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बलरामपुर: जरवा स्टेशन बंद होने से रोजगार की उम्मीदों पर लगा ताला - कृष्णा करुणेश जिलाधिकारी बलरामपुर

जिले के जरवा इलाके में लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. यहां स्थित रेलवे स्टेशन 2005 से बंद पड़ा है. स्थानीय बताते हैं कि जब से यहां पर रेल यातायात बंद हुआ है, तब से रोजगार के संसाधन पूरी तरह से ठप हो गए हैं. यहां के युवा बाहर जाकर नौकरी करते हैं.

जरवा इलाके के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित.
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Published : Jun 19, 2019, 9:22 PM IST

बलरामपुर: तकरीबन 3500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसे इस जिले में 24 लाख लोगों की आबादी निवास करती है. जिले में जरवा नाम का एक इलाका नेपाल से सटा हुआ है. यहां नेपाल के पहाड़ी इलाके की दूरी महज चार किलोमीटर रह जाती है. यहां पर स्थित जरवा रेलवे स्टेशन से 2005 से पहले तमाम मालगाड़ियां और सवारी गाड़ियां गोरखपुर और गोंडा जाया करती थी. यहां पर पत्थर और बालू खनन का बड़ा कारोबार होता था. जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर-बालू का कारोबार बंद होने के बाद यहां के लोगों की रोजगार की उम्मीदों पर ताला लग चुका है.

जरवा इलाके के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित.

जरवा इलाके के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित

  • बलरामपुर जिले के तुलसीपुर-कोयलाबास सड़क मार्ग पर 'जरवा' नाम का एक बड़ा बाजार पड़ता है.
  • थारू जनजाति और मुस्लिम समुदाय की बहुलता लिए इस इलाके में पहले रौनक हुआ करती थी.
  • जब से जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर का कारोबार बंद हुआ, तब से यहां पर सन्नाटा पसरा रहता है.
  • सैकड़ों एकड़ में फैले इस रेलवे स्टेशन पर अब पेड़ उग चुके हैं.
  • यहां पर अब न तो ट्रेन आती है, न ही किसी तरह का कोई कारोबार होता है.
  • जरवा स्टेशन के संचालन की निशानियां आज भी स्टेशन पर उसी तरह कायम है.
  • साल 2005 से पहले गैंसड़ी से जरवा के लिए बिछी रेल लाइन पर प्रतिदिन एक ट्रेन आया करती थी.
  • कुछ देर यहां पर रुककर दोबारा गोंडा या गोरखपुर के लिए वापस हो जाया करती थी.
  • साल 1995 के बाद सिस्टम की ऐसी नजर इस इलाके पर लगी कि यहां का बालू और पत्थर का कारोबार ठप हो गया.
  • 25 सालों से यहां पर बालू और पत्थर का लाइसेंस निरस्त ही पड़ा है.
  • जिसके बाद लगातार घाटा झेल रहे रेल मंत्रालय ने अंततः इस लूप लाइन को बंद करने का निर्णय लिया.
  • रोजगार खत्म होने के बाद यहां के बाशिंदों के पास मजदूरी के अलावा रोजगार का कोई दूसरा संसाधन नहीं है.

जब से यहां पर रेल यातायात बंद हुआ है. तब से हमें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. रोजगार के संसाधन पूरी तरह से ठप हो गए हैं. यहां के युवा बाहर जाकर नौकरी करते हैं या यहीं पर रहकर रोज दो सौ की दिहाड़ी पर काम करते हैं.

-रज्जाक अहमद, स्थानीय निवासी

रेलवे स्टेशन बंद होने के कारण तमाम तरह की समस्याएं खड़ी हो गई है. जब या रेलवे स्टेशन चल रहा था, तब यहां पर पर्यटन से लेकर पत्थर के कारोबार के कारण बहुत रौनक हुआ करती थी. आवागमन के साथ-साथ यहां पर रोजगार की समस्या सबसे बड़ी है. हम लोग बाहर जाकर छोटे-मोटे काम करके 10-15 हजार की नौकरी तो कर लेते हैं.

-सलमान, नौजवान

पत्थर-बालू खनन व रेल यातायात के कारण जो जरवा के लोगों को समस्या आई है. वह हम लोगों के ध्यान में है. हमने शासन को प्रोजेक्ट भेजा है कि जरवा के आसपास के 1 किलोमीटर के एरिया को माइनिंग फ्री कर दिया जाए. इसके साथ ही वहां पर इको टूरिज्म व अन्य तरह के रोजगार के संसाधन उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जा रहा है.

-कृष्णा करुणेश, जिलाधिकारी, बलरामपुर

बलरामपुर: तकरीबन 3500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसे इस जिले में 24 लाख लोगों की आबादी निवास करती है. जिले में जरवा नाम का एक इलाका नेपाल से सटा हुआ है. यहां नेपाल के पहाड़ी इलाके की दूरी महज चार किलोमीटर रह जाती है. यहां पर स्थित जरवा रेलवे स्टेशन से 2005 से पहले तमाम मालगाड़ियां और सवारी गाड़ियां गोरखपुर और गोंडा जाया करती थी. यहां पर पत्थर और बालू खनन का बड़ा कारोबार होता था. जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर-बालू का कारोबार बंद होने के बाद यहां के लोगों की रोजगार की उम्मीदों पर ताला लग चुका है.

जरवा इलाके के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित.

जरवा इलाके के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित

  • बलरामपुर जिले के तुलसीपुर-कोयलाबास सड़क मार्ग पर 'जरवा' नाम का एक बड़ा बाजार पड़ता है.
  • थारू जनजाति और मुस्लिम समुदाय की बहुलता लिए इस इलाके में पहले रौनक हुआ करती थी.
  • जब से जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर का कारोबार बंद हुआ, तब से यहां पर सन्नाटा पसरा रहता है.
  • सैकड़ों एकड़ में फैले इस रेलवे स्टेशन पर अब पेड़ उग चुके हैं.
  • यहां पर अब न तो ट्रेन आती है, न ही किसी तरह का कोई कारोबार होता है.
  • जरवा स्टेशन के संचालन की निशानियां आज भी स्टेशन पर उसी तरह कायम है.
  • साल 2005 से पहले गैंसड़ी से जरवा के लिए बिछी रेल लाइन पर प्रतिदिन एक ट्रेन आया करती थी.
  • कुछ देर यहां पर रुककर दोबारा गोंडा या गोरखपुर के लिए वापस हो जाया करती थी.
  • साल 1995 के बाद सिस्टम की ऐसी नजर इस इलाके पर लगी कि यहां का बालू और पत्थर का कारोबार ठप हो गया.
  • 25 सालों से यहां पर बालू और पत्थर का लाइसेंस निरस्त ही पड़ा है.
  • जिसके बाद लगातार घाटा झेल रहे रेल मंत्रालय ने अंततः इस लूप लाइन को बंद करने का निर्णय लिया.
  • रोजगार खत्म होने के बाद यहां के बाशिंदों के पास मजदूरी के अलावा रोजगार का कोई दूसरा संसाधन नहीं है.

जब से यहां पर रेल यातायात बंद हुआ है. तब से हमें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. रोजगार के संसाधन पूरी तरह से ठप हो गए हैं. यहां के युवा बाहर जाकर नौकरी करते हैं या यहीं पर रहकर रोज दो सौ की दिहाड़ी पर काम करते हैं.

-रज्जाक अहमद, स्थानीय निवासी

रेलवे स्टेशन बंद होने के कारण तमाम तरह की समस्याएं खड़ी हो गई है. जब या रेलवे स्टेशन चल रहा था, तब यहां पर पर्यटन से लेकर पत्थर के कारोबार के कारण बहुत रौनक हुआ करती थी. आवागमन के साथ-साथ यहां पर रोजगार की समस्या सबसे बड़ी है. हम लोग बाहर जाकर छोटे-मोटे काम करके 10-15 हजार की नौकरी तो कर लेते हैं.

-सलमान, नौजवान

पत्थर-बालू खनन व रेल यातायात के कारण जो जरवा के लोगों को समस्या आई है. वह हम लोगों के ध्यान में है. हमने शासन को प्रोजेक्ट भेजा है कि जरवा के आसपास के 1 किलोमीटर के एरिया को माइनिंग फ्री कर दिया जाए. इसके साथ ही वहां पर इको टूरिज्म व अन्य तरह के रोजगार के संसाधन उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जा रहा है.

-कृष्णा करुणेश, जिलाधिकारी, बलरामपुर

Intro:(नोट :- डीआई सुधीर सर के आदेशानुसार इस खबर में अडिशनल वीडियो फ़ाइल जोड़कर पैकेज के लिए दोबारा भेजा जा रहा है। डेस्क के सहयोगी कृपया संज्ञान लें।) बलरामपुर जिला अति महत्वाकांक्षी जिले में शामिल है। यहां पर विकास के उन तमाम संभावनाओं को तलाश कर उन पर काम किया जा रहा है, जिसके जरिए आम जनमानस की जिंदगी सहज और सुलभ बनाई जा सके। तकरीबन साढे 3500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसे इस जिले में 24 लाख लोगों की आबादी निवास करती है। अगर नेपाल की तलहटी में बसे जिले के दुर्गम इलाकों की बात की जाए तो यहां पर जिले की 30% आबादी निवास करती है। इसी तरह का एक इलाका नेपाल से सटा हुआ है। जिसका नाम जरवा है। यहां नेपाल के पहाड़ी इलाके की दूरी महज 4 किलोमीटर रह जाती है। यहां पर स्थित जरवा रेलवे स्टेशन से 2005 से पहले तमाम माल गाड़ियां और सवारी गाड़ियां लूट लाइन के जरिए गोरखपुर और गोंडा जाया करती थी। यहां पर पत्थर और बालू खनन का बड़ा कारोबार होता था। जिसके जरिए, इलाकाई लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया होता था। लेकिन जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर-बालू का कारोबार बंद होने के बाद यहां पर लोगों की रोजगार की उम्मीदों पर ताला लग चुका है।


Body:बलरामपुर जिले के तुलसीपुर-कोयलाबास सड़क मार्ग पर 'जरवा' नाम का एक बड़ा बाजार पड़ता है। थारू जनजाति और मुस्लिम समुदाय की बहुलता लिए इस इलाके में पहले रौनक हुआ करती थी। लेकिन जब से जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर का कारोबार बंद हुआ, तब से यहां पर सन्नाटा पसरा रहता है। सैकड़ों एकड़ में फैले इस रेलवे स्टेशन पर अब जंगल उग चुके हैं। यहां पर अब ना तो ट्रेन आती है, ना ही किसी तरह का कोई कारोबार होता है। लेकिन जरवा स्टेशन के संचालन की निशानियां आज भी स्टेशन पर उसी तरह कायम है। यहां पर बिछी हुई रेल लाइन और टूटी हुई कुर्सियां यह बताती हैं कि यह रेलवे स्टेशन कभी गुलजार रहा करता होगा। ट्रेन की सवारी न करने की टीस क्षेत्रवासियों में घर चुकी है। वही, यहां के युवाओं में रोजगार के लिए तरसने की परेशानी भी। साल 2005 से पहले गैंसड़ी से जरवा के लिए बिछी रेल लाइन पर प्रतिदिन एक ट्रेन आया करती थी कुछ देर यहां पर रुककर दोबारा गोंडा या गोरखपुर के लिए वापस हो जाया करती थी। सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग के जंगलों के बीच स्थित इस स्टेशन पर आने वाले यात्री न केवल प्रकृति का आनंद लेते थे। बल्कि यहां के आसपास में स्थित नालों पर वह नहाने के लिए भी जाया करते थे। लेकिन साल 1995 के बाद सिस्टम की ऐसी नजर इस इलाके पर लगी कि यहां का बालू और पत्थर का कारोबार ठप हो गया। 25 सालों से यहां पर बालू और पत्थर का लाइसेंस निरस्त ही पड़ा है। जिसके बाद लगातार घाटा झेल रहे रेल मंत्रालय ने अंततः इस लूप लाइन को बंद करने का निर्णय लिया। साल 2005 में यहां पर जून माह में ही आखरी ट्रेन चली। तब से लेकर अब तक यहां के लोग अब उन तमाम मूलभूत सुविधाओं के लिए न केवल तरस रहे हैं। बल्कि लोग अपने नसीब को भी कोसते नज़र आ जाते हैं। रोज़गार खत्म होने के बाद यहां के बाशिंदों के पास मजदूरी के अलावा रोज़गार का कोई दूसरा संसाधन नहीं है।


Conclusion:इस मामले पर बात करते हुए यहां के स्थानीय निवासी रज्जाक अहमद ने हमें बताया कि जब से यहां पर रेल यातायात बंद हुआ है। तब से हमें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रोजगार के संसाधन पूरी तरह से ठप हो गए हैं। यहां के युवा बाहर जाकर नौकरी करते हैं या यहीं पर रहकर रोज ₹200 की दिहाड़ी पर काम करते हैं। नौजवान सलमान ने हमसे बात करते हुए कहा कि रेलवे स्टेशन बंद होने के कारण तमाम तरह की समस्याएं खड़ी हो गई है। जब या रेलवे स्टेशन चल रहा था, तब यहां पर पर्यटन से लेकर पत्थर के कारोबार के कारण बहुत रौनक हुआ करती थी। आवागमन के साथ-साथ यहां पर रोजगार की समस्या सबसे बड़ी है। हम लोग बाहर जाकर छोटे-मोटे काम करके 10-15 हजार की नौकरी तो कर लेते हैं। लेकिन उनसे ना हम अपने परिवार का पेट भर पाते हैं। ना ही अपने बच्चों को समुचित शिक्षा उपलब्ध करवा पाते हैं। वही, तकरीबन 70 साल के बुजुर्ग मोहम्मद राशिद ने हमसे कहा कि गैसड़ी से जरवा के बीच चलने वाली इस रेल लाइन के बंद होने के बाद से इस क्षेत्र के लोगों को आवागमन में बहुत परेशानियां होती हैं। यहां के लोग जिला मुख्यालय से लगभग पूरी तरह से कटे हुए नजर आते हैं। इस मामले पर ईटीवी से बात करते हुए जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश ने कहा कि पत्थर-बालू खनन व रेल यातायात के कारण जो जरवा के लोगों को समस्या आई है. वह हम लोगों के ध्यान में है. हमने शासन को प्रोजेक्ट भेजा है कि जरवा के आसपास के 1 किलोमीटर के सेंचुरी एरिया को माइनिंग फ्री कर दिया जाए। इसके साथ ही वहां पर इको टूरिज्म व अन्य तरह के रोज़गार के संसाधन उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जा रहा है।

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