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स्वच्छ भारत मिशन की आखोंदेखी, शौचालय होते हुए भी लाचार लाभार्थी - toilets

प्रधानमंत्री का सपना जिसमें हर तबके के लोगों के पास अपना शौचालय हो और वे खुले में शौच करने से बचें. इसी क्रम में बलरामपुर जिले में बने शौचालयों की दुर्दशा देखते ही बन रही है. गांव में शौचालय तो बने हैं, लेकिन सिर्फ फाइलों में क्योंकि यहां के लोग अब भी खुले में शौच को मजबूर हैं.

शौचालयों की बदहाल स्थिति
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Published : Mar 15, 2019, 3:32 AM IST

बलरामपुर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना स्वच्छ भारत मिशन. जिसके अंर्तगत देशभर में बसे सभी गांवों, शहरों और वहां पर रहने वाले परिवारों को 12 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान करके शौचालय बनवाए गए. इसके साथ लोगों को खुले में शौच से मुक्त कराने और बिमारियों से निजात दिलाने का काम होना था. बलरामपुर जिले में भी इस बाबत तमाम काम किए गए. जिले को ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त घोषित कर प्रशासन द्वारा दावा किया गया कि जिले में अब कोई खुले में शौच के लिए नहीं जाता, लेकिन हकीकत बेहद बदरंग है और अचरज में डालने वाली थी.

बदहाल शौचालय, खुले में शौच को मजबूर

बलरामपुर जिला नीति आयोग के तहत आने वाले अति पिछड़े जिलों में शामिल है. इसलिए यहां पर केंद्र और राज्य सरकारों की लागू उन तमाम योजनाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है, जो सीधे जनमानस के लाभ से जुड़ी होती हैं. स्वच्छ भारत मिशन, शहरी और ग्रामीण पर भी विशेष ध्यान दिया गया. अधिकारियों का दावा है की स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत 2,43,210 शौचालयों का निर्माण करवाया गया. विभाग दावा कर रहा है कि बेसलाइन सर्वे 2012 के समय छूटे हुए व उसके उपरांत बढ़े हुए 50,145 परिवारों को भी शौचालय की सुविधा सरकारी माध्यमों द्वारा प्रदान की जाएगी. अगर कुल सरकारी आंकड़ों की मान लें तो जिले में पिछले 10-12 सालों में लगभग 5 लाख शौचालयों का निर्माण करवाया जा चुका है.

स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण की रियलिटी को जांचने के लिए हमने जिले के सबसे पिछड़े खंड ब्लॉक्स में शामिल पचपेड़वा के त्रिलोकपुर ग्राम सभा का रुख किया. यहां निर्मल भारत और स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय का निर्माण करवाया गया है. बौद्ध परिपथ से सटे इस गांव में तकरीबन 5000 की आबादी निवास करती है, जिनमें से अधिकतर लोग खेतिहर या मजदूर हैं. गांव के ही कल्लू से बात की तो पता चला कि जिन शौचालयों का निर्माण करवाया गया है, उसमें न तो सही से गड्ढे बने हैं और न ही उनकी सीट बैठने लायक हैं, शौचालयों का निर्माण का स्तर इतना खराब है कि शौचालय कब बैठ जाए या कब गिर जाए इसका कोई पता नहीं है.

जब स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति पर जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश से बात की तो उन्होंने तमाम गणितीय आंकड़ों को गिनाते हुए अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश की, लेकिन इस मिशन के तहत बने घटिया शौचालय व उनकी मौजूदा स्थिति पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इसी तरह ग्राम पंचायत विकास अधिकारी नरेश चंद्र ने भी शौचालय की गुणवत्ता और उसके जांच से जुड़े चीजों पर हमें बयान देने से मना कर दिया.

बलरामपुर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना स्वच्छ भारत मिशन. जिसके अंर्तगत देशभर में बसे सभी गांवों, शहरों और वहां पर रहने वाले परिवारों को 12 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान करके शौचालय बनवाए गए. इसके साथ लोगों को खुले में शौच से मुक्त कराने और बिमारियों से निजात दिलाने का काम होना था. बलरामपुर जिले में भी इस बाबत तमाम काम किए गए. जिले को ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त घोषित कर प्रशासन द्वारा दावा किया गया कि जिले में अब कोई खुले में शौच के लिए नहीं जाता, लेकिन हकीकत बेहद बदरंग है और अचरज में डालने वाली थी.

बदहाल शौचालय, खुले में शौच को मजबूर

बलरामपुर जिला नीति आयोग के तहत आने वाले अति पिछड़े जिलों में शामिल है. इसलिए यहां पर केंद्र और राज्य सरकारों की लागू उन तमाम योजनाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है, जो सीधे जनमानस के लाभ से जुड़ी होती हैं. स्वच्छ भारत मिशन, शहरी और ग्रामीण पर भी विशेष ध्यान दिया गया. अधिकारियों का दावा है की स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत 2,43,210 शौचालयों का निर्माण करवाया गया. विभाग दावा कर रहा है कि बेसलाइन सर्वे 2012 के समय छूटे हुए व उसके उपरांत बढ़े हुए 50,145 परिवारों को भी शौचालय की सुविधा सरकारी माध्यमों द्वारा प्रदान की जाएगी. अगर कुल सरकारी आंकड़ों की मान लें तो जिले में पिछले 10-12 सालों में लगभग 5 लाख शौचालयों का निर्माण करवाया जा चुका है.

स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण की रियलिटी को जांचने के लिए हमने जिले के सबसे पिछड़े खंड ब्लॉक्स में शामिल पचपेड़वा के त्रिलोकपुर ग्राम सभा का रुख किया. यहां निर्मल भारत और स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय का निर्माण करवाया गया है. बौद्ध परिपथ से सटे इस गांव में तकरीबन 5000 की आबादी निवास करती है, जिनमें से अधिकतर लोग खेतिहर या मजदूर हैं. गांव के ही कल्लू से बात की तो पता चला कि जिन शौचालयों का निर्माण करवाया गया है, उसमें न तो सही से गड्ढे बने हैं और न ही उनकी सीट बैठने लायक हैं, शौचालयों का निर्माण का स्तर इतना खराब है कि शौचालय कब बैठ जाए या कब गिर जाए इसका कोई पता नहीं है.

जब स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति पर जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश से बात की तो उन्होंने तमाम गणितीय आंकड़ों को गिनाते हुए अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश की, लेकिन इस मिशन के तहत बने घटिया शौचालय व उनकी मौजूदा स्थिति पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इसी तरह ग्राम पंचायत विकास अधिकारी नरेश चंद्र ने भी शौचालय की गुणवत्ता और उसके जांच से जुड़े चीजों पर हमें बयान देने से मना कर दिया.

Intro:2 अक्टूबर साल 2014 को देश के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सपना देखते हुए स्वच्छ भारत मिशन नाम की इस योजना का लोकार्पण करते हैं। लक्ष्य निर्धारित होता है कि देशभर में बसे सभी गांवों, शहरों और वहां पर रहने वाले परिवारों को ₹12000 की प्रोत्साहन राशि प्रदान करके शौचालय बनवाए जाएंगे। इसके साथ ही करोड़ों का खर्च करके उन लोगों को स्वच्छता और खुले में शौच ना जाने के प्रति जागरूक किया जाएगा। इसके पीछे दिमाग लगाया गया कि अगर लोगों को खुले में शौच से मुक्त कर दिया जाए, तो लोग खुद ब खुद स्वस्थ हो जाएंगे। बलरामपुर जिले में भी इस बाबत तमाम काम किए गए। आखर इस बाजी में बलरामपुर भी अगड़ गया। लेकिन जमीन पर वास्तविकता अचरज में डालती है और चौकांती भी है। 25 नवंबर साल 2018 को नेताओं और भारी भरकम अधिकारियों की फौज के बीच जिले को ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया। प्रशासन द्वारा दावा किया गया कि जिले में अब कोई खुले में शौच के लिए नहीं जाता, लेकिन हकीकत बेहद बदरंग है और अचरज में डालने वाली भी।


Body:देश में स्वच्छता का जिम्मा केवल मोदी सरकार ने ही नहीं उठाया था इस तरह से मिलती-जुलती योजनाएं साल 1984 से चली आ रही है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी स्वच्छ भारत का सपना देखा था। लेकिन वह साकार हो नहीं सका। इसके बाद आए तमाम सरकारों ने भी इसी तरह की मिली-जुली योजनाओं को लांच किया और देश में शौचालय बनवाने की बात की। लेकिन मोदी सरकार ने स्वच्छता को एक मिशन के रूप में स्वीकार किया और लोगों को इसके प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठाया। लेकिन जमीन परिस्थिति साल 1984 जैसी ही बनी हुई है। आज भी जिले के तकरीबन सभी गांवों में सभी परिवारों के पास ना तो गुणवत्तापूर्ण शौचालय और ना ही उन्हें खुले में शौच करने से मुक्ति मिल सकती है।
पूरे देश में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत होने के साथ ही बलरामपुर जिले में भी इसकी शुरुआत की गई थी। बलरामपुर जिला नीति आयोग के तहत आने वाले अति पिछड़े जिलों में शामिल है। इसलिए यहां पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लागू उन तमाम योजनाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है, जो सीधे जनमानस के लाभ से जुड़ी होती है। स्वच्छ भारत मिशन, शहरी और ग्रामीण पर भी विशेष ध्यान दिया गया। अधिकारियों का दावा है के स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत 2,43,210 शौचालयों का निर्माण करवाया गया है। जिलेभर में संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत डीवीटी या ग्राम पंचायतों के माध्यम से 2,43,210 लोगों के घरों में शौचालयों का निर्माण के लिए पैसे दिए गए। अधिकारी दावा कर रहे हैं कि जनपद को ओडीएफ घोषित करने से पहले जिले के ग्रामीण इलाकों में संपूर्ण स्वच्छता अभियान के अंतर्गत 2,45,631 शौचालयों का निर्माण किया गया था। जिनमें संपूर्ण स्वच्छता अभियान के अंतर्गत निर्मित शौचालयों की संख्या 18128 है। निर्मल भारत अभियान 2012 से 2014 तक इस अभियान के अंतर्गत 8483 शौचालयों का निर्माण करवाया गया था। जबकि स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत 2 अक्टूबर साल 2014 से लेकर अब तक 2,16,563 शौचालयों का निर्माण कराया जा चुका है। स्वयं के संसाधन से बनने वाले शौचालयों की संख्या जिले में 4380 है। जबकि पीएमएवाई व मनरेगा से बने शौचालयों की संख्या 36 है। विभाग दावा कर रहा है कि बेसलाइन सर्वे 2012 के समय छूटे हुए उसके उपरांत बड़े हुए 50,145 परिवारों को भी शौचालय की सुविधा सरकारी माध्यमों द्वारा प्रदान की जाएगी। अगर कुल सरकारी आंकड़ों की मान लें तो जिले में पिछले 10-12 सालों में लगभग 5 लाख शौचालयों का निर्माण करवाया जा चुका है।
ग्रामीण स्वच्छता मिशन के वार्ड रूम से मिली जानकारी के अनुसार निर्मित शौचालय में तमाम तरह की खामियों को खोजने के लिए जिलाधिकारी के निर्देशन में ओडीएफ सत्यापन के कार्य हेतु सभी विभागों के संबंधित अधिकारियों को लगाया गया था। समय-समय पर स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के तहत प्राप्त होने वाली शिकायतों के निस्तारण के लिए संबंधित विकास खंडों को नामित किया गया था। संबंधित विकास खंडों के अधिकारी ही वहां पर नोडल अधिकारी होते थे।
अगर 247631 और 50145 शौचालयों की संख्या को जोड़ लिया जाए तो 3,573,312,000 रुपए स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत अब तब शौचालयों के निर्माण में खर्च किए जा चुके हैं। वहीं स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत प्रचार प्रसार के लिए और लोगों में खुले में शौच ना जाने की आदत को डिवेलप करने के लिए इस वित्त वर्ष में कुल 8 करोड रुपए का बजट फंक्शन हुआ था। लेकिन विभाग महज 50 लाख ही खर्च कर सका है।


Conclusion:स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण की रियलिटी को जांचने के लिए हमने जिले के सबसे पिछड़े खंडो ब्लॉक्स में शामिल पचपेड़वा के त्रिलोकपुर ग्राम सभा का रुख किया। यहां पर निर्मल भारत और स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय का निर्माण करवाया गया है। बौद्ध परिपथ से सटे इस गांव में तकरीबन 5000 की आबादी निवास करती है, जिनमें से अधिकतर लोग खेतिहर या मजदूर है।
हमने ग्राम सभा के निवासी कल्लू से बात की कल्लू ने बताया कि जिन शौचालयों का निर्माण करवाया गया है उसमें ना तो सही से गड्ढे बने हैं और ना ही उनकी सीट्स पर बैठने लायक है शौचालयों का निर्माण का स्तर इतना खराब है कि शौचालय कब बैठ जाए या कब गिर जाए इसका कोई पता निशा नहीं है।
वहीं,6 माह के बच्चे की मां आरती देवी कहती हैं कि शौचालयों की स्थिति खराब होने के कारण हम आज भी खुले में शौच करने पर मजबूर है। ठंडी, गर्मी, बरसात सभी मौसम में हमें खुले में शौच के लिए ही जाना होता है। डर भी होता है ।लेकिन मजबूरी में क्या किया जाए? वह कहती है कि स्वच्छ भारत मिशन अपने आप में एक नकामयाब योजना है। इसके तहत आम जनमानस को कोई भी बड़ा फायदा पहुंचता नहीं दिख रहा है।
इसी तरह त्रिलोकपुर के दसियों लोगों से हमने बात की, कमोबेश सभी की राय स्वच्छ भारत मिशन के प्रति यही थी।

लेकिन अधिकारी जो दावा कर रहे हैं उसको भी पढ़ते चलिए। जब हमने स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति पर जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश से बात की तो उन्होंने तमाम गणितीय आंकड़ों को गिनाते हुए अपनी पीठ थपथपा ने की कोशिश की। लेकिन इस मिशन के तहत बने घटिया शौचालय व उनकी मौजूदा स्थिति पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इसी तरह ग्राम पंचायत विकास अधिकारी नरेश चंद्र ने भी शौचालय की गुणवत्ता और उसके जांच से जुड़े चीजों पर हमें बयान देने से मना कर दिया।
ऐसे में देखने वाली बात यह है कि जिन दावों को लेकर अधिकारी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। क्या वह दावे जमीन पर वास्तव में उतर सके हैं? या जिसके जरिए बलरामपुर जिले को बेहतर दिखाने और बताने की कोशिश की जा रही है! वह योजना सुदूर गांवों में बसने वाले आम जनमानस को कितना फायदा पहुंचा पा रही है। इसकी सही तस्वीर और जानकारी ना तो अधिकारियों के पास है और ना ही दिल्ली और लखनऊ में बैठे सत्ता के बड़े बड़े नेताओं के पास।
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