बलरामपुरः आजकल रोजगार के लिए गांव से बड़े शहरों की ओर रुख करना आम बात हो गई है. हजारों-लाखों लोग रोज पलायन करते हैं. वहीं, क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने के लिए सरकार भी लोकल के लिए वोकल अभियान चला रही है. ऐसे में बलरामपुर जिले का एक गांव आदर्श साबित हो रहा है. बिना लोकल-वोकल मिशन से जुड़े भी क्षेत्र में पलायन को रोका है. सिर्फ एक कारोबार से करीब 10 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया गया है.
बना रहे पतंग की तीली
आमतौर पर लोग पतंग की तीली बनाना छोटा काम समझते हैं पर ऐसा नहीं है. यह कितना बड़ा कारोबार है यह बलरामपुर के कुछ गांवों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. जनपद में विकासखंड तुलसीपुर के ग्राम गैढ़हवा में बन रही बांस की तीली के कारोबार से आधा दर्जन से अधिक ग्राम के तकरीबन 10 हजार ग्रामीण काम कर रहे हैं. सभी इस कारोबार से जुड़ आत्मनिर्भर बने हुए हैं. ग्राम गैड़हवा स्वरोजगार व अपने आत्मनिर्भता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है.
भेजी जाती है गुजरात
तुलसीपुर विकासखंड के ग्राम गैढ़हवा में बांस लाकर कटाई, छिलाई कर पतंग की तीली बनाई जाती है. पतंग की तीली बनाने का कार्य ग्राम गैढ़हवा से सुखरामपुर तेलियनडीह, मध्य नगरी, विलोहा ,बनकसिया सहित अन्य आस-पास के गांव में फैला है. इन ग्रामों के आधे से अधिक परिवार बांस के तीली के कार्य कर रहे हैं. इनकी संख्या तकरीबन दस हजार से अधिक है. ग्रामीण बांस मंगा रहे कारोबारियों के यहां से बांस घरों में ले जाकर परिवार सहित तीली बनाते हैं. यही तीली कारोबारियों के यहां से एकत्र होकर पतंग बनने के लिए गुजरात सहित अन्य प्रदेशों में जाता है. यह क्षेत्र पतंग की तीली बनाने के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है.
असम से आता है कच्चा माल
व्यापारी ओमप्रकाश ने बताया कि कच्चा माल बांस असम से मंगाया जाता है. इसके अलावा आसपास के जनपदों से भी आता है.
पतंग के लिए देश के कोने-कोने में यहां से जाती है तीली
बांस का काम कर रहे गैड़हवा निवासी राम समुझ ने बताया कि पहले सिर्फ चार लोगों से यहां बांस के तीली का कार्य शुरू हुआ था. धीरे धीरे पूरे ग्राम सहित आसपास के दर्जनों ग्राम में यह कारोबार फैल गया. अब अकेले गैड़हवा में दो दर्जन से अधिक यही के थोक कारोबारी है, जो कच्चा माल मंगाते हैं. लोग बांस ले जाकर उसका तीली बनाकर वापस बेच जाते हैं. यहां से एकत्र होकर गुजरात, राजस्थान, हरियाणा सहित देश के कोने-कोने में पतंग बनाने के लिए तीली यहां से जाती है.
दस हजार से अधिक परिवार हैं आत्मनिर्भर
तीली बनाने का कार्य कर रहे ओमप्रकाश, जयनरायन,सोमपाल, बृजेश, धर्मेंद्र ने बताया कि इस क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति मजदूरी करने या काम की तलाश में बाहर नहीं जाता. यहां के लोग परिवार सहित अपना काम करते हुए घरों पर ही तीली बनाने का काम करते हैं.
सरकारी सहयोग
लोगों का कहना है कि दशकों से चल रहे इस बांस के तीली बनाने के कार्य को यदि सरकारी सहयोग मिल जाय तो इस कार्य को और बढ़ावा मिल सकता है. वहीं, एसडीएम विनोद सिंह ने बताया कि इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी.