आगरा : रावत पाड़ा स्थित श्रीमनकामेश्वर मंदिर जनपद के सभी शिव मंदिरों में अपना विशेष स्थान रखता है. मंदिर के 28वीं पीढ़ी के महंत योगेशपुरी बताते हैं कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को खुद शिवजी ने स्थापित किया था. इसलिए इस मंदिर की अत्यधिक महत्ता है.
मान्यता है कि द्वापर में भगवान शिव ने खुद इस शिवलिंग की स्थापना की थी. परंपरा के अनुसार भक्त की यदि मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह मंदिर में आकर देसी घी का दीपक जलाता है.
मनकामेश्वर मंदिर के महंत योगेशपुरी बताते हैं कि द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो उनके दर्शन के लिए शिवजी कैलाश से चले पड़े थेय इसी स्थान पर जहां आज मनकामेश्वर मंदिर स्थापित है, वहां शिवजी ने विश्राम किया और श्रीकृष्ण के दर्शन करने पहुंचे. उनकी वेशभूषा देखकर मां यशोदा डर गईं. श्रीकृष्ण के दर्शन कराने से मनाकर दिया.
उसके बाद श्रीकृष्ण भगवान रोने लगे. अपनी लीला करने लगे जिसके बाद मां यशोदा ने कान्हा को शिवजी की गोद में खिलाने के लिए दे दिया. लौटते वक्त शिवजी ने खुश होकर खुद अपने हाथ से शिवलिंग की स्थापना की. कहा कि जिस प्रकार मेरे मन की कामना पूरी हुई है, ठीक वैसे ही इस शिवलिंग के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होगी. इस प्रकार इस मंदिर का नाम मनकामेश्वर मंदिर पड़ा.
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महंत योगेश पुरी ने बताया कि इस शिवलिंग को दूसरी जगह स्थापित करने के लिए एक नया मंदिर 650 वर्ष पूर्व महंत गणेशपुरी द्वारा दक्षिण उत्तर भारत की शैली पर बनवाया गया था. जब शिवलिंग को वहां से हटाकर दूसरी जगह स्थापित करने का सभी लोगों ने प्रयास किया तब वह शिवलिंग गर्भगृह में चली गई.
इस वजह से आज भी शिवलिंग के दर्शन करने के लिए भक्तों को सीढ़ियों से नीचे उतर कर आना पड़ता है. इसके बाद महंत गणेशपुरी द्वारा स्थापित 650 वर्ष पूर्व मंदिर में दूसरे शिवलिंग को स्थापित किया गया.
11 अखंड ज्योत की है अलग मान्यता
महंत योगेश्वर ने बताया कि दूसरे मंदिरों में मान्यता के अनुरूम मनोकामना पूरी होने पर भक्तगण यथा संभव दान पूण्य व अन्य उपक्रम करते हैं, उसी प्रकार इस मंदिर में मनोकामना पूरी होने पर यहां भी 11 चांदी की अखंड ज्योति को जलाना होता है. इसकी कीमत सवा एक रुपये से लेकर सवा लाख तक होती है.
भक्तों का लगा रहता है यहां तांता
सावन का सोमवार हो या न हो लेकिन मनकामेश्वर मंदिर में हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है. भक्त यहां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और पूरी होने पर दीपक जलाकर परंपरा को निभाते हैं. मंदिर में 8 बार पूजा अर्चना और आरती होती है.