बरेली: तपती आंच पर लोहे को आकार देने वाले लोहार इस समय बेहद परेशान है. कोरोना की दूसरी लहर को रोकथाम के लिए बरेली में लॉकडाउन क्या लगा. कई लोहारों के घर के चूल्हे ठंडे पड़ गए. पथराई आंखों और रुंधे गले से अब ये लोग आस लगाए बैठे हैं कि सरकार इनके लिए कुछ करें, नहीं तो कोरोना से अगर जान बच भी गई तो रोटी की जुगाड़ में कहीं ये परिवार भूख से ही न बिछड़ जाए.
ग्राहकों का करते हैं इंतजार
वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से अनेकों परिवारों के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में लोहार समुदाय के सामने भी दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना काफी मुश्किल हो गया है. कोरोना की दूसरी लहर के चलते लगे लॉकडाउन में ये लोग बेबस नजर आ रहे हैं. खाली हाथ पर हाथ रखकर बैठकर ग्राहकों का इंतजार ही ये लोग किया करते हैं. लोहारों की आजीविका कोरोना काल में चौपट नजर आ रही है.
कोरोना संक्रमण की वजह से हालात हुए बद से बदतर
बरेली के सेटेलाइट बस अड्डे के पास में तपती धूप में भट्टी सुलगाने की जुगत में बैठे बबलू ने अपना दर्द साझा करते बताया कि परिवार का किसी तरह पेट पाल रहे हैं. पिछले वर्ष से कोरोना महामारी क्या फैली हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं. जबकि दूसरी लहर की वजह से लागू लॉकडाउन में उनके सामने दिक्कतों का अंबार लग गया है. काम नहीं करेंगे तो भूखा सोना पड़ेगा. सरकार से इस आपदा में सिर्फ रोटी के इंताजाम की गुजारिश है. जिससे उनका और उनके परिवार का पेट भर सके.
पेट भरने के लिए अपमान सहने को तैयार
बरेली में तो सैकड़ों ऐसे परिवार है जो शहर के डेलापीर, सेटेलाइट, ट्रांसपोर्ट नगर, सुभाषनगर, राजेंद्रनगर समेत अन्य कई इलाकों में सड़कों के किनारे अपने परिवार को पालने को इन हालात में जूझते देखे जा सकते हैं. लोहार महावीर ने बताया कि परिवार में बच्चे, पत्नी, माता-पिता और भाई-बहन हैं. उनके लिए रोटी का जुगाड़ करने के लिए वो कई बार तो अपमान तक भी सहन करते हैं. क्योंकि लॉकडाउन में बाजार बंद हैं,तो ऐसे में उन्हें भी काम करने से रोका जा रहा है.
लोहार अमर सिंह का कहना है कि परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो गया है. वो कहते हैं कि जब पिछले वर्ष काफी सहयोग भी जनता करती थी, लेकिन इस बार हालात अलग हैं. इस बार तो न कोई सरकारी नुमाइंदा और न ही कोई संगठन उनकी मदद के लिए आगे आया. जिसके चलते भूखों मरने की स्थिति पैदा हो गई है.
रोटी के इंतजाम की है फिक्र
बुजुर्ग राजेन्द्र कहते हैं कि न कोई मदद सरकार कर रही न कोई संस्था. ऐसे में करो या मरो की स्थिति उनके सामने है. उन्होंने बताया कि काम बंद है और मजदूरी भी दिन भर मेंं नहीं मिल पा रही है.उन्होंने बताया कि उन्हें कोरोना की नहीं, रोटी के इंतजाम की फिक्र है.
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