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एटा में लगातार बढ़ रहे जहरखुरानी के मामले, हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं बना सेल - एटा ताजा समाचार

उत्तर प्रदेश के एटा में जहरखुरानी के बढ़ते मामलों के मद्देनजर हाईकोर्ट में साल 2012 में एक जनहित याचिका डाली गई थी कि इसको लेकर एक सेल बनाया जाए, लेकिन इस बाबत कोई कार्रवाई नहीं की गई.

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लगातार बढ़ रहे जहरखुरानी के मामले.
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Published : Feb 9, 2020, 7:21 AM IST

एटा: जिले में लगातार जहरखुरानी के मामले सामने आ रहे हैं. इससे निपटने के लिए पुलिस की तरफ से जो प्रयास किए जाते हैं, वह नाकाफी साबित हो रहे हैं. जहरखुरानी के बढ़ते मामलों को देखते हुए जिले के लेखक कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय ने हाईकोर्ट में साल 2012 में एक जनहित याचिका डाली थी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने करीब 7 साल पहले पुलिस महानिदेशक को निर्देश जारी कर कहा था कि एक सेल बनाया जाये.

लगातार बढ़ रहे जहरखुरानी के मामले.

कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय का आरोप है कि अभी तक कोई सेल नहीं बनाया गया. बता दें, एटा दिल्ली-कानपुर जीटी रोड पर स्थित है और यहां आए दिन जहरखुरानी के मामले सामने आते हैं. बीते 1 महीना 6 दिन में कई मामले सामने आ चुके हैं. जनवरी 2020 की बात करें तो 25 और 6 फरवरी तक 9 मामले सामने आए हैं, जबकि 2019 में पुलिस ने सिर्फ 3 मुकदमे जहरखुरानी के दर्ज किए थे, जिनकी अभी जांच चल रही है.

जहरखुरानी के मामलों में हो रही है कार्रवाई

जहरखुरानी के बढ़ते मामलों पर जिले के एडिशनल एसपी क्राइम राहुल कुमार की मानें तो 2019 में महज 3 मामले जहरखुरानी के जलेसर थाने में दर्ज हुए. इन मामलों में क्राइम ब्रांच और स्थानीय पुलिस ने आपस में समन्वय स्थापित कर पीड़ितों को त्वरित सुविधा पहुंचाई. उन्होंने बताया कि इन तीन मामलों में गुणवत्तापूर्ण विवेचना की जा रही है, जिससे दोषियों को कड़ी सजा मिले.

अक्सर जहरखुरानी के जो मामले आते हैं, वह दूरदराज के होते हैं. जब पीड़ित शहर में पहुंचता है तब जहरखुरानी के मामले की जानकारी हो पाती है, जिसके चलते ज्यादातर मामले नगर कोतवाली में ही आते हैं. हालांकि जब इसकी जांच की जाती है तो पता चलता है कि इस अपराध की शुरुआत सुदूर क्षेत्र में हुई थी. ऐसे में लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह मामला दर्ज कराएं अथवा नहीं. पीड़ित चाहता है तो संबंधित थाने पर पुलिस मुकदमा दर्ज करवा देती है.

राहुल कुमार, एडिशनल एसपी

एटा: जिले में लगातार जहरखुरानी के मामले सामने आ रहे हैं. इससे निपटने के लिए पुलिस की तरफ से जो प्रयास किए जाते हैं, वह नाकाफी साबित हो रहे हैं. जहरखुरानी के बढ़ते मामलों को देखते हुए जिले के लेखक कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय ने हाईकोर्ट में साल 2012 में एक जनहित याचिका डाली थी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने करीब 7 साल पहले पुलिस महानिदेशक को निर्देश जारी कर कहा था कि एक सेल बनाया जाये.

लगातार बढ़ रहे जहरखुरानी के मामले.

कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय का आरोप है कि अभी तक कोई सेल नहीं बनाया गया. बता दें, एटा दिल्ली-कानपुर जीटी रोड पर स्थित है और यहां आए दिन जहरखुरानी के मामले सामने आते हैं. बीते 1 महीना 6 दिन में कई मामले सामने आ चुके हैं. जनवरी 2020 की बात करें तो 25 और 6 फरवरी तक 9 मामले सामने आए हैं, जबकि 2019 में पुलिस ने सिर्फ 3 मुकदमे जहरखुरानी के दर्ज किए थे, जिनकी अभी जांच चल रही है.

जहरखुरानी के मामलों में हो रही है कार्रवाई

जहरखुरानी के बढ़ते मामलों पर जिले के एडिशनल एसपी क्राइम राहुल कुमार की मानें तो 2019 में महज 3 मामले जहरखुरानी के जलेसर थाने में दर्ज हुए. इन मामलों में क्राइम ब्रांच और स्थानीय पुलिस ने आपस में समन्वय स्थापित कर पीड़ितों को त्वरित सुविधा पहुंचाई. उन्होंने बताया कि इन तीन मामलों में गुणवत्तापूर्ण विवेचना की जा रही है, जिससे दोषियों को कड़ी सजा मिले.

अक्सर जहरखुरानी के जो मामले आते हैं, वह दूरदराज के होते हैं. जब पीड़ित शहर में पहुंचता है तब जहरखुरानी के मामले की जानकारी हो पाती है, जिसके चलते ज्यादातर मामले नगर कोतवाली में ही आते हैं. हालांकि जब इसकी जांच की जाती है तो पता चलता है कि इस अपराध की शुरुआत सुदूर क्षेत्र में हुई थी. ऐसे में लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह मामला दर्ज कराएं अथवा नहीं. पीड़ित चाहता है तो संबंधित थाने पर पुलिस मुकदमा दर्ज करवा देती है.

राहुल कुमार, एडिशनल एसपी

Intro:एटा। जिले में लगातार जहरखुरानी के मामले सामने आ रहे हैं। इससे निपटने के लिए पुलिस की तरफ से जो प्रयास किए जाते हैं, वह नाकाफी साबित हो रहे हैं। जिले में जहरखुरानी के बढ़ते मामलों को देखते हुए जिले के लेखक कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय ने हाईकोर्ट में साल 2012 में एक जनहित याचिका डाली थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने करीब 7 साल पहले पुलिस महानिदेशक को निर्देश जारी कर कहा था कि एक सेल बनाया जाये। कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय का आरोप है कि अभी तक कोई सेल नहीं बनाया गया। आपको बता दें कि एटा दिल्ली कानपुर जीटी रोड पर स्थित है और यहां आए दिन जहरखुरानी के मामले सामने आते हैं। बीते 1 महीना 6 दिन में दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं। जनवरी 2020 की बात करें तो 25 व 6 फरवरी तक 9 मामले सामने आए हैं। जबकि 2019 में पुलिस ने सिर्फ 3 मुकदमे जहरखुरानी के दर्ज किए थे। जिनकी जांच चल रही है।


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27 सितम्बर 2012 में जहरखुरानी जैसे अपराध के रोकथाम के लिये अलग से सेल गठित करने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक को दिए गए निर्देश के कागज बताते हैं कि पुलिस किस तरह से काम करें। जिससे ऐसे अपराधों पर रोक लगे। आरोप है कि करीब 7 साल बीत जाने के बाद भी पुलिस महकमे की तरफ से जहर खुरानी जैसे अपराधों की रोकथाम के लिए कोई विशेष सेल नहीं बनाया गया है और ना ही जहर खुरानी के शिकार व्यक्तियों को उचित सुरक्षा प्रदान की जाती है। इतना ही नहीं इन जैसे ज्यादातर मामलों में प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की जाती है।

इस तरह बढ़ा जहरखुरानी

दरअसल साल 2000 के आसपास जहरखुरानी अपराध राष्ट्रीय राजमार्गों और रेलवे में आरंभ होना बताया जा रहा है। 2011- 12 में यह अपराध इतना बढ़ गया कि अकेले एटा अस्पताल में प्रतिमाह 8 से 10 जहरखुरानी के शिकार आने लगे। रोडवेज कर्मियों या पुलिस द्वारा नशे से बेहोश इन जहरखुरानी के शिकारो को अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता था । अस्पताल में मौजूद डॉक्टर प्राथमिक उपचार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया करते थे । किंतु इसी बीच जब इस शिकार को होश आने लगता था। तो उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता था। ऐसे में कई बार जहरखुरानी के शिकार व्यक्ति की जान भी चली जाती थी।
जहर खुरानी के इन घटनाओं से आहत एटा के वरिष्ठ पत्रकार व लेखक कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय ने पहले तो जिला प्रशासन और पुलिस से इन निरीह की व्यवस्था करने का आग्रह किया। किंतु कोई सुनवाई न होता देख आखिरकार जनहित याचिका के माध्यम से कृष्ण प्रभाकर ने हाईकोर्ट की शरण ली। उच्च न्यायालय में यह याचिका जैसे ही पहुंची तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अमिताभ लाला ने इस मामले को जनहित याचिका की सुनवाई करने वाले न्यायालय को ना भेजकर अपने पास ही रखा और 27 सितंबर 2012 को पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश को इस अपराध की रोकथाम के लिए अलग से विशेष सेल गठित करने तथा जहरखुरानी के शिकार व्यक्तियों को उचित सुरक्षा देने ,उन्हें पुलिस सुरक्षा में उनके गंतव्य तक पहुंचाने तथा इस अपराध की प्राथमिकी दर्ज कराने के विस्तृत निर्देश जारी किए।

उस समय थी समाजवादी सरकार

उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। याचिकाकर्ता कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय बताते हैं कि पूरे 4 साल प्रतीक्षा करने के बाद उन्होंने 29 मार्च 2016 को सूचना अधिकार अधिनियम के तहत पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश के जन सूचना अधिकारी से 8 बिंदुओं पर सूचना मांगी। यह आवेदन पहले तो इसलिए लौटा दिया गया कि आवेदन में 10 रुपये शुल्क के स्थान पर 50 रुपये शुल्क याचिकाकर्ता द्वारा भेजा गया था। यह आवेदन जैसे ही दोबारा भेजा गया । तो इसे मुख्यालय राजकीय रेलवे पुलिस उत्तर प्रदेश को अंतरित कर दिया गया। अर्थात सूचना डीजीपी को देनी थी। लेकिन डीजीपी अपना कंधा देने के बजाय पूरे मामले को राजकीय रेलवे पुलिस पर टाल रहे थे। अंततः कहीं से भी सफलता न मिलती देख याचिकाकर्ता ने राज्य सूचना आयोग उत्तर प्रदेश में अपील प्रस्तुत की । इसमें सुनवाई करते हुए मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने 27 फरवरी 2018 को पुलिस महानिदेशक के जन सूचना अधिकारी को विन्दुवार सूचना देने के निर्देश दिए। आयोग के निर्देश के बाद 29 मार्च 2018 को श्री उपाध्याय को जो सूचनाएं सौंपी गई। उसमें यह सनसनीखेज खुलासा हुआ कि उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा 6 वर्षों में किसी सेल का गठन ही नहीं किया गया।

बताया जा रहा है कि यह सेल आज तक गठित नहीं हुई। जबकि जहर खुरानी अपराध की स्थिति यह है कि अकेले एटा जनपद मुख्यालय पर ही जनवरी 2020 से लेकर अब तक जिला चिकित्सालय के आपातकालीन विभाग में 35 मामले जहरखुरानी के आ चुके हैं।

क्या करते हैं अस्पताल के चिकित्सक

चिकित्सालय में जहरखुरानी का शिकार आते ही चिकित्सक द्वारा तत्काल कोतवाली नगर को लिखित सूचना भेजी जाती है। किंतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी ना तो किसी जहरखुरानी के शिकार को सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है और ना ही प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है। याचिकाकर्ता कृष्ण प्रभाकर जी का कहना है कि जहर खुरानी अपराध अब राष्ट्रीय मार्ग से आगे बढ़कर स्थानीय स्तर पर आ पहुंचा है। प्रत्येक जहरखुरानी के शिकार से नगदी जेवरात साथ-साथ मोबाइल फोन भी अपराधी ले जाते हैं। पुलिस अगर इन मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगाए तब भी अनेक अपराध पकड़े जा सकते हैं।
बाइट: कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय (लेखक)



Conclusion:
क्या कहते हैं पुलिस के अधिकारी

जहरखुरानी के बढ़ते मामलों पर जिले के एडिशनल एसपी क्राइम राहुल कुमार की मानें तो 2019 में महज 3 मामले जहर खुरानी के जलेसर थाने में दर्ज हुए। इन मामलों में क्राइम ब्रांच व स्थानीय पुलिस ने आपस में समन्वय स्थापित कर पीड़ितों को त्वरित सुविधा पहुंचाई । उन्होंने बताया कि इन तीन मामलों में गुणवत्तापूर्ण विवेचना की जा रही। जिससे दोषियों को कड़ी सजा मिले।

आखिर क्यों दर्ज नहीं होते जहर खुरानी के मामले

एडिशनल एसपी क्राइम राहुल कुमार ने बताया कि अक्सर जहरखुरानी के जो मामले आते हैं। वह दूरदराज के होते हैं। जब पीड़ित शहर में पहुंचता है तब जहरखुरानी के मामले की जानकारी हो पाती है। जिसके चलते ज्यादातर मामले नगर कोतवाली में ही आते हैं। लेकिन जब इसकी जांच की जाती है। तो पता चलता है कि इस अपराध की शुरुआत सुदूर क्षेत्र में हुई थी। ऐसे में लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह मामला दर्ज कराएं अथवा नहीं। पीड़ित चाहता है तो संबंधित थाने पर पुलिस मुकदमा दर्ज करवा देती है।
बाइट: राहुल कुमार (एडिशनल एसपी क्राइम एटा)

ऐसे में पुलिसिया कार्रवाई का अंदाजा लगाना आसान है कि जब साल 2019 में दर्जनों मामले जहरखुरानी के आए और पुलिस ने केवल 3 मुकदमे ही दर्ज किए।
पीटूसी:वीरेंद्र पाण्डेय
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