आगरा : परिस्थितियां कितनी विपरीत क्यों न हो, मेहनत और जुनून की कभी हार नहीं होती. आगरा में वुमेन सीनियर नेशनल रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर नंदिनी ने दिखा दिया कि लगन और बेहतर प्रशिक्षण से ही सफलता मिलती है. ताजनगरी में दो दिन तक चली इस चैंपियनशिप में कई उलटफेर देखने को मिले. ओलंपियन साक्षी मलिक को सोनम ने पटखनी दी, तो एशियाई चैंपियन दिव्या काकरान को यूपी की रजनी ने पहली ही पारी में ही हरा दिया. इसके साथ ही उन्होंने दिव्या को चैंपियनशिप से भी बाहर कर दिया. इनमें 53 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाली महाराष्ट्र की पहलवान नंदिनी की कहानी बेहद प्रेरणादायक है. ETV भारत की टीम ने नंदिनी से खास बातचीत की. इसमें पहलवान नंदिनी ने बताया कि यह पदक उनकी मां सरीता और कोच को समर्पित है. मां के त्याग और कोच के मार्गदर्शन से ही उन्हें सीनियर महिला रेसलिंग में पहला स्वर्ण पदक हासिल हुआ है.
बता दें कि 29 जनवरी को 23वीं महिला सीनियर नेशनल रेसलिंग चैंपियनशिप में महाराष्ट्र की टीम को लेकर कोच दादा सो लोके ताजनगरी आए थे. रविवार को आगरा के गांव लड़ामदा में चैंपियनशिप के मुकाबले हुए. इनमें देशभर की महिला पहलवानों ने दांव दिखाए. इसी दौरान चैंपियन नंदिनी ने 53 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक अपने नाम किया. नंदिनी के साथ-साथ महाराष्ट्र से आई स्वाति ने ब्रॉन्ज मेडल मिला है.
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बचपन में ही पिता का साथ छूटा
महाराष्ट्र में कर्नाटक बॉर्डर पर स्थित कोल्हापुर के गांव मुरगुड की निवासी नंदिनी का स्वर्णिम सफर बेहद कांटों भरा रहा है. जब नंदिनी 7 साल की थी, तभी उनके पिता बाजीराव का निधन हो गया. ऐसे में उनकी मां सरिता ने खेतों और लोगों के घरों में काम कर बेटी को कुश्ती में आगे बढ़ाया. कोच दादा सो लोके ने भी नंदिनी की प्रतिभा को पहचाना और उनके जुनून को देखकर उन्हें बेहतर प्रशिक्षण दिया.
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चोट के चलते एक साल रहीं कुश्ती से दूर
कुश्ती के 53 किलोग्राम भार वर्ग के फाइनल मुकाबले में नंदिनी ने दिल्ली की ममता रानी को हराकर स्वर्ण पदक जीता. नंदिनी का यह स्वर्णिम सफर बेहद ही मुश्किल भरा रहा. ETV भारत से बातचीत में नंदिनी ने बताया कि वह 4 साल से नेशनल चैंपियनशिप में भाग ले रही हैं. इस दौरान चोट के चलते एक साल से ज्यादा समय तक अखाड़े से दूर रहीं. इस दौरान वह प्रैक्टिस भी नहीं कर सकीं. एक साल बाद अखाड़े में आईं, तो प्रैक्टिस करके गोल्ड मेडल जीता.
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मां मेहनत करके लड़ा रही कुश्ती
नंदनी ने कहा कि पिता बाजीराव के निधन के बाद परिवार में मां और भाई ही रह गए थे. मां ने खेतों में और घरों में काम करके भाई-बहन को पाला. नंदनी ने बताया कि मां मेहनत करके उन्हें कुश्ती लड़ा रही है. चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, मां ने उनकी कुश्ती लड़ने में कोई बाधा नहीं आने दी. 8 साल से कोच दादा सो लोके के सेंटर में प्रैक्टिस कर रही है. उनकी इस सफलता में मां और कोच का अहम योगदान है.
यूं चढ़ रहीं सफलता की सीढ़ियां-
- 2015 में नेशनल सीनियर महिला रेसलिंग में रजत पदक जीता.
- 2017 में जूनियर गर्ल्स नेशनल रेसलिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता.
- फिनलैंड में हुई जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लिया.
- 50 किलोग्राम भार वर्ग में हरियाणा के अंबाला में भारत केसरी चुनी गई.
3-4 साल से केंद्र और राज्य सरकार भी महाराष्ट्र में कुश्ती को बढ़ावा दे रही है. मिशन ओलंपिक और खेलो इंडिया के तहत तमाम सुविधाएं भी खिलाड़ियों को दी जा रही हैं. यही वजह है कि महाराष्ट्र में अब कुश्ती और पहलवान दोनों ही आगे निकल रहे हैं. मेरे सेंटर से ही नेशनल चैंपियनशिप में नंदनी के साथ स्वाति ने भी मेडल जीता है.
-दादा सो लोके, कोच