लखनऊ: महाशिवरात्रि का महापर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस दौरान शिव भक्तों में उत्साह है और हर तरफ बम बम भोले के जयकारे लगाए जा रहे हैं. ऐसा ही नजारा बाराबंकी जिले रामनगर के लोधेश्वर महादेवा धाम में दिखा. यहां सुबह से ही मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. जबकि कोई अप्रिय घटना न घटे इसे लेकर पुलिस प्रशासन मुस्तैद है और सीसीटीवी से पूरे मेले की निगरानी की जा रही है.
लोधेश्वर महादेव के पुजारी आदित्यनाथ ने बताया महाशिवरात्रि का एक विशेष महत्व होता है. शिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग की उत्पत्ति हुई और महादेव का विवाह भी इसी दिन हुआ था. कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है, कावर चढ़ाता है. भोलेनाथ उसकी की मन्नत जरूर सुनते है.
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वहीं, अमरोहा के गजरौला में स्थित चौकी खेड़ा के प्राचीन शिव मंदिर पर महाशिवरात्रि के मौके पर लाखों श्रद्धालुओं ने शिव का जलाभिषेक किया. इस दौरान ETV Bharat से खास बातचीत में कांवरियों ने बताया हम हर वर्ष इसी तरह हरिद्वार से जल लेकर यहां पर चढ़ाते हैं और देश में सुश शांति की कामना मांगते है.
सहारनपुर में भी महाशिवरात्रि का पर्व भक्तों ने बढ़-चढ़कर मनाया. कहा जाता है कि देवबन्द नगर का मनकेश्वर महादेव मंदिर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करता है. जानकारों के मुताबिक जिस भूमि पर यह मंदिर बना है, वह भूमि मुस्लिम की थी. एक दिन वह अपने खेत में काम कर रहा था. अचानक उसका हल एक पत्थर से टकराया और उस पत्थर से खून की धारा बहने लगी. देखते ही देखते वहां शिवलिंग प्रकट हो गया. तब से ही यंहा पर विशाल मंदिर बना हुआ है और हर साल महाशिवरात्रि के मौके पर भारी संख्या में शिव भक्ता यहां आते है.
वहीं, आगरा के प्रसिद्ध बटेश्वर धाम में यमुना किनारे चंद्राकार में प्राचीन सैकड़ों वर्ष पुराने 101 शिव मंदिर बने हुए हैं. हर वर्ष महाशिवरात्रि के मौके पर दूरदराज से भारी संख्या में श्रद्धालु यहां भागवान भोलेनाथ का जलाभिषेकर करने पहुंचते है. जबकि सुरक्षा के लिहाज से पुलिस प्रशासन द्वारा चाक-चौबंद इंतजाम किए गए थे.
संगम नगरी प्रयागराज में सत्ती चौरा से महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर 18 वर्षों से निकल रही ऐतिहासिक शिव बारात मालवीय नगर सत्तीचौरा से निकाली गई. भगवान भोलेनाथ की इस बारात में हाथी, घोड़ा, बग्घी, बैंड बाजा के साथ साथ भूत प्रेत अवघड़ दानी जो भोले बाबा की बारात में थिरकते नजर आए, जो कि आकर्षण का केंद्र भी बने रहे.
वाराणसी में महाशिवरात्रि पर बाबा मंगला की आरती में शामिल होने के लिए सोमवार रात से ही भारी संख्या में श्रद्धालुओं का काशी आने का सिलसिला शुरू हो गया था. इसी कड़ी में प्रदेश के ADG लॉ एन्ड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने अल सुबह बाबा मंगला आरती के समय बाबा काल भैरव का दर्शन पूजन किया. इस दौरान उन्होंने हाथ में मतदाता जागरूकता की तख्ती लेकर सभी से मतदान का आह्वान भी किया.
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औरैया का देवकली मंदिर जिसमें छिपे है कई अनसुलझे रहस्य
औरैया. जहां पूरा देश आज शिवरात्रि के महापर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मना रहा है, वहीं मौके पर हम आपको एक ऐसा प्राचीन शिव मंदिर दिखाएंगे जिसमें कई अनसुलझे रहस्य छिपे हुए हैं. जी हां ! हम बात कर रहे हैं औरैया जनपद के दक्षिण में यमुना नदी किनारे स्थित देवकली मंदिर की. प्राचीन कहानियां और रीति-रिवाजों के अनुसार मंदिर 11वीं शताब्दी से संबंधित है. हालांकि पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह मंदिर 18वीं शताब्दी का माना जाता है.
जनपद के दक्षिण दिशा में बीहड़ व यमुना नदी किनारे स्थित देवकली मंदिर औरैया जनपद के साथ-साथ आसपास के कई जनपदों में आस्था का प्रतीक बना हुआ है. कहा जाता है कि इस शिवालय पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर आता है, भगवान शिव उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण करते है.
मंदिर के निर्माण को लेकर लोगों व विद्वानों में मतभेद है. पुरानी कहानियों और रीति-रिवाजों के अनुसार मंदिर 11वीं शताब्दी से संबंधित है. हालांकि पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह मंदिर 18वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जयचंद की इकलौती पुत्री देवकला के नाम पर बनाया गया था.
शिवरात्रि पर एक जौ के बराबर बढ़ता है शिवलिंग
मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ का शिवलिंग एक जौ के दाने के बराबर बढ़ जाता है. इसका पता लगाने के लिए कई वैज्ञानिक आए लेकिन शिवलिंग की इस रहस्यमय गुत्थी को कोई भी सुलझा नहीं सका. वहीं, प्रतिवर्ष बढ़ते शिवलिंग के आकार के चलते कोई भी श्रद्धालु शिवलिंग को अपनी भुजाओं में नहीं भर पाता है.
यह भी कहा जाता है कि एक रहस्य यह भी है कि शिवलिंग पर चढ़ने वाला जल व दूध कहां जाता है, है. लोगों का कहना है कि शिवरात्रि और सावन में शिवलिंग पर चढ़ने वाला हजारों लीटर दूध व जल कुछ ही समय बाद गायब हो जाता है. कई वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए काफी प्रयास किया. लेकिन कोई भी विद्वान आज तक यह पता नहीं लगा पाया कि आखिर शिवरात्रि व सावन में शिवलिंग पर चढ़ने वाला हजारों व लाखों लीटर दूध व जल जाता कहां है.