बरेली: पूरा देश आज आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस आजादी को पाने की कितनी बड़ी कीमत आजादी के दीवानों को चुकानी पड़ी. यह तब पता चलता है जब वर्तमान से हम अतीत की ओर जाते हैं. इतिहास के पन्नों में दर्ज शहादत की स्वर्णिम कहानी को समझते हैं. आज हम 257 क्रांतिकारी वीर सपूतों की ऐसी ही कहानी से हम आपको रूबरू कराएंगे, जिन्होंने आजादी के लिए एक साथ फांसी के फंदे पर झूल गए थे. दरअसल, 1857 में जब मेरठ में मंगल पांडे ने क्रांति की शुरुआत की. उसके बाद क्रांतिकारियों ने रुहेलखण्ड को अंग्रेजों से क्रांतिकारियों ने आजाद करा दिया था. बाद में अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ कर 257 क्रांतिकारी वीर सपूतों को बरेली कमिश्नरी में स्थित बरगद के पेड़ पर फांसी दी गयी थी. बरगद का ये पेड़ आज भी वीर सपूतों के बलिदान का साक्षी है.
1857 में मेरठ से क्रांति की चिनगारी सुलगनी शुरू हुई थी. मेरठ के बाद आजादी का यह संग्राम रुहेलखण्ड तक पहुंचा. अंग्रेजो से मुक्ति के लिए रुहेलखण्ड में क्रान्तिकारियों ने एकत्र होना शुरू कर दिया. रुहेला सरदार खान बहादुर खान के नेतृत्व में सिपाहियों ने अंग्रेजों को रुहेलखण्ड से खदेड़ दिया. क्रान्तिकारियों ने दस महीने 5 दिन तक रुहेलखण्ड़ को अंग्रेजो से मुक्त रखा था.
सपा की सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उस बरगद के पेड़ के पास सभी 257 क्रांतिकारियों की याद में स्मृति स्तम्भ स्थापित कराया था. आज जब हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं. आज बरेली में लोग चाहते हैं कि आजादी के लिए हुई क्रान्ति और जान गंवाने वाले वीरों के बारे में आने वाली पीढ़ियां भी जान सकें इसके लिए स्मृति स्थल का जीर्णोद्धार किया जाए. ताकि आने वाली पीढियां ये जान सकें कि कैसे देश को आजादी के लिए हमारे वीरों ने कुर्बानियां दीं. उन वीरों को जान भी देनी पड़ी तो पीछे नहीं हटे. हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूलने से भी परहेज नहीं किया.