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40 साल में लग गई वादों की झड़ी, फिर भी यह परियोजना वहीं की वहीं है पड़ी

बलरामपुर में राप्ती और सरयू नहर परियोजना पिछले 40 सालों से लटकी हुई है. इसमें कुल सात प्रखंड हैं. इसके जरिए जिले भर के तकरीबन एक लाख किसानों को सिंचित भूमि देने की योजना थी.

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Published : Mar 14, 2019, 2:48 PM IST

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बलरामपुर : पिछले 40 सालों से चल रहे सरयू नहर परियोजना और राप्ती नहर परियोजना से खेतों में पानी पहुंचने की आस में किसानों की आंखें सूख गई हैं. वहीं भ्रष्टाचार का आलम ये है कि नहरों के ऊपर करवाए गए पक्के निर्माण ड्रेनेज, पुल, लघु पुल आदि सब एक बरसात भी नहीं झेल पाए.

देखें खास रिपोर्ट.

जिले में तकरीबन तीन लाख किसान हैं, जो कृषि विभाग के जरिए रजिस्टर्ड हैं. इनमें से तकरीबन एक लाख किसानों के पास सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है यानी तकरीबन 33 प्रतिशत किसानों के पास असिंचित भूमि है. जिनका सहारा या तो बरसात है या पहाड़ी नाले. इन्हीं किसानों को बेहतर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए साल 1978 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने प्रदेश के आठ जिलों में तकरीबन 300 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सरयू नहर परियोजना की शुरुआत की थी. साथ ही इस नहर के साथ-साथ चलने वाली सहायक नहरों का खाका भी तैयार किया था, लेकिन आज भी परियोजना अधर में लटक रही है.

इस परियोजना में निर्माण तो पूरा नहीं हो सका, लेकिन जितना भी निर्माण करवाया गया उस पर भी सिंचाई विभाग ने ढंग से काम नहीं किया. नहर में जगह-जगह पेंच हैं. कहीं जमीन न मिलने के कारण पेंच है तो कहीं निर्माण का घटिया काम रोड़ा बन कर खड़ा है. सरयू की सहायक राप्ती नहर परियोजना के तहत तुलसीपुर क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2018-19 में कुल 283 पक्के कार्य और 44 किलोमीटर का कच्चा काम होना तय हुआ था. इसके सापेक्ष केवल 46 पक्के कार्य व 22 किलोमीटर का कच्चा काम ही करवाया जा सका. परियोजना में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि तुलसीपुर के सोनपुर के पास सीरिया नाले पर बना एक ड्रेनेज एक बरसात भी नहीं झेल सका.

स्थानीय निवासी संजय मौर्य और माता प्रसाद मौर्य टूटे ड्रेनेज पर खड़े होकर बताते हैं कि नहर पर बनाया गया ड्रेनेज तकरीबन डेढ़ साल पहले, पहली ही बरसात में ही टूट गया. आस-पास के गांव पूरी तरह से पानी में ड़ूब गए. वह कहते हैं कि इसके निर्माण की क्वालिटी को आप खुद देख सकते हैं. यहां पर न तो बेहतर सरिया प्रयोग किया गया है और न ही बेहतर सीमेंट का. रास्ते पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं और सीरिया नाले का पानी रुक जाने के कारण कई गांव बाढ़ की जद में है. फिर भी प्रशासन चेत नहीं रहा.

वहीं इस मामले पर डीएम कृष्णा करुणेश का कहना है कि इस नाले के बजट और किस कंपनी के पास ठेका है इसकी जानकारी नहीं है. जिला प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार नहीं था. सिंचाई विभाग से पता करके जांच करवाई जाएगी और यदि कोई दोषी पाया जाता है. तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

बलरामपुर : पिछले 40 सालों से चल रहे सरयू नहर परियोजना और राप्ती नहर परियोजना से खेतों में पानी पहुंचने की आस में किसानों की आंखें सूख गई हैं. वहीं भ्रष्टाचार का आलम ये है कि नहरों के ऊपर करवाए गए पक्के निर्माण ड्रेनेज, पुल, लघु पुल आदि सब एक बरसात भी नहीं झेल पाए.

देखें खास रिपोर्ट.

जिले में तकरीबन तीन लाख किसान हैं, जो कृषि विभाग के जरिए रजिस्टर्ड हैं. इनमें से तकरीबन एक लाख किसानों के पास सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है यानी तकरीबन 33 प्रतिशत किसानों के पास असिंचित भूमि है. जिनका सहारा या तो बरसात है या पहाड़ी नाले. इन्हीं किसानों को बेहतर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए साल 1978 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने प्रदेश के आठ जिलों में तकरीबन 300 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सरयू नहर परियोजना की शुरुआत की थी. साथ ही इस नहर के साथ-साथ चलने वाली सहायक नहरों का खाका भी तैयार किया था, लेकिन आज भी परियोजना अधर में लटक रही है.

इस परियोजना में निर्माण तो पूरा नहीं हो सका, लेकिन जितना भी निर्माण करवाया गया उस पर भी सिंचाई विभाग ने ढंग से काम नहीं किया. नहर में जगह-जगह पेंच हैं. कहीं जमीन न मिलने के कारण पेंच है तो कहीं निर्माण का घटिया काम रोड़ा बन कर खड़ा है. सरयू की सहायक राप्ती नहर परियोजना के तहत तुलसीपुर क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2018-19 में कुल 283 पक्के कार्य और 44 किलोमीटर का कच्चा काम होना तय हुआ था. इसके सापेक्ष केवल 46 पक्के कार्य व 22 किलोमीटर का कच्चा काम ही करवाया जा सका. परियोजना में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि तुलसीपुर के सोनपुर के पास सीरिया नाले पर बना एक ड्रेनेज एक बरसात भी नहीं झेल सका.

स्थानीय निवासी संजय मौर्य और माता प्रसाद मौर्य टूटे ड्रेनेज पर खड़े होकर बताते हैं कि नहर पर बनाया गया ड्रेनेज तकरीबन डेढ़ साल पहले, पहली ही बरसात में ही टूट गया. आस-पास के गांव पूरी तरह से पानी में ड़ूब गए. वह कहते हैं कि इसके निर्माण की क्वालिटी को आप खुद देख सकते हैं. यहां पर न तो बेहतर सरिया प्रयोग किया गया है और न ही बेहतर सीमेंट का. रास्ते पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं और सीरिया नाले का पानी रुक जाने के कारण कई गांव बाढ़ की जद में है. फिर भी प्रशासन चेत नहीं रहा.

वहीं इस मामले पर डीएम कृष्णा करुणेश का कहना है कि इस नाले के बजट और किस कंपनी के पास ठेका है इसकी जानकारी नहीं है. जिला प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार नहीं था. सिंचाई विभाग से पता करके जांच करवाई जाएगी और यदि कोई दोषी पाया जाता है. तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

Intro:सरकारों की कथनी और करनी में कितना अंतर होता है? इसकी बांधी देखनी है तो आपको बलरामपुर जिले में पिछले 40 सालों से चल रहे सरयू नहर परियोजना और राप्ती नहर परियोजना का रुख करना चाहिए। खेतों में पानी पहुंचने की आस में किसानों की आंखें सूख गई। किसान नाउम्मीद हो गए। लेकिन उत्तर प्रदेश की लगभग आधा दर्जन सरकारें और केंद्र की 2 सरकारें किसानों के खेतों तक पानी पहुँचाने में नाकाम साबित रही। इतना ही नहीं, मनमोहन सरकार ने सरयू नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा साल 2012 में ही दे दिया, जिसके बाद सारा दारोमदार केंद्र सरकार के कंधों पर था। फिर भी परियोजना जस की तस लटकी रही। परियोजना तो नहीं पूरी हुई। लेकिन इस काम में भ्रष्टाचार का आलम ये रहा कि नहरों के ऊपर करवाए गए पक्के निर्माण (जैसे ड्रेनेज, पुल, लघु पुल इत्यादि) एक बरसात भी झेलने में नाकाम साबित हुए। इन पक्के कार्यों में इस तरह भ्रष्टाचार किया गया कि निर्माण छह माह भी नहीं टिक सके या यूं कहें छोटे-छोटे पहाड़ी नालों का एक बरसात भी नहीं झेल सकी।


Body:जिले में तकरीबन तीन लाख किसान हैं, जो कृषि विभाग के जरिए रजिस्टर्ड है। इनमें से तकरीबन एक लाख किसानों के पास सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है यानी तकरीबन 33% किसानों के पास असिंचित भूमि है। जिनका सहारा या तो बरसात है या पहाड़ी नाले। इनसे से भी कुछ ऐसे ही कि बरसात और पहाड़ी नाले भी इनकी ज़द में नहीं है। इन्हीं किसानों को बेहतर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए साल 1978 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री के द्वारा प्रदेश के 8 जिलों में तकरीबन 300 किलोमीटर से ज़्यादा लंबी सरयू नहर परियोजना की शुरुआत की गई। साथ ही इस नहर के साथ साथ चलने वाली सहायक नहरों का ख़ाका भी तैयार किया गया। लेकिन परियोजना अभी तक अधर में लटकी है।

इस परियोजना में सबसे बड़ी बात यह है कि निर्माण तो पूरा नहीं हो सका। लेकिन जितना भी निर्माण करवाया गया उस पर भी सिंचाई विभाग क़्वालिटी वर्क कर सकने में नाकामयाब रहा है। नहर में जगह-जगह पेंच हैं। कहीं जमीन न मिलने के कारण पेंच है। तो कहीं निर्माण का घटिया काम रोड़ा बन कर खड़ा है। सरयू की सहायक राप्ती नहर परियोजना के तहत तुलसीपुर क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2018-19 कुल 283 पक्के कार्य व 44 किलोमीटर का कच्चा काम होना तय हुआ था। इसके सापेक्ष केवल 46 पक्के कार्य व 22 किलोमीटर का कच्चा काम ही करवाया जा सका। सिंचाई विभाग के अधिकारी बताते हैं कि वर्तमान समय में छ: स्थानों पर पक्का काम हो रहा है. जबकि कच्चा काम अभी पूरी तरह से बंद है। इस तरह अगर देखे तो 241 पक्के काम व 22 किलोमीटर का कच्चा काम अभी राप्ती नहर प्रखड़ में ही होना बाकी है। वहीं, सरयू नहर परियोजना की प्रगति ठीक ठाक है। इस प्रखड़ में जो भी काम रुका हुआ है। वह केवल जमीन न मिल पाने के कारण रुका हुआ है।


Conclusion:परियोजना में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि तुलसीपुर के सोनपुर के पास सीरिया नाले पर बना एक ड्रेनेज एक बरसात भी नहीं झेल सका। जबकि बलरामपुर जिले में पिछले दो साल में बहुत भीषण बाढ़ भी नही आया है।
स्थानीय संजय मौर्य और माता प्रसाद मौर्य टूटे ड्रेनेज पर खड़े होकर बताते हैं कि नहर पर बनाया गया ड्रेनेज तकरीबन डेढ़ साल पहले पहली ही बरसात में ही टूट गया। आस पास के गांव पूरी तरह से पानी में ड़ूब गए। वह कहते हैं कि इसके निर्माण की क्वालिटी को आप खुद देख सकते हैं। यहां पर ना तो बेहतर सरिया प्रयोग किया गया है और ना ही बेहतर सीमेंट का। रास्ते पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं और सीरिया नाले का पानी रुक जाने के कारण कई गांव बाढ़ की जद में है। फिर भी प्रशासन चेत नहीं रहा।
जब इस मामले पर हमने डीएम कृष्णा करुणेश से बात की तो उन्होंने हमसे कहा कि इस नाले के बजट और किस कंपनी के पास ठेका है। इसकी जानकारी नहीं है। जिला प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार नहीं था। हम सिंचाई विभाग से पता करके आपको जानकारी दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार का मामला आप लोगों के माध्यम से मुझे ज्ञात हुआ है। मैं जांच करवा लूंगा और यदि कोई दोषी पाया जाता है। तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
वहीं, इससे पहले भी ईटीवी ने इस नहर परियोजना पर एक खबर की थी। जिस पर डीएम कृष्णा करुणेश ने कहा था कि तात्कालिक सीडीओ कृतिका ज्योत्सना के अंडर में एक जांच टीम बनाकर बलरामपुर जिले में पड़ने वाले पूरे नहर प्रखंड की जांच करवाई जाएगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन उन्होंने इस पर कोई रुचि ही नहीं दिखाई। दोबारा याद दिलाने पर डीएम कृष्णा करुणेश ने कहा कि एक बार फिर में इस मामले को अपने स्तर से देख लेता हूँ।
हम आपको बताते चले कि राप्ती और सरयू नहर परियोजना पिछले 40 सालों से लटकी हुई है। इसमें कुल 7 प्रखंड है। इसके जरिए जिले भर के तकरीबन 1 लाख किसानों को सिंचित भूमि देने की योजना थी। इस परियोजना की लागत तकरीबन इस वर्ष की तकरीबन 100 करोड़ रुपये से अधिक बताई जा रही है।
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