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UP Election 2022: जानिए अमेठी की तिलोई विधानसभा सीट पर इस बार क्या होगा चुनावी समीकरण?

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर राजनीतिक दलों ने हर जिले में बिसात बिछानी शुरू कर दी है. आइये जानते हैं अमेठी जिले की तिलोई विधानसभा में चुनावी समीकरण क्या रहेगा?

अमेठी विधानसभा.
अमेठी विधानसभा.
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Published : Nov 23, 2021, 9:33 AM IST

अमेठी: विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है. सभी पार्टियां किसी न किसी बहाने आम लोगों के पास अपनी नीतियों के साथ पहुंचना शुरू कर दिया है.

अगर बात करें अमेठी जिले की तो तिलोई विधानसभा सीट काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. तिलोई विधान सभा सीट पर तिलोई स्टेट का दखल शुरू से ही रहा है. वैसे यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन बदलते राजनीतिक परिवेश ने यहां भी कमल खिला दिया. इस समय तिलोई राजा मयंकेश्वर शरण सिंह यहां बीजेपी से विधायक हैं. वहीं, इस बार देखना दिलचस्प होगा कि मयंकेश्वर शरण यहां जीत की कहानी लिख पाएंगे या जनता किसी और को सत्ता की कुर्सी बैठा देगी.

दरअसल, तिलोई विधानसभा सीट पहले रायबरेली जिले की सीट हुआ करती थी. जब अमेठी जिला गठित हुआ तो तिलोई अमेठी जिले का हिस्सा बन गया. तिलोई विधान सभा सीट से 1967 में कांग्रेस से वसीम नकवी विधायक निर्वाचित हुए थे. उसके बाद से ही तिलोई स्टेट राजनीति में आ गया. राजा मोहन सिंह 1969 में जनसंघ से चुनाव लड़ कर अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की.

उसके बाद 1974 में हुए चुनाव में राजा मोहन सिंह कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए. पुनः 1977 के चुनाव में भी मोहन सिंह ने जीत दर्ज की थी. वहीं, 1980 से 1991 तक हाजी वसीम लागतार 4 बार कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए. समय के बदलाव के साथ पुनः तिलोई स्टेट के राजा मयंकेश्वर शरण सिंह बीजेपी से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत किए. 1993 में हुए चुनाव में मयंकेश्वर शरण सिंह पहली बार बीजेपी से विधायक निर्वाचित हुए. 1996 में कांग्रेस के मोहम्मद मुस्लिम ने समाजवादी पार्टी से चुनाव जीता. वहीं, 2002 में पुनः जनता ने मयंकेश्वर शरण सिंह को अपना आशीर्वाद दिया. फिलहाल 2017 के चुनाव में मयंकेश्वर शरण सिंह ने बीजेपी छोड़ कर साइकिल की सवारी कर ली और पुन: चुनाव जीत गए.

मेडिकल कालेज बन सकता है जीत के लिए संजीवन

अपने कार्यकाल में मयंकेश्वर शरण सिंह ने सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में 200 बेड का अस्पताल बनवाया और तिलोई में ट्रामा सेंटर स्थापित कराया. जिसको लेकर तिलोई स्वास्थ्य के क्षेत्र में मजबूत हुआ. दरअसल, लोगों को स्वास्थ्य सेवा लेने के लिये दूर जाना पड़ता था. अगर कोई बीमार पड़ जाय तो तिलोई के लोगों को पड़ोसी जनपदों में की शरण लेनी पड़ती थी. कभी-कभी मरीज की इलाज के आभाव मौत भी हो जाती थी जिससे लोगो को अब मुक्ति मिली है.

दल बदलने में माहिर है मयंकेश्वर

अपने पूर्वजों की तरह मयंकेश्वर भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. समय की नजाकत को देखते हुए दल बदलने में कोई परहेज नहीं करते हैं. तिलोई स्टेट का जब से राजनीति में पदार्पण हुआ है तभी से दल बदल प्रक्रिया का श्री गणेश हो गया. राजा मोहन सिंह 1969 में जनसंघ से चुनाव लड़ कर विधायक हुए थे. दूसरी बार वे 1974 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीते थे. 1993 में बीजेपी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले वाले मयंकेश्वर शरण 2002 तक बीजेपी में रहे. वहीं, 2007 में उन्होंने सपा ज्वाइन कर चुनाव जीता था. 2017 में उन्होंने वापस बीजेपी का दामन थाम मोदी लहर में विधायक बन गए.

बसपा का नहीं खुला खाता
जब से तिलोई विधान सभा का गठन हुआ है. बसपा लगातार जोर आजमाइश करती चली आ रही है. अब तक एक भी बार बसपा का विधायक निर्वाचित नहीं हुआ. इस समय तो हालात और बदतर हो गए है. नेता उम्मीदवार समर्थक न के बराबर रह गए हैं. वहीं, पुराने नेता साइकिल की सवारी कर चुके हैं. बसपा से इस समय के के आर्या ही टिकट के लिए आगे आए हैं.

फिलहाल कांग्रेस पार्टी की बात करें तो यहां संगठन के मुखिया की भी उम्मीदवारी मानी जा रही है. वहीं एक स्थानीय नेत्री सुनीता सिंह भी काफी सक्रिय राजनीति कर रही हैं. इनके अतरिक्त मो नईम की चर्चा भी जोर शोर से चल रही है.

समाजवादी पार्टी में उम्मीदवारों को लेकर लंबी फेहरिस्त है. यहां नए पुराने छोटे-बड़े नेताओं को मिला लिया जाए तो दर्जनभर से अधिक उम्मीदवार हैं. बसपा छोड़कर कर सायकिल की सवारी करने वाले मो सऊद, अमरनाथ, रोहित अवस्थी, जैनुल सहित अन्य लोग टिकट के लाइन में है.

मुस्लिम मतदाता है निर्णायक

इस विधान सभा में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है. एक साथ जिस तरफ घूम जाए लगभग जीत उसी की पक्की मानी जाती है. पूरी विधान सभा में 1 लाख 40 हजार के आस पास मुस्लिम मतदाता है. इस तरह यहां मुस्लिम मतदाताओं को निर्णायक माना जाता है.

तिलोई विधानसभा की कुल अनुमानित जनसंख्या वर्ष 2021 तक

तिलोई विधान सभा की कुल जनसंख्या- 5,84,500

पुरुष- 2,99,551
महिला- 2,84,949

अनुमानित जातिगत मतदाता

ब्राह्मण 48 हजार के आसपास
क्षत्रिय 40 हजार के आसपास
मुस्लिम 1 लाख 41 हजार के आसपास
अनुसूचित जाति 1 लाख के आसपास (पासी 67 हजार, हरिजन 29 हजार)
ओबीसी 80 हजार (यादव 27 हजार लोधी 28 हजार)

अब तक कितने लोग बने विधायक

1967 में वसीम नकवी कांग्रेस से विधायक बने.
1969 में मोहन सिंह भारतीय जनसंघ से विधायक हुए.
1974 में मोहन सिंह कांग्रेस से विधायक बने.
1977 में मोहन सिंह कांग्रेस से विधायक बने.
1980,85,89,और 1991 में हाजी मोहम्मद वसीम कांग्रेस से विधायक बने.
1993 में मयंकेश्वर शरण सिंह भाजपा से विधायक बने.
1996 में मोहम्मद मुस्लिम सपा से विधायक बने.
2002 में मयंकेश्वर शरण सिंह भाजपा से विधायक बने.
2007 में मयंकेश्वर शरण सिंह सपा से विधायक बने.
2012 में डॉ मुस्लिम कांग्रेस से विधायक बने.
2017 में मयंकेश्वर शरण सिंह बीजेपी से विधायक बने और अभी तक हैं.

इसे भी पढे़ं- UP Election 2022: अमेठी विधानसभा का जानिए चुनावी समीकरण

अमेठी: विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है. सभी पार्टियां किसी न किसी बहाने आम लोगों के पास अपनी नीतियों के साथ पहुंचना शुरू कर दिया है.

अगर बात करें अमेठी जिले की तो तिलोई विधानसभा सीट काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. तिलोई विधान सभा सीट पर तिलोई स्टेट का दखल शुरू से ही रहा है. वैसे यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन बदलते राजनीतिक परिवेश ने यहां भी कमल खिला दिया. इस समय तिलोई राजा मयंकेश्वर शरण सिंह यहां बीजेपी से विधायक हैं. वहीं, इस बार देखना दिलचस्प होगा कि मयंकेश्वर शरण यहां जीत की कहानी लिख पाएंगे या जनता किसी और को सत्ता की कुर्सी बैठा देगी.

दरअसल, तिलोई विधानसभा सीट पहले रायबरेली जिले की सीट हुआ करती थी. जब अमेठी जिला गठित हुआ तो तिलोई अमेठी जिले का हिस्सा बन गया. तिलोई विधान सभा सीट से 1967 में कांग्रेस से वसीम नकवी विधायक निर्वाचित हुए थे. उसके बाद से ही तिलोई स्टेट राजनीति में आ गया. राजा मोहन सिंह 1969 में जनसंघ से चुनाव लड़ कर अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की.

उसके बाद 1974 में हुए चुनाव में राजा मोहन सिंह कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए. पुनः 1977 के चुनाव में भी मोहन सिंह ने जीत दर्ज की थी. वहीं, 1980 से 1991 तक हाजी वसीम लागतार 4 बार कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए. समय के बदलाव के साथ पुनः तिलोई स्टेट के राजा मयंकेश्वर शरण सिंह बीजेपी से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत किए. 1993 में हुए चुनाव में मयंकेश्वर शरण सिंह पहली बार बीजेपी से विधायक निर्वाचित हुए. 1996 में कांग्रेस के मोहम्मद मुस्लिम ने समाजवादी पार्टी से चुनाव जीता. वहीं, 2002 में पुनः जनता ने मयंकेश्वर शरण सिंह को अपना आशीर्वाद दिया. फिलहाल 2017 के चुनाव में मयंकेश्वर शरण सिंह ने बीजेपी छोड़ कर साइकिल की सवारी कर ली और पुन: चुनाव जीत गए.

मेडिकल कालेज बन सकता है जीत के लिए संजीवन

अपने कार्यकाल में मयंकेश्वर शरण सिंह ने सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में 200 बेड का अस्पताल बनवाया और तिलोई में ट्रामा सेंटर स्थापित कराया. जिसको लेकर तिलोई स्वास्थ्य के क्षेत्र में मजबूत हुआ. दरअसल, लोगों को स्वास्थ्य सेवा लेने के लिये दूर जाना पड़ता था. अगर कोई बीमार पड़ जाय तो तिलोई के लोगों को पड़ोसी जनपदों में की शरण लेनी पड़ती थी. कभी-कभी मरीज की इलाज के आभाव मौत भी हो जाती थी जिससे लोगो को अब मुक्ति मिली है.

दल बदलने में माहिर है मयंकेश्वर

अपने पूर्वजों की तरह मयंकेश्वर भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. समय की नजाकत को देखते हुए दल बदलने में कोई परहेज नहीं करते हैं. तिलोई स्टेट का जब से राजनीति में पदार्पण हुआ है तभी से दल बदल प्रक्रिया का श्री गणेश हो गया. राजा मोहन सिंह 1969 में जनसंघ से चुनाव लड़ कर विधायक हुए थे. दूसरी बार वे 1974 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीते थे. 1993 में बीजेपी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले वाले मयंकेश्वर शरण 2002 तक बीजेपी में रहे. वहीं, 2007 में उन्होंने सपा ज्वाइन कर चुनाव जीता था. 2017 में उन्होंने वापस बीजेपी का दामन थाम मोदी लहर में विधायक बन गए.

बसपा का नहीं खुला खाता
जब से तिलोई विधान सभा का गठन हुआ है. बसपा लगातार जोर आजमाइश करती चली आ रही है. अब तक एक भी बार बसपा का विधायक निर्वाचित नहीं हुआ. इस समय तो हालात और बदतर हो गए है. नेता उम्मीदवार समर्थक न के बराबर रह गए हैं. वहीं, पुराने नेता साइकिल की सवारी कर चुके हैं. बसपा से इस समय के के आर्या ही टिकट के लिए आगे आए हैं.

फिलहाल कांग्रेस पार्टी की बात करें तो यहां संगठन के मुखिया की भी उम्मीदवारी मानी जा रही है. वहीं एक स्थानीय नेत्री सुनीता सिंह भी काफी सक्रिय राजनीति कर रही हैं. इनके अतरिक्त मो नईम की चर्चा भी जोर शोर से चल रही है.

समाजवादी पार्टी में उम्मीदवारों को लेकर लंबी फेहरिस्त है. यहां नए पुराने छोटे-बड़े नेताओं को मिला लिया जाए तो दर्जनभर से अधिक उम्मीदवार हैं. बसपा छोड़कर कर सायकिल की सवारी करने वाले मो सऊद, अमरनाथ, रोहित अवस्थी, जैनुल सहित अन्य लोग टिकट के लाइन में है.

मुस्लिम मतदाता है निर्णायक

इस विधान सभा में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है. एक साथ जिस तरफ घूम जाए लगभग जीत उसी की पक्की मानी जाती है. पूरी विधान सभा में 1 लाख 40 हजार के आस पास मुस्लिम मतदाता है. इस तरह यहां मुस्लिम मतदाताओं को निर्णायक माना जाता है.

तिलोई विधानसभा की कुल अनुमानित जनसंख्या वर्ष 2021 तक

तिलोई विधान सभा की कुल जनसंख्या- 5,84,500

पुरुष- 2,99,551
महिला- 2,84,949

अनुमानित जातिगत मतदाता

ब्राह्मण 48 हजार के आसपास
क्षत्रिय 40 हजार के आसपास
मुस्लिम 1 लाख 41 हजार के आसपास
अनुसूचित जाति 1 लाख के आसपास (पासी 67 हजार, हरिजन 29 हजार)
ओबीसी 80 हजार (यादव 27 हजार लोधी 28 हजार)

अब तक कितने लोग बने विधायक

1967 में वसीम नकवी कांग्रेस से विधायक बने.
1969 में मोहन सिंह भारतीय जनसंघ से विधायक हुए.
1974 में मोहन सिंह कांग्रेस से विधायक बने.
1977 में मोहन सिंह कांग्रेस से विधायक बने.
1980,85,89,और 1991 में हाजी मोहम्मद वसीम कांग्रेस से विधायक बने.
1993 में मयंकेश्वर शरण सिंह भाजपा से विधायक बने.
1996 में मोहम्मद मुस्लिम सपा से विधायक बने.
2002 में मयंकेश्वर शरण सिंह भाजपा से विधायक बने.
2007 में मयंकेश्वर शरण सिंह सपा से विधायक बने.
2012 में डॉ मुस्लिम कांग्रेस से विधायक बने.
2017 में मयंकेश्वर शरण सिंह बीजेपी से विधायक बने और अभी तक हैं.

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