आगरा: शरदीय नवरात्र 2023 15 अक्टूबर से शुरू होंगे. ताजनगरी आगरा में अभी से शारदीय नवरात्र की तैयारी जोर शोर से चल रही है. मां दुर्गा, मां काली समेत अन्य देवी देवताओं की मूर्तियों को अंतिम रूप देने में मूर्तिकार जुटे हैं. कोलकाता से आए 12 मूर्तिकार दिन रात काम कर रहे हैं. मूर्तिकारों को जितनी आस्था की चिंता है, उतना ही पर्यावरण से प्यार है. इसलिए, पंडालों में मां का ईको फ्रेंडली दरबार सजे, इसको लेकर मिट्टी और धान की पराली से मां दुर्गा, मां काली और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां बनाने में जुटे हुए हैं.
आगरा में 20 साल से ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाने वाले कोलकाता के मूर्तिकार विकास दास का कहना है कि पिता ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाते थे. उनसे मैंने मूर्ति बनाना सीखा. पिता अब दुनियां में नहीं रहे. मगर, मैं उनकी इच्छा के मुताबिक ही आज भी कोलकाता के मूर्तिकार साथियों के साथ प्रदूषण मुक्त ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाता हूं. अब तो मेरा बेटा भी यह काम सीख गया है.
आगरा के बाजारों में शारदीय नवरात्र को लेकर मां की चुनरी और झंडे दुकानों पर सज गए हैं. मां की नौ दिन की आराधना में पंडाल सजेंगे. जहां पर काली, दुर्गा और अन्य देवी देवताओं की मूर्ति की स्थापना होगी. आगरा में नामनेर मूर्ति बाजार, सुल्तानगंज की पुलिया, सदर समेत अन्य स्थानों पर ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जा रही हैं. जो एक फीट से लेकर 12 फीट ऊंची हैं. ये मूर्तियां ही नवरात्र में आगरा के साथ ही आसपास के जिलों में घर, मंदिर और पंडालों में विराजमान होंगी.
आगरा में ईको फ्रेंडली मूर्तियों की मांगः मूर्तिकार विकास दास ने बताया कि आगरा में ईको फ्रेंडली मूर्तियों की मांग तेजी से बढ़ी है. गणेश चतुर्थी पर भी घर, मंदिर और पंडालों में गणपति बप्पा की ईको फ्रेंडली मूर्तियां विराजमान हुई थीं. क्योंकि, जब मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है तो प्लास्टर ऑफ पेरिस पीओपी से बनी मूर्तियां गलती नहीं है. जिससे नदी का पानी भी प्रदूषित होता है. ताजनगरी में साल दर साल प्रदूषण की चिंता बढ़ रही है. इससे ही आज आगरा में ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जा रही हैं. हमें पहले ही मूर्तियों के ऑर्डर मिल गए हैं. उन्हें बनाने में लगे हुए हैं. इसके साथ ही हर दिन रोज मूर्तियों के ऑर्डर मिल रहे हैं.
पंडित जी की सलाह पर विराजते हैं ईको फ्रेंडली मूर्तिः लोहामंडी क्षेत्र निवासी करण प्रजापति ने बताया कि युवा हर साल शरदीय नवरात्र में पंडाल लगाकर मां की मूर्ति स्थापित करते हैं. पहले हम पीओपी की मूर्ति पंडाल में विराजते थे. तीन साल पहले पंडित जी ने पीओपी की मूर्ति स्थापित करने से इनकार कर दिया था. बताया था कि पीओपी की मूर्ति गलती नहीं है. विसर्जन के बाद यूं ही यमुना में पड़ी रहती है. यमुना का पानी भी प्रदूषित करती है. इसलिए, तभी से ईको फ्रेंडली मूर्ति स्थापित करते हैं. इस बार छह फीट की मां दुर्गा की मूर्ति स्थापति करेंगे.
बाजार में 200 से 60 हजार तक मूर्तियांः मूर्तिकार विकास दास ने बताया कि कोलकाता से मेरे साथ 12 मूर्तिकार आए हैं. हर साल हम चार माह पहले ही आगरा आते हैं. यहां पर किराए पर मकान लेकर ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाते हैं. पहले गणेश उत्सव को लेकर मूर्तियां बनाते हैं. इसके बाद नवरात्र को लेकर मां दुर्गा और मां काली समेत अन्य देवी देवाताओं की मूर्ति बनाते हैं.
हमने ढाई से 12 फीट तक की ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई हैं. मूर्ति की लंबाई के हिसाब से उनकी कीमत तय होती है. ये ईको फ्रेंडली मूर्तियां विसर्जित करने पर महज 15 मिनट में ही पानी घुल जाएंगी. आगरा की बात करें तो एक से 12 फीट तक की मूर्ति बाजार में है. आगरा में ईको फ्रेंडली मूर्ति 200 रुपए लेकर 50 हजार रुपये तक में उपलब्ध हैं.
ताजनगरी से ईको फ्रेंडली मूर्तियां जाती हैं राजस्थान तकः मूर्तिकार विकास दास ने बताया कि, ईको फ्रेंडली मूर्तियों की डिमांड खूब है. ताजनगरी के साथ ही ईको फ्रेंडली मूर्तियां इटावा, फीरोजाबाद, टूण्डला, ग्वालियर, भिंड, धौलपुर, भरतपुर, मथुरा, एटा, हाथरस, कासगंज समेत अन्य आसपास के जिलों में जाती हैं.
ऐसे तैयार होती हैं ईको फ्रेंडली मूर्तियांः मूर्तिकार विकास दास ने बताया कि ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाने के लिए मैनपुरी और अन्य जिलों से धान की पराली लाते हैं. लकड़ी और बांस पर पराली का ढांचा बनाते हैं. इसके बाद इस ढांचे पर ही मिट्टी से ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाते हैं. इतना ही नहीं, पर्यावरण को देखकर मूर्तियों को वाटर कलर से सजाते और संवारते हैं.