अलीगढ़: जनपद और आसपास के क्षेत्रों में तितलियों की प्रजातियां विलुप्त होती नजर आ रही हैं. इसका प्रमुख कारण तितलियों के लिए अनुकूल पौधों का नहीं लगाया जाना है. तितलियों की प्रजाति विलुप्त होने का प्रमुख कारण मानव दखल के साथ-साथ खेतों में केमिकल का प्रयोग करना भी है, जिससे तितलियों के वास स्थान नष्ट होने के चलते उनका अस्तित्व कम हो रहा है. पीले और काले रंग की ग्रेट यलो सेलर और फ्रीक प्रजाति की तितलियां घरों में बने गार्डन (फुलवारी) में अक्सर दिख जाती थी, लेकिन अब तितलियां नजर नहीं आ रही हैं. हालांकि वन विभाग ने तमाम तरह के पौधे लगाने का दावा किया है, लेकिन जिन पौधों की तरफ तितलियां आकर्षित होती हैं, उन पौधों की संख्या न के बराबर है.
वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट कर रहा सर्वे
एएमयू के वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट की ओर से तितलियों पर सर्वे किया जा रहा है. इसमें ग्रेट येलो सेलर और फ्रीक जैसी प्रजाति की तितलियां विलुप्त होने की कगार पर हैं. इसके पीछे कई कारण निकल कर आ रहे हैं. गुलाब, जेट्रोफा, गेंदा, टेकोमा, गुड़हल, अनार के पौधों से तितलियों को खाना और एनर्जी मिलती है. ऐसे पौधों पर तितलियां अंडे भी देती हैं, लेकिन इन पौधों की घटती संख्या के साथ तितलियों की प्रजाति धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है.
शहरीकरण से तितलियों के वास स्थल हुए नष्ट
मानव दखल से तितलियों के वास स्थल नष्ट हो गये. शहरीकरण से आबादी तेजी से बढ़ी है. ऐसे में तितलियों के वास स्थल भी समाप्त हो गये. तितलियां खास तरह के पौधे पर अंडे देती हैं. और इन पौधों के कम हो जाने से तितलियों के प्रजनन पर भी असर पड़ा है. अधिकतर चिकनी पत्तियों वाले पौधों पर तितलियां नहीं बैठती हैं. इससे अंडे देने की प्रक्रिया बाधित होने से इनका वजूद भी खत्म हो रहा है.
विलुप्त हो रही तितलियों की ये प्रजाति
ग्रेट येलो सेलर, ग्रास ब्लू, ब्लैक प्रिंस, फ्रीक, कॉमन टाइगर, प्लेन टाइगर, टाइगर हूपर, यलो पेंसी, पायोनियर आदि तितलियों की प्रजाति विलुप्त हो रही हैं जो कि अब सामान्यतः दिखाई नहीं देती हैं.
पेस्टिसाइड से प्रजनन पर असर
एएमयू के वाइल्ड लाइफ साइंस डिपार्टमेंट के चेयरमैन प्रो अफीफउल्ला खान बताते हैं कि तितलियों की प्रजाति विलुप्त होने के कई कारण हैं. पौधों पर पेस्टिसाइड और इंसेक्टिसाइड ज्यादा यूज हो रहे हैं, जिससे इनके प्रजनन पर असर पड़ा है और संख्या कम हुई है. वहीं उन्होंने बताया कि तितलियों के अनुकूल पौधों की संख्या कम हो गई है. क्योंकि शहर में आबादी तेजी से बढ़ी है और जगह कम हुई है. बहुत से पौधे तितलियों को आकर्षित करते हैं, लेकिन इन पौधों की कमी से तितलियां नहीं पनप पा रही हैं. उन्होंने बताया कि बहुत से ऐसे पौधे हैं. जिन पर तितलियां विशेष तौर पर आती हैं. उन्होंने बताया कि नींबू के पौधे पर बहुत सी तितलियां आती हैं. फूल वाले पौधों पर तितलियां आती हैं. आमतौर पर फूलों के पौधे अगर नहीं लगाए जाएंगे, तो तितलियों का होना भी संभव नहीं होगा.
तितलियों के प्राकृतिक वास वाले पेड़-पौधे और झाड़ियां कम होती जा रही हैं, जिससे तितलियों को जीवन-यापन करने में संघर्ष करना पड़ रहा है. इसलिए तितलियां कम हो रही हैं. तितलियां फूलों से फल, अनाज बनाने की प्रक्रिया पॉलिनेशन में बेहद सहायक साबित होती हैं. तितलियों की प्रजाति विलुप्त होने से पॉलीनेशन की प्रक्रिया बाधित होती है और इसका असर पारिस्थितिकी चक्र पर पड़ रहा है.
रंजन राना, पर्यावरणविद्