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4 अरब खर्च फिर भी न पाए इज्जत घर, शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला

बस्ती में पिछले 2 साल में शौचालय के नाम पर 4 अरब 72 करोड़ 3 लाख रुपए खर्च कर दिए गए. लेकिन तमाम ग्राम पंचायतों में या तो शौचालय बने ही नहीं या फिर अधुरे पड़े हैं. हालांकि जिले में अब तक 62 सचिवों के खिलाफ गबन के आरोप में मुकदमा दर्ज हो चुका है और 150 सचिवों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई हो चुकी है.

शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.
शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.
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Published : Feb 10, 2021, 12:57 PM IST

बस्ती : जिले में अगर किसी योजना की सबसे अधिक धन की बर्बादी हुई है तो वह है स्वच्छ भारत मिशन. इस मिशन को बर्बाद करने में प्रधान और सचिवों ने कोई कसर नहीं छोड़ा. इसका सुबूत है 62 सचिवों के खिलाफ गबन के आरोप में मुकदमा दर्ज और 150 सचिवों के खिलाफ निलंबन सहित अन्य आरोपों में कार्रवाई होना.

शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.

दरअसल ग्रामीण क्षेत्र में बहू बेटियों की इज्जत बचाने के लिए जिले में पिछले 2 साल में शौचालय के मद में 4 अरब 72 करोड़ 3 लाख रुपए खर्च हो गए. मगर न तो बहू-बेटियों की इज्जत बच रही है और न ही इज्जत घर ही बन पा रहे हैं. इतना खर्च होने के बाद भी महिलाएं खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. पिछले 5 सालों में ऐसा कोई ग्राम पंचायत नहीं जहां पर शौचालय के नाम पर भारी धन राशि का बंदरबांट न किया गया हो. एक-एक ग्राम पंचायतों में 10 से 15 लाख तक गबन किए गए.

शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.
शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.

इन सबके बावजूद डीपीआरओ विनय कुमार सिंह का दावा है कि उक्त योजनाओं में अब तक 393586 घर को शौचालय उपलब्ध करा दिया गया है. 18727 घरों में शौचालय का निर्माण करने की योजना है, यानी अभी भी शौचालय के नाम पर 22 करोड़ 40 लाख खर्च करने को विभाग तैयार है. प्रधानों का कार्यकाल तो पूरा हो गया मगर जाते-जाते वह गांव और गरीबों को तबाह करके चले गए. इस तबाही में प्रधानों का साथ बखूबी विभाग के अधिकारियों और सचिवों ने दिया. लाभार्थियों के चयन में जिस तरह प्रधानों ने पक्षपात किया उसका खामियाजा योजना के साथ गरीब और जरूरतमंदों को भुगतना पड़ रहा है.

शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.
शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.

आज भी गांव में ऐसे हजारों घर हैं, जहां पर शौचालय नहीं है. ऐसे भी अनेक मामले सामने आए हैं, जहां पर प्रधान की मिलीभगत से एक ही परिवार को विभिन्न नामों से कई-कई शौचालय दे दिया गया, जबकि वह पात्र ही नही है. हालांकि स्वच्छ भारत मिशन के कुछ अधिकारियों की मेहनत का ही परिणाम है कि आज इतनी बड़ी संख्या में घोटाले उजागर हो सके हैं. इन अधिकारियों की जांच में मामले तो कई पकड़े गए मगर कार्रवाई उस रूप में नहीं हुई जिस तरह की रिपोर्ट गई. पटल सहायकों की मेहरबानी से आज भी बड़ी संख्या में पत्रावलियां दबी पड़ी हैं.

बस्ती : जिले में अगर किसी योजना की सबसे अधिक धन की बर्बादी हुई है तो वह है स्वच्छ भारत मिशन. इस मिशन को बर्बाद करने में प्रधान और सचिवों ने कोई कसर नहीं छोड़ा. इसका सुबूत है 62 सचिवों के खिलाफ गबन के आरोप में मुकदमा दर्ज और 150 सचिवों के खिलाफ निलंबन सहित अन्य आरोपों में कार्रवाई होना.

शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.

दरअसल ग्रामीण क्षेत्र में बहू बेटियों की इज्जत बचाने के लिए जिले में पिछले 2 साल में शौचालय के मद में 4 अरब 72 करोड़ 3 लाख रुपए खर्च हो गए. मगर न तो बहू-बेटियों की इज्जत बच रही है और न ही इज्जत घर ही बन पा रहे हैं. इतना खर्च होने के बाद भी महिलाएं खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. पिछले 5 सालों में ऐसा कोई ग्राम पंचायत नहीं जहां पर शौचालय के नाम पर भारी धन राशि का बंदरबांट न किया गया हो. एक-एक ग्राम पंचायतों में 10 से 15 लाख तक गबन किए गए.

शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.
शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.

इन सबके बावजूद डीपीआरओ विनय कुमार सिंह का दावा है कि उक्त योजनाओं में अब तक 393586 घर को शौचालय उपलब्ध करा दिया गया है. 18727 घरों में शौचालय का निर्माण करने की योजना है, यानी अभी भी शौचालय के नाम पर 22 करोड़ 40 लाख खर्च करने को विभाग तैयार है. प्रधानों का कार्यकाल तो पूरा हो गया मगर जाते-जाते वह गांव और गरीबों को तबाह करके चले गए. इस तबाही में प्रधानों का साथ बखूबी विभाग के अधिकारियों और सचिवों ने दिया. लाभार्थियों के चयन में जिस तरह प्रधानों ने पक्षपात किया उसका खामियाजा योजना के साथ गरीब और जरूरतमंदों को भुगतना पड़ रहा है.

शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.
शौचालय के नाम पर बड़ा घोटाला.

आज भी गांव में ऐसे हजारों घर हैं, जहां पर शौचालय नहीं है. ऐसे भी अनेक मामले सामने आए हैं, जहां पर प्रधान की मिलीभगत से एक ही परिवार को विभिन्न नामों से कई-कई शौचालय दे दिया गया, जबकि वह पात्र ही नही है. हालांकि स्वच्छ भारत मिशन के कुछ अधिकारियों की मेहनत का ही परिणाम है कि आज इतनी बड़ी संख्या में घोटाले उजागर हो सके हैं. इन अधिकारियों की जांच में मामले तो कई पकड़े गए मगर कार्रवाई उस रूप में नहीं हुई जिस तरह की रिपोर्ट गई. पटल सहायकों की मेहरबानी से आज भी बड़ी संख्या में पत्रावलियां दबी पड़ी हैं.

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