अमेठी: ये रामगढ़ के तांगे नहीं जायस के इक्के हैं. जी हां स्मृति ईरानी के अमेठी वाला जायस, जहां आज भी इक्के और तांगे की सवारी ही होती है. यहां रिक्शे-ऑटो नहीं चलते, यहां आज भी इक्के और तांगे के सहारे ही सफर पूरा होता है. इक्के कभी शान की सवारी समझे जाते थे, आज बस मजबूरी ही रह गए हैं. रास्ते ऐसे हैं नहीं कि मोटरगाड़ियां चल सकें लिहाजा इक्कों का ही सहारा है. उस पर से इक्के बहुत हैं भी नहीं. जो हैं उनकी हालत भी ठीक नहीं.
जायस को आज भी विकास की आस है. इक्के वालों की आमदनी भी इतनी नहीं कि लंबे समय तक चल सकें. किसी तरह गुजारा होता है. इलाके में 20-25 इक्के ही बचे हैं और वो भी धीरे-धीरे काम बंद कर रहे हैं. इक्का चालकों का कहना है कि इस भागमभाग भरी जिंदगी में अब लोग इक्के की सवारी पसंद नहीं करते, जिससे अब सिर्फ इक्का चलाने भर से कमाई नहीं हो पा रही. ऐसे में कई इक्का चालक अब अपने इक्कों को बेंचने के बारे में भी सोच रहे हैं.
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समय के साथ-साथ आम लोगों के जीनव में भी काफी बदलाव आए हैं. लोग अब कहीं भी जाने के लिए किसी ऐसे वाहन का सहारा लेना पसंद कर रहे हैं, जो उन्हें जल्द से जल्द उनके गंतव्य तक पहुंचा दे. ऐसे में तांगे को लोग भूलते जा रहे हैं. वहीं इस सब के बीच तांगा अपना वजूद खोता जा रहा है.