आगरा: मायानगरी का सांप और सपेरा से गहरा नाता है. तमाम हिंदी फीचर फिल्म सांप और सपेरों का बनी हैं. जिन्हें दर्शकों ने खूब पसंद भी किया. तभी तो इन फिल्मों के गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं. मगर, आज भी यह समुदाय बीन बजाने, सांप पकड़ने, सांप का खेल दिखाने और सांप काटने का इलाज करके परिवार का गुजारा कर रहा है. भले ही उन्हें वोट देने का अधिकार मिल गया है, लेकिन आजादी के बाद से अभी तक सपेरा समुदाय को यूपी में जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है.
अंधकार में है बच्चों का भविष्य-
सपेरा समुदाय के लोगों का कहना है कि जब 'स' से सपेरा पढ़ाया जाता है, लेकिन प्रदेश में उन्हें अभी जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता हैं. इससे बच्चों का भविष्य अंधकार में है. जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से हमें सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है. जबकि हरियाणा और दूसरे प्रदेशों में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र सपेरा समुदाय को बनाकर दिया जा रहा है.
जैसे-तैसे करते हैं गुजारा-
आगरा जिले में सपेरा समुदाय की कई बस्तियां हैं. जो ये लोग आज भी लोगों के घर से सांप पकड़कर, बीन बजाकर, सांप का खेल दिखाकर अपना गुजारा करते हैं. इस सुमदाय के लोगों के पास न तो जमीन है और न ही रहने के लिए सिर पर छत. इनके घर में बच्चे भी पैदा होते हैं तो वो भी बीन की धुन और सांप की फुंसकार सुनते हुए. बच्चों का बचपन खतरनाक सांपों के साथ खेलने में बीतता है. इस खेल में वो जहरीली सांप पकड़ना, बीन बजाने के साथ ही सांप काटने का इलाज करना भी सीख लेते हैं.
किसी के पास नहीं है जाति प्रमाणपत्र-
राजस्थान और यूपी के बार्डर से सटे शमसाबाद के गांव सोरन का पुरा निवासी सोरन नाथ सपेरा समुदाय के मुखिया है. उनका कहना है कि किताबों में बच्चों को 'स' से सपेरा पढ़ाया जाता है, लेकिन अभी तक हमें जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है. मेरे गांव की आबादी 2000 है. किसी के पास जाति प्रमाणपत्र नहीं है. हमारे गांव की बात दूर जिले और प्रदेश में भी सपेरों के जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाए जाते हैं जबकि यूपी में चार लाख की सपेरा समुदाय की आबादी है. वहीं हरियाणा और दूसरे राज्यों में एसटी के जात प्रमाणपत्र सपेरा समाज को समुदाय को दिए जाते हैं.
मैंने 12वीं तक पढ़ाई की है, लेकिन जाति प्रमाण पत्र न होने से मुझे बजीफा नहीं मिला क्योंकि मेरे पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है. इस वजह से सरकारी नौकरी के लिए एप्लाई नहीं कर सका.
-नरेंद्र नाथ, सपेरा
मैेने दसवीं तक पढ़ाई की है. जब जाति प्रमाण पत्र की बात आई तो उसके लिए प्रयास भी किए, लेकिन अधिकारियों ने हमारी एक नहीं सुनी. इसी वजह से सांप दिखाने और बीन बजाने का काम करने लगे.
-महेश नाथ, सपेरा
हमारे गांव में न नाली है, न ही खरंजा है और न तालाब है. जब गांव का पानी किसानों के खेतों में जाता है. तो वह भी मारपीट पर उतर आते हैं. गांव में पानी की भी बहुत समस्या है.
-पप्पू नाथ, सपेरा