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बाराबंकी की शिमला मिर्च बन रही पहचान, तकनीकी सीखने पहुंच रहे किसान

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Published : Jan 1, 2020, 5:38 PM IST

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में शिमला मिर्च की तकनीकी खेती के गुर सीखने अन्य जिलों के किसान पहुंच रहे हैं. किसान पारंपरागत खेती करने के साथ-साथ, तमाम प्रकार की सब्जियों और फलों की खेती भी कर रहे हैं. इसमें वह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. वे खेती में बेहतर से बेहतर तकनीक का उपयोग कर रहे है.

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बाराबंकी में शिमला मिर्च की तकनीकी खेती.

बाराबंकी: जनपद में शिमला मिर्च की तकनीकी खेती सीखने अन्य जिलों से किसान आ रहे हैं. किसान कम लागत और औसत मेहनत में बेहतर उत्पादन के गुर सीख रहे हैं. बरेली से आए किसान लालाराम यहां मंचिंग और टपक सिंचाई के तरीके सीख रहे हैं. लालाराम बरेली में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने वाले पहले किसान हैं.

जानकारी देते किसान

बाराबंकी बन रहा तकनीक युक्त खेती का केंद्र

इन दिनों बाराबंकी जिला तकनीकयुक्त खेती का केंद्र बनता जा रहा है. यहां पर अब किसान पारंपरागत खेती करने के साथ-साथ, तमाम प्रकार की सब्जियों और फलों की खेती भी कर रहे हैं. इसमें अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, क्योंकि वे बेहतर से बेहतर तकनीक का उपयोग कर रहे हैं.

अन्य जिलों के किसान सीख रहे हैं किसानी

प्रदेश के अन्य जिलों के किसान पारंपरागत तरीके से खेती करते थे. वे भी यहां पर तकनीकी के गुर सीखने पहुंच रहे हैं. बाराबंकी के गांव बसबरौली के किसान सत्येंद्र वर्मा के पास बरेली के लालाराम यह देखने और सीखने के लिए पहुंचे कि कैसे मंचिंग और टपक सिंचाई के माध्यम से कम लागत और कम मेहनत में बेहतर उत्पादन और मुनाफा कमाया जा सकता है.

लालाराम को बरेली में 1992 में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने का श्रेय जाता है. उन्होंने आधा एकड़ से खेती शुरू की थी और 100 एकड़ तक शिमला मिर्च की खेती की.

2007- 2008 के वर्ष में भारत ब्रांड नाम से शिमला मिर्च की दिल्ली में सप्लाई करते थे, जिसका टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए था.

टपक सिंचाई और मंचिंग से फायदा

  • सिंचाई में 75% पानी की बचत होती है.
  • पौधे स्वस्थ रहेंगे और ग्रोथ अच्छी होगी.
  • पेस्टिसाइड फर्टिलाइजर और लेबर का खर्च कम होगा.
  • केवल शुरुआत में एक बार खर्च आएगा.
  • निराई गुड़ाई का खर्च नहीं होता है, जिससे पैसे की बचत होती है.
  • महज 25% पानी का उपयोग करके पर्यावरण और जल स्रोत को बचाया जा सकता है.
  • इसमें मंचिंग सीड डालने के कारण अल्ट्रावायलेट किरणें पौधे को नुकसान नहीं पहुंचाती है.

इसे भी पढ़ें:-साल 2019 में कहां हुई योगी सरकार सफल और कहां मिली चुनौती, जानें

यहां से सीखकर वह अब मंचिंग और टपक सिंचाई पर जाना चाहते हैं . इसके पहले उन्होंने रायपुर में यह प्रक्रिया देखी थी, जब उन्हें पता चला कि बाराबंकी में इस प्रकार की खेती होती है तो वह सीखने और देखने आए हैं.
लालाराम,शिमला मिर्च किसान ,बरेली

बाराबंकी: जनपद में शिमला मिर्च की तकनीकी खेती सीखने अन्य जिलों से किसान आ रहे हैं. किसान कम लागत और औसत मेहनत में बेहतर उत्पादन के गुर सीख रहे हैं. बरेली से आए किसान लालाराम यहां मंचिंग और टपक सिंचाई के तरीके सीख रहे हैं. लालाराम बरेली में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने वाले पहले किसान हैं.

जानकारी देते किसान

बाराबंकी बन रहा तकनीक युक्त खेती का केंद्र

इन दिनों बाराबंकी जिला तकनीकयुक्त खेती का केंद्र बनता जा रहा है. यहां पर अब किसान पारंपरागत खेती करने के साथ-साथ, तमाम प्रकार की सब्जियों और फलों की खेती भी कर रहे हैं. इसमें अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, क्योंकि वे बेहतर से बेहतर तकनीक का उपयोग कर रहे हैं.

अन्य जिलों के किसान सीख रहे हैं किसानी

प्रदेश के अन्य जिलों के किसान पारंपरागत तरीके से खेती करते थे. वे भी यहां पर तकनीकी के गुर सीखने पहुंच रहे हैं. बाराबंकी के गांव बसबरौली के किसान सत्येंद्र वर्मा के पास बरेली के लालाराम यह देखने और सीखने के लिए पहुंचे कि कैसे मंचिंग और टपक सिंचाई के माध्यम से कम लागत और कम मेहनत में बेहतर उत्पादन और मुनाफा कमाया जा सकता है.

लालाराम को बरेली में 1992 में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने का श्रेय जाता है. उन्होंने आधा एकड़ से खेती शुरू की थी और 100 एकड़ तक शिमला मिर्च की खेती की.

2007- 2008 के वर्ष में भारत ब्रांड नाम से शिमला मिर्च की दिल्ली में सप्लाई करते थे, जिसका टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए था.

टपक सिंचाई और मंचिंग से फायदा

  • सिंचाई में 75% पानी की बचत होती है.
  • पौधे स्वस्थ रहेंगे और ग्रोथ अच्छी होगी.
  • पेस्टिसाइड फर्टिलाइजर और लेबर का खर्च कम होगा.
  • केवल शुरुआत में एक बार खर्च आएगा.
  • निराई गुड़ाई का खर्च नहीं होता है, जिससे पैसे की बचत होती है.
  • महज 25% पानी का उपयोग करके पर्यावरण और जल स्रोत को बचाया जा सकता है.
  • इसमें मंचिंग सीड डालने के कारण अल्ट्रावायलेट किरणें पौधे को नुकसान नहीं पहुंचाती है.

इसे भी पढ़ें:-साल 2019 में कहां हुई योगी सरकार सफल और कहां मिली चुनौती, जानें

यहां से सीखकर वह अब मंचिंग और टपक सिंचाई पर जाना चाहते हैं . इसके पहले उन्होंने रायपुर में यह प्रक्रिया देखी थी, जब उन्हें पता चला कि बाराबंकी में इस प्रकार की खेती होती है तो वह सीखने और देखने आए हैं.
लालाराम,शिमला मिर्च किसान ,बरेली

Intro: बाराबंकी, 01 जनवरी। शिमला मिर्च की तकनीकी खेती सीखने बाहर के जिलों से बाराबंकी आ रहे हैं किसान. कम लागत और औसत मेहनत में बेहतर उत्पादन के सीख रहे हैं गुर. प्रदेश के बरेली से आए लालाराम यहां सीख रहे हैं मंचिंग और टपक सिंचाई के तरीके. लालाराम बरेली में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने वाले क्रांतिकारी किसान है. अभी तक करते थे सामान्य और फ्लड सिंचाई. बेहतर उत्पादन ,पौधों का स्वस्थ रहना, फर्टिलाइजर और पेस्टीसाइज के कम उपयोग, का होगा फायदा. मात्र 25% पानी में फसल की ग्रोथ होगी बेहतर ,लागत होगी कम , अल्ट्रावायलेट किरणों से जड़ों को होगी राहत.


Body:इन दिनों बाराबंकी जिला तकनीकी युक्त खेती का केंद्र बनता जा रहा है . यहां पर अब किसान परंपरागत खेती करने के साथ-साथ, तमाम प्रकार की सब्जियों और फलों की खेती भी कर रहे हैं, जिसमें वह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, क्योंकि बेहतर से बेहतर तकनीकी का उपयोग यहां पर हो रहा है.
अब तो इसका असर इतना है कि, प्रदेश के अन्य जिलों के किसान भी जो परंपरागत तरीके से खेती करते थे , यहां पर तकनीकी के गुर सीखने पहुंच रहे हैं.
बाराबंकी के बसबरौली गांव के किसान सत्येंद्र वर्मा के पास बरेली के लालाराम पहुंचे - यह देखने और सीखने के लिए कि, कैसे मंचिंग और टपक सिंचाई के माध्यम से, कम लागत और कम मेहनत में बेहतर उत्पादन और मुनाफा कमाया जा सकता है.

बताते चलें कि लालाराम को बरेली में 1992 में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने का श्रेय जाता है. इन्होंने आधा एकड़ से खेती शुरू की थी, और 100 एकड़ तक शिमला मिर्च की खेती इनके द्वारा की गई. 2007- 2008 के वर्ष में भारत ब्रांड नाम से शिमला मिर्च की दिल्ली में सप्लाई करते थे , जिसका टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए था.
लालाराम ने कहा कि, यहां बाराबंकी से सीखकर वह अब मंचिंग और टपक सिंचाई पर जाना चाहते हैं . इसके पहले उन्होंने रायपुर में यह प्रक्रिया देखी थी . जब उन्हें पता चला कि , बाराबंकी में इस प्रकार की खेती होती है तो, वह सीखने और देखने आए हुए हैं.

टपक सिंचाई और मंचिंग से क्या होगा फायदा ?

- सिंचाई में 75% पानी की होगी बचत

-पौधे स्वस्थ रहेंगे और ग्रोथ अच्छी होगी.

-पेस्टिसाइड फर्टिलाइजर और लेबर का खर्च कम होगा,

-केवल एक बार शुरू में खर्च आएगा.

-निराई गुड़ाई का खर्च नहीं होता है, जिससे पैसे की बचत होती है.
-महज 25% पानी का उपयोग करके पर्यावरण और जल स्रोत को बचाया जा सकता है , इतने में ही फसल अच्छी रहती है.

-इसमें मंचिंग सीड डालने के कारण अल्ट्रावायलेट किरणें पौधे को नुकसान नहीं पहुंचाती है, पौधों की ऊपज और यील्ड अच्छी होती है.


Conclusion:byte-

1- लालाराम (शिमला मिर्च - किसान ,बरेली)

2- सत्येंद्र वर्मा (शिमला मिर्च , किसान , बाराबंकी)




रिपोर्ट-  आलोक कुमार शुक्ला , रिपोर्टर बाराबंकी, 96284 76907
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