बिजनौर: इंतेहा हो गई, इंतजार की, आई न कुछ खबर, मेरे डॉक्टर की...जी हां, ये लाइनें सटीक बैठती हैं यूपी के बिजनौर जिले के सरकारी अस्पतालों पर. जिनपर सरकार लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करके उन्हें हाईटेक बनाने में जुटी हुई है. वहीं ये अस्पताल डॉक्टरों के बिना सूने पड़े हैं. जगह-जगह गंदगी से भरे ये अस्पताल खुद ही बीमार नजर आ रहे हैं.
गरीब जनता के इलाज के लिए यूपी सरकार ने बिजनौर में 11 पीएचसी , 11 सीएचसी, 45 सहायक पीएचसी और 343 स्वास्थ्य उपकेंद्रों को बनवाए हैं. पर डॉक्टर और अन्य स्टाफ के इंतजार में यहां लाखों की मशीनें और अन्य उपकरण धूल फांक रहे हैं. मरीज फार्मासिस्ट और वॉर्ड बॉय से दवाइयां लेने को मजबूर हैं. पैरा मेडिकल स्टाफ से दवाई लेने के लिए उन्हें पर्ची के अलावा अलग से भी पैसे देने पड़ते हैं.
अस्पताल में फार्मासिस्ट संजय कुकरैती का कहना है कि डॉक्टरों की तैनाती न होने से उन्हीं को मरीजों को देखना पड़ता है और दवाई देनी पड़ती है. एक साल हो गया है, लेकिन अब तक किसी डॉक्टर की नियुक्ति नहीं की गई है.
जिला अस्पतालों में स्टाफ की कमी सरकार की अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देने के दावों की पोल खोल रही है. न जाने कब यूपी सरकार स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की तैनाती करेगी? और कब मरीजों का फार्मासिस्ट नहीं बल्कि डॉक्टर इलाज करेंगे? इन हालात को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या वाकई 'स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत' का सपना पूरा भी होगा?