अलीगढ़: संगीतकार रविंद्र जैन की तमन्ना थी कि अलीगढ़ में संगीत अकादमी खोलें, जिससे यहां के युवा, जो मुंबई में भटकते हैं, उन्हें जनपद में ही संगीत में महारत हासिल हो सके. हालांकि उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई. भले ही वह मुंबई जाकर बस गए लेकिन उनका लगाव अलीगढ़ से भी था. उनके पिता इंद्रमणि जैन के नाम से अलीगढ़ में सड़क का भी नाम है.
पद्मश्री से हुए सम्मानित
रविंद्र जैन जन्म से ही देखने में अक्षम थे लेकिन उनके अंदर कभी हीन भावना नहीं आईं. फिल्मों के अलावा उन्होंने छोटे पर्दे पर भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा. रविंद्र जैन पद्मश्री और उत्तर प्रदेश यश भारती से सम्मानित हो चुके हैं. वह अलीगढ़ में संगीत अकादमी खोलना चाहते थे, जिससे युवाओं की प्रतिभाओं को तराशा जा सके. रविंद्र जैन धारावाहिक रामायण से प्रसिद्ध हुए थे. वह किशोरावस्था में अलीगढ़ के जैन मंदिर में भजन गाया करते थे. इसके बाद कोलकाता चले गए फिर मुंबई इंडस्ट्री में उनकी एंट्री हो गई थी.
संगीत में योगदान का भुलाया नहीं जा सकता
संगीतकार रविंद्र जैन ने अपनी गीत और संगीत की प्रतिभा से पूरे बॉलीवुड को अपना मुरीद बना दिया था. फिल्म जगत में उन्होंने शोहरत और दौलत पाई लेकिन एक इच्छा उनकी अधूरी रह गई. वे अलीगढ़ में संगीत अकादमी खोलना चाहते थे, जो पूर्ण नहीं हो पाई. अलीगढ़ कल्चरल क्लब के पंकज धीरज ने बताया कि सरकार और परिवार के लोग उनकी इच्छा को पूरा करें. उन्होंने बताया कि संगीत अकादमी खोलने के लिए जगह देख ली गई थी लेकिन भवन नहीं बन पाया. उन्होंने बताया कि शासन और प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए क्योंकि रविंद्र जैन की संगीत में जो उपलब्धि थी, उसे भुलाया नहीं जा सकता.
नेत्र दिव्यांग थे रविंद्र जैन
संगीतकार रविंद्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को अलीगढ़ के कनवरीगंज इलाके में हुआ था. पिता इंद्रमणि जैन प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे. यह सात भाई बहन थे. नेत्र दिव्यांग होने के कारण पिता को उनके भविष्य की चिंता थी. रविंद्र जैन ने खुद को साबित करने के लिए संगीत की साधना शुरू की. वह कोलकाता चले गए. वहां संगीत का रियाज किया. सन् 1969 में वे मुंबई पहुंचे और फिल्मी दुनिया में कदम रखा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला
70 के दशक में मुंबई में एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे दिग्गज संगीतकारों का दबदबा था. फिर भी रविंद्र जैन ने अपने शास्त्रीय व लोक संगीत के जरिए लोगों के दिल में जगह बनाई. 1972 में 'कांच हुआ हीरा' फिल्म से कैरियर शुरू किया. वहीं उनको राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'सौदागर' से पहचान मिली. 1974 में 'चितचोर', 'तपस्या', 'फकीरा', 'चोर मचाए शोर' और 'गीत गाता चल' जैसी फिल्मों में उन्होंने गीत-संगीत दिया. इसके अलावा 'नदिया के पार', 'राम तेरी गंगा मैली', 'हिना', 'विवाह', 'अंखियों के झरोखे से' और 'दुल्हन वही जो पिया मन भाए' जैसी सुपरहिट फिल्मों में गीत और संगीत दिया. वहीं उन्हें 'राम तेरी गंगा मैली' के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड भी दिया गया.
रामायण से घर-घर में हुए लोकप्रिय
'गीत गाता चल' में उन्होंने 'मंगल भवन अमंगल हारी' के माध्यम से रामचरित मानस की चौपाइयों को मधुर धुन दिया था. जिसके बाद वह छोटे पर्दे पर 'रामायण', 'श्री कृष्ण', 'जय हनुमान' और 'अलिफ लैला' जैसे धारावाहिकों के जरिए घर-घर में लोकप्रिय हुए. नौ अक्टूबर 2015 को उनका निधन हो गया.
'महंगे ख्वाब की कीमत होगी महंगी'
अलीगढ़ में आ कर खुद रविंद्र जैन ने संगीत अकादमी खोलने की इच्छा जाहिर की थी. उस समय उन्होंने बताया कि जीवन में संघर्ष बहुत किया. अलीगढ़ से कोलकत्ता, मुंबई जाकर लम्बा सफर तय किया है. उन्होंने कहा था कि जितना मंहगा ख्वाब देखेंगे उसकी कीमत भी ज्यादा होगी. सुर साधना संस्था के अनिल वर्मा बताते हैं कि रविन्द्र जैन मन की आंखों से देखते थे. और सभी वाद्य यंत्र बजाना जानते थे.उनके अंदर आत्म विश्वास बहुत ज्यादा था. अनिल वर्मा बताते हैं कि बचपन में अलीगढ़ के तस्वीर महल सिनेमा हाल में फिल्म देखने गये थे. जहां भीड़ ज्यादा थी और गेट कीपर ने धक्का देकर निकाल दिया. तब रविन्द्र जैन ने कहा था कि एक दिन इसी पर्दे पर आप मुझे देखेंगे. वे बहुत सहनशील और लग्नशील थे. मन के संघर्ष से उन्होंने जीवन में सफलता पाई.