति हो पा रही है. यदि यही हाल रहा तो यहां के कारखाने भी अधिक दिन नहीं चल सकेंगे.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

लॉकडाउन में छूट मिलने पर यहां उद्योगों के लिए न तो श्रमिक तो मिल रहे हैं और न कच्चा माल ही मिल पा रहा है. कच्चे माल की कमी से छपाई उद्योग पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. जिन कारखानों के पास पहले से जो कच्चा माल था सिर्फ वही कारखाने चल रहे हैं. ऐसे में करीब 40 फीसदी कारखाने बंदी की कगार पर हैं. लॉकडाउन में छपाई कारोबार अब अपनी छाप खोता जा रहा है. वहीं मुंबई, दिल्ली और पंजाब के बाजारों से मांग भी नहीं आ रही है. इस वजह से भी काम तेजी से शुरू नहीं हो पा रहा है. लोकल बाजार में बिकने वाली शॉल और स्टॉल की ही थोड़ी बहुत मांग है.

crisis on printing and zardozi industry during lockdown in farrukhabad
छपाई करते कारीगर.

श्रमिकों के सामने रोजी रोटी का संकट
जिले में 125 इकाइयां ही रजिस्टर्ड हैं, लेकिन इसकी आड़ में लगभग 250 से अधिक छोटे-बड़े कई अवैध कारखाने चल रहे हैं. शहर के जरदोजी और कपड़ा छपाई कारखानों में तकरीबन 25 हजार से अधिक लोग काम करते हैं. लॉकडाउन के कारण इन कारीगरों और श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है. ग्रीन जोन में शामिल फर्रुखाबाद में कुछ शर्तों के साथ जिला प्रशासन ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी प्राप्त सात कपड़ा छपाई कारखाना खोलने की अनुमति दी है, लेकिन कारखाना मालिक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए करीब 35 प्रतिशत लोगों को ही अल्टरनेट डेज के आधार पर बुला पा रहे हैं.

crisis on printing and zardozi industry during lockdown in farrukhabad
छपाई कारखाने में काम करते मजदूर.

तमिलनाडु से नहीं आ पा रहा कपड़ा
कारखाना मालिक संतोष साध ने बताया कि कपड़ा तमिलनाडु के ईरोड से आता है. लॉकडाउन के कारण 25 मार्च से कारखाना बंद था. अब 4 मई से काम शुरू हो सका है. एक-दो आर्डर ही मिल रहे हैं, जिन्हें अपने रिस्क पर छाप रहे हैं. कुछ आर्डर कैंसिल भी हो चुके हैं. मुश्किल यह है कि अभी वही कारखाने ही चल रहे हैं, जिनके पास कच्चा माल है. बाहर से कपड़ा न आया तो 4 से 5 दिन बाद कारखाना बंद करना मजबूरी होगी. उन्होंने बताया कि फर्रुखाबाद से जर्मनी, स्पेन, लंदन, फ्रांस, इटली समेत अन्य स्थानों पर माल जाता है, लेकिन कोरोना के चलते इन देशों के हालात भी बदतर है.

कोरोना महामारी का अंधेरा काल
जरदोजी का माल मुंबई, दिल्ली और पंजाब की मंडियों में जाता है. लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में ऑर्डर निरस्त हो गए थे. कभी इन कारखानों में लाखों का माल तैयार किया जाता था, लेकिन कोरोना महामारी के अंधेरे काल में उत्पादन क्षमता घट कर मात्र कुछ हजार तक सिमट गई है. आलम यह है कि कभी कारीगरों से गुलजार रहने वाली छपाई कारोबार की फैक्ट्रियां अब वीरान होती जा रही है.

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