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राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी संत की कहानी, जानिए निशेंद्र मोहन की जुबानी - अयोध्या में राममंदिर का निर्माण

अयोध्या में पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम होना है. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या आ रहे हैं. बता दें, राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी भारत के प्रमुख संतों में शामिल परमहंस रामचंद्र दास की दो शिलाएं आज भी अयोध्या की डबल लॉक में रखी हुई हैं.

राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी संत की कहानी
राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी संत परमहंस रामचंद्र दास की कहानी.
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Published : Aug 3, 2020, 12:04 PM IST

अयोध्या: राम मंदिर निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले परमहंस रामचंद्र दास को 'प्रतिवाद भयंकर' के नाम से भी जाना जाता था. अपने तथ्य को सिद्ध करने के लिए जिस बेबाकी से वह अपना पक्ष रखते थे, उसके आगे हर कोई नतमस्तक हो जाता था. परमहंस रामचंद्र दास के प्रवक्ता रहे निशेंद्र मोहन मिश्र ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी भारत के प्रमुख संतों में शामिल परमहंस रामचंद्र दास की दो शिलाएं आज भी अयोध्या की डबल लॉक में रखी हुई हैं. राम मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ रखी इन शिलाओं के प्रयोग का समय अब नजदीक है.

राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी संत परमहंस रामचंद्र दास की कहानी.
22 दिसंबर 1949 को अयोध्या में कुछ ऐसा हुआ कि सुबह तक दिल्ली में भी हड़कंप मच गया. इस रात्रि को राम जन्मभूमि परिसर में स्थित राम चबूतरे से भगवान राम की मूर्ति उठाकर तत्कालीन विवादित ढांचे में रख दी गई थी. खबर फैली की वहां प्रभु श्रीराम प्रकट हो गए हैं. इसके बाद अयोध्या में जो बेहद चर्चित नाम सामने आया, वह परमहंस रामचंद्र दास का था. इसके बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भगवान राम के मंदिर बनाने की मांग तेज पकड़ने लगी. इसके लिए राम मंदिर आंदोलन चलाया गया. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या विवाद पर निर्णय आने के बाद राम मंदिर के लिए संघर्ष समाप्त हुआ. यह कोई 2 या 4 साल का नहीं था. राम मंदिर के लिए 492 वर्षों तक संघर्ष चला.

22 नवंबर 1949 की रात को अचानक बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति प्रकट होना टर्निंग प्वाइंट बन गया. यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैली. राम जन्मभूमि पर मंदिर के लिए आंदोलन को नई धार मिली. राम जन्मभूमि पर स्थापित भगवान राम और अन्य मूर्तियों को हटाने की बात हुई, जिसपर अयोध्या के प्रमुख संत परमहंस राम चंद्र दास 26 जनवरी 1950 को सिविल कोर्ट गए, जहां उन्होंने अदालत में हिंदू पक्ष की ओर से मुकदमा दायर किया.

1989 में रामलला विराजमान बने पक्ष


1950 में सिविल कोर्ट के आदेश के बाद बाबरी मस्जिद के अंदर रखी मूर्तियों की पूजा होती रही. वर्ष 1989 में रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल ने भगवान राम की मूर्ति को न्यायिक व्यक्ति माना और नया मुकदमा दायर किया. इसके बाद परमहंस रामचंद्र दास ने अपना केस वापस ले लिया. इसके बाद रामलला विराजमान अपने जन्म स्थान के लिए लड़ते रहे.

कोषागार में रखी हैं परमहंस रामचंद्र दास की दो शिलाएं


ईटीवी भारत के साथ बातचीत के दौरान परमहंस रामचंद्र दास के प्रवक्ता रहे निशेंद्र मोहन मिश्र ने बताया कि असमर्थता की स्थिति में महाराज ने शासन के समक्ष अपनी बात रखी. उन्होंने राम मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ दो शिलाएं अयोध्या कोषागार में जमा कराईं. निशेंद्र मोहन ने कहा कि अब समय भी है और संकल्प भी पूरा हुआ है. ऐसे में इन राम शिलाओं को राम मंदिर निर्माण में प्रयोग करना चाहिए.

स्वभाव में फक्कड़पन, 'प्रतिवाद भयंकर' के नाम से मशहूर


राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी परमहंस रामचंद्र दास बेहद प्रेमी स्वभाव के थे. वह बंदरों को काजू-बादाम खिलाते थे. जीव-जंतुओं से उन्हें बेहद लगाव था. वहीं उनके स्वभाव में फक्कड़पन झलकता था. वह कभी हिम्मत न हारने वाले व्यक्ति थे. अपने जीवन के अंतिम काल में उन्होंने तीन इच्छाएं व्यक्त कीं. पहला राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर. उनकी दूसरी इच्छा गो-हत्या बंद करना और तीसरा भारत को अखंड राष्ट्र बनाने की थी. रामचंद्र दास परमहंस हमेशा से कहते थे कि मैं तो मोक्ष नहीं, राम मंदिर की कामना करता हूं.

दिगंबर अखाड़ा आते रहे हैं योगी आदित्यनाथ

उन्होंने बताया कि परमहंस रामचंद्र दास से मुख्यमंत्री योगी का लगाव रहा है. वे जब भी अयोध्या आते हैं तो दिगंबर अखाड़ा जरूर आते हैं. इस बार राम मंदिर निर्माण को लेकर लगातार दौरे के चलते वह महाराज जी की 17वीं पुण्यतिथि पर दिगम्बर अखाड़ा नहीं पहुंच सके. दिगंबर अखाड़े के महंत रहे परमहंस रामचंद्र दास का 31 जुलाई 2003 को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. सरयू नदी के तट पर उनकी समाधि स्थापित की गई है.

अयोध्या: राम मंदिर निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले परमहंस रामचंद्र दास को 'प्रतिवाद भयंकर' के नाम से भी जाना जाता था. अपने तथ्य को सिद्ध करने के लिए जिस बेबाकी से वह अपना पक्ष रखते थे, उसके आगे हर कोई नतमस्तक हो जाता था. परमहंस रामचंद्र दास के प्रवक्ता रहे निशेंद्र मोहन मिश्र ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी भारत के प्रमुख संतों में शामिल परमहंस रामचंद्र दास की दो शिलाएं आज भी अयोध्या की डबल लॉक में रखी हुई हैं. राम मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ रखी इन शिलाओं के प्रयोग का समय अब नजदीक है.

राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी संत परमहंस रामचंद्र दास की कहानी.
22 दिसंबर 1949 को अयोध्या में कुछ ऐसा हुआ कि सुबह तक दिल्ली में भी हड़कंप मच गया. इस रात्रि को राम जन्मभूमि परिसर में स्थित राम चबूतरे से भगवान राम की मूर्ति उठाकर तत्कालीन विवादित ढांचे में रख दी गई थी. खबर फैली की वहां प्रभु श्रीराम प्रकट हो गए हैं. इसके बाद अयोध्या में जो बेहद चर्चित नाम सामने आया, वह परमहंस रामचंद्र दास का था. इसके बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भगवान राम के मंदिर बनाने की मांग तेज पकड़ने लगी. इसके लिए राम मंदिर आंदोलन चलाया गया. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या विवाद पर निर्णय आने के बाद राम मंदिर के लिए संघर्ष समाप्त हुआ. यह कोई 2 या 4 साल का नहीं था. राम मंदिर के लिए 492 वर्षों तक संघर्ष चला.

22 नवंबर 1949 की रात को अचानक बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति प्रकट होना टर्निंग प्वाइंट बन गया. यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैली. राम जन्मभूमि पर मंदिर के लिए आंदोलन को नई धार मिली. राम जन्मभूमि पर स्थापित भगवान राम और अन्य मूर्तियों को हटाने की बात हुई, जिसपर अयोध्या के प्रमुख संत परमहंस राम चंद्र दास 26 जनवरी 1950 को सिविल कोर्ट गए, जहां उन्होंने अदालत में हिंदू पक्ष की ओर से मुकदमा दायर किया.

1989 में रामलला विराजमान बने पक्ष


1950 में सिविल कोर्ट के आदेश के बाद बाबरी मस्जिद के अंदर रखी मूर्तियों की पूजा होती रही. वर्ष 1989 में रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल ने भगवान राम की मूर्ति को न्यायिक व्यक्ति माना और नया मुकदमा दायर किया. इसके बाद परमहंस रामचंद्र दास ने अपना केस वापस ले लिया. इसके बाद रामलला विराजमान अपने जन्म स्थान के लिए लड़ते रहे.

कोषागार में रखी हैं परमहंस रामचंद्र दास की दो शिलाएं


ईटीवी भारत के साथ बातचीत के दौरान परमहंस रामचंद्र दास के प्रवक्ता रहे निशेंद्र मोहन मिश्र ने बताया कि असमर्थता की स्थिति में महाराज ने शासन के समक्ष अपनी बात रखी. उन्होंने राम मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ दो शिलाएं अयोध्या कोषागार में जमा कराईं. निशेंद्र मोहन ने कहा कि अब समय भी है और संकल्प भी पूरा हुआ है. ऐसे में इन राम शिलाओं को राम मंदिर निर्माण में प्रयोग करना चाहिए.

स्वभाव में फक्कड़पन, 'प्रतिवाद भयंकर' के नाम से मशहूर


राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी परमहंस रामचंद्र दास बेहद प्रेमी स्वभाव के थे. वह बंदरों को काजू-बादाम खिलाते थे. जीव-जंतुओं से उन्हें बेहद लगाव था. वहीं उनके स्वभाव में फक्कड़पन झलकता था. वह कभी हिम्मत न हारने वाले व्यक्ति थे. अपने जीवन के अंतिम काल में उन्होंने तीन इच्छाएं व्यक्त कीं. पहला राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर. उनकी दूसरी इच्छा गो-हत्या बंद करना और तीसरा भारत को अखंड राष्ट्र बनाने की थी. रामचंद्र दास परमहंस हमेशा से कहते थे कि मैं तो मोक्ष नहीं, राम मंदिर की कामना करता हूं.

दिगंबर अखाड़ा आते रहे हैं योगी आदित्यनाथ

उन्होंने बताया कि परमहंस रामचंद्र दास से मुख्यमंत्री योगी का लगाव रहा है. वे जब भी अयोध्या आते हैं तो दिगंबर अखाड़ा जरूर आते हैं. इस बार राम मंदिर निर्माण को लेकर लगातार दौरे के चलते वह महाराज जी की 17वीं पुण्यतिथि पर दिगम्बर अखाड़ा नहीं पहुंच सके. दिगंबर अखाड़े के महंत रहे परमहंस रामचंद्र दास का 31 जुलाई 2003 को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. सरयू नदी के तट पर उनकी समाधि स्थापित की गई है.

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