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यहां सड़क के गड्ढ़ों ने बचा रखी है 'तांगे की सवारी'

उत्तर प्रदेश के अमेठी में स्थित जायस इलाके में आज भी इक्के से यात्रियों को आना-जाना पड़ता है. इसकी वजह जायस में खराब सड़कें हैं.

कहानी तांगे वाले की.
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Published : Aug 10, 2019, 3:10 PM IST

अमेठी: ये रामगढ़ के तांगे नहीं जायस के इक्के हैं. जी हां स्मृति ईरानी के अमेठी वाला जायस, जहां आज भी इक्के और तांगे की सवारी ही होती है. यहां रिक्शे-ऑटो नहीं चलते, यहां आज भी इक्के और तांगे के सहारे ही सफर पूरा होता है. इक्के कभी शान की सवारी समझे जाते थे, आज बस मजबूरी ही रह गए हैं. रास्ते ऐसे हैं नहीं कि मोटरगाड़ियां चल सकें लिहाजा इक्कों का ही सहारा है. उस पर से इक्के बहुत हैं भी नहीं. जो हैं उनकी हालत भी ठीक नहीं.

खराब सड़कों की वजह से नहीं चल पा रहे ऑटो-रिक्शा.

जायस को आज भी विकास की आस है. इक्के वालों की आमदनी भी इतनी नहीं कि लंबे समय तक चल सकें. किसी तरह गुजारा होता है. इलाके में 20-25 इक्के ही बचे हैं और वो भी धीरे-धीरे काम बंद कर रहे हैं. इक्का चालकों का कहना है कि इस भागमभाग भरी जिंदगी में अब लोग इक्के की सवारी पसंद नहीं करते, जिससे अब सिर्फ इक्का चलाने भर से कमाई नहीं हो पा रही. ऐसे में कई इक्का चालक अब अपने इक्कों को बेंचने के बारे में भी सोच रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- मुरादाबाद: पीतल कारोबार पर मंडराये संकट के बादल, हस्तशिल्प निर्यातकों में छाई मायूसी

समय के साथ-साथ आम लोगों के जीनव में भी काफी बदलाव आए हैं. लोग अब कहीं भी जाने के लिए किसी ऐसे वाहन का सहारा लेना पसंद कर रहे हैं, जो उन्हें जल्द से जल्द उनके गंतव्य तक पहुंचा दे. ऐसे में तांगे को लोग भूलते जा रहे हैं. वहीं इस सब के बीच तांगा अपना वजूद खोता जा रहा है.

अमेठी: ये रामगढ़ के तांगे नहीं जायस के इक्के हैं. जी हां स्मृति ईरानी के अमेठी वाला जायस, जहां आज भी इक्के और तांगे की सवारी ही होती है. यहां रिक्शे-ऑटो नहीं चलते, यहां आज भी इक्के और तांगे के सहारे ही सफर पूरा होता है. इक्के कभी शान की सवारी समझे जाते थे, आज बस मजबूरी ही रह गए हैं. रास्ते ऐसे हैं नहीं कि मोटरगाड़ियां चल सकें लिहाजा इक्कों का ही सहारा है. उस पर से इक्के बहुत हैं भी नहीं. जो हैं उनकी हालत भी ठीक नहीं.

खराब सड़कों की वजह से नहीं चल पा रहे ऑटो-रिक्शा.

जायस को आज भी विकास की आस है. इक्के वालों की आमदनी भी इतनी नहीं कि लंबे समय तक चल सकें. किसी तरह गुजारा होता है. इलाके में 20-25 इक्के ही बचे हैं और वो भी धीरे-धीरे काम बंद कर रहे हैं. इक्का चालकों का कहना है कि इस भागमभाग भरी जिंदगी में अब लोग इक्के की सवारी पसंद नहीं करते, जिससे अब सिर्फ इक्का चलाने भर से कमाई नहीं हो पा रही. ऐसे में कई इक्का चालक अब अपने इक्कों को बेंचने के बारे में भी सोच रहे हैं.

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समय के साथ-साथ आम लोगों के जीनव में भी काफी बदलाव आए हैं. लोग अब कहीं भी जाने के लिए किसी ऐसे वाहन का सहारा लेना पसंद कर रहे हैं, जो उन्हें जल्द से जल्द उनके गंतव्य तक पहुंचा दे. ऐसे में तांगे को लोग भूलते जा रहे हैं. वहीं इस सब के बीच तांगा अपना वजूद खोता जा रहा है.

Intro:अमेठी। एक तरफ जहा हाई स्पीड ट्रेनें चल रही है तो वही दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के संसदीय क्षेत्र अमेठी के जायस में लोगो को तांगा की सवारी करते हुए देखा जा सकता है। पुराने समय मे तांगा की सवारी करना लोगो के शान में था। मगर इस तकनीकी दुनिया मे लोग अब तांगा की सवारी करने के बजाय तेज रफ़्तार की सवारी करना ज्यादा पसंद कर रहे है। इन्ही वजह से इन तांगा वालो की कमाई न के बराबर है और अब तो ये भी इन तांगा को चलाना नही चाहते है।

तांगा की सवारी-

तांगा वह सवारी है जिसे एक घोड़ा खिंचता है। एक समय था जब रेलवे स्टेशन और अन्य स्थानो पर तांगा वाले सवारी बैठाने के लिए एक लाइन से खड़े रहते थे। लेकिन अब समय बदल गया और यातायात के साधन भी बदल गए।










Body:आपको बता दे कि पुराने समय मे लोग तांगा की सवारी से पूरे शहर का भ्रमण किया करते थे। मगर जैसे जैसे समय बदलता गया और यातायात के साधन भी बदलते गए। इस भागमभाग वाली जिन्दगी में अब सभी को तेज रफ्तार वाले यातायात के साधन पसंद है। तांगा की सवारी अब कोई करना नही चाहता।समय का अभाव व भागमभाग ही मुख्य वजह है कि लोग अब तांगा की सवारी नही करना चाहते। जिससे अब यह तांगा की सवारी कही गायब होता जा रहा है।


Conclusion:वी/ओ-1 इक्के की सवारी करने वाले आलमगीर कहते है कि सड़क खराब होने के कारण इक्के की सवारी करना पड़ता है। क्योंकि खराब सड़क पर गाड़ी आ नही पा रही थी। इस वजह से इक्का करना पड़ा।

बाइट- आलमगीर (सवारी)

वी/ओ-2 वही इक्का चालक फारूक से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि अब इसमें कमाई नही रह गयी। दिन भर में 150 से 200 रुपये की कमाई होती है। अगर दूसरा काम न करू तो घर का खर्चा भी नही निकल पाता।

बाइट- फारूक (इक्का चालक)


वी/ओ- 3 इक्का चालक कल्लू का कहना है कि अब इसमें कमाई नही रह गयी। कभी-कभी को एक रुपये की भी कमाई नही होती। अब इसे बेचना पड़ेगा।

बाइट- कल्लू (इक्का चालक)
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