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जाति प्रमाण न होने से इस समुदाय को नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ !

प्रदेश में सपेरा समुदाय की आजादी के बाद हालत जस की तस हैं. आधार कार्ड बनने से इन्हें मतदान करने का अधिकार तो मिल गया, लेकिन अभी तक इस समुदाय को जाति प्रमाण पत्र नहीं मिला है. जाति प्रमाण नहीं होने से सपेरा समुदाय के बच्चे सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं.

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Published : Aug 6, 2019, 12:23 PM IST

सपेरों ने बताया जाति प्रमाण पत्र न होने का दर्द.

आगरा: मायानगरी का सांप और सपेरा से गहरा नाता है. तमाम हिंदी फीचर फिल्म सांप और सपेरों का बनी हैं. जिन्हें दर्शकों ने खूब पसंद भी किया. तभी तो इन फिल्मों के गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं. मगर, आज भी यह समुदाय बीन बजाने, सांप पकड़ने, सांप का खेल दिखाने और सांप काटने का इलाज करके परिवार का गुजारा कर रहा है. भले ही उन्हें वोट देने का अधिकार मिल गया है, लेकिन आजादी के बाद से अभी तक सपेरा समुदाय को यूपी में जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है.

सपेरों ने बताया जाति प्रमाण पत्र न होने का दर्द.

अंधकार में है बच्चों का भविष्य-
सपेरा समुदाय के लोगों का कहना है कि जब 'स' से सपेरा पढ़ाया जाता है, लेकिन प्रदेश में उन्हें अभी जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता हैं. इससे बच्चों का भविष्य अंधकार में है. जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से हमें सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है. जबकि हरियाणा और दूसरे प्रदेशों में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र सपेरा समुदाय को बनाकर दिया जा रहा है.

जैसे-तैसे करते हैं गुजारा-
आगरा जिले में सपेरा समुदाय की कई बस्तियां हैं. जो ये लोग आज भी लोगों के घर से सांप पकड़कर, बीन बजाकर, सांप का खेल दिखाकर अपना गुजारा करते हैं. इस सुमदाय के लोगों के पास न तो जमीन है और न ही रहने के लिए सिर पर छत. इनके घर में बच्चे भी पैदा होते हैं तो वो भी बीन की धुन और सांप की फुंसकार सुनते हुए. बच्चों का बचपन खतरनाक सांपों के साथ खेलने में बीतता है. इस खेल में वो जहरीली सांप पकड़ना, बीन बजाने के साथ ही सांप काटने का इलाज करना भी सीख लेते हैं.

किसी के पास नहीं है जाति प्रमाणपत्र-
राजस्थान और यूपी के बार्डर से सटे शमसाबाद के गांव सोरन का पुरा निवासी सोरन नाथ सपेरा समुदाय के मुखिया है. उनका कहना है कि किताबों में बच्चों को 'स' से सपेरा पढ़ाया जाता है, लेकिन अभी तक हमें जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है. मेरे गांव की आबादी 2000 है. किसी के पास जाति प्रमाणपत्र नहीं है. हमारे गांव की बात दूर जिले और प्रदेश में भी सपेरों के जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाए जाते हैं जबकि यूपी में चार लाख की सपेरा समुदाय की आबादी है. वहीं हरियाणा और दूसरे राज्यों में एसटी के जात प्रमाणपत्र सपेरा समाज को समुदाय को दिए जाते हैं.

मैंने 12वीं तक पढ़ाई की है, लेकिन जाति प्रमाण पत्र न होने से मुझे बजीफा नहीं मिला क्योंकि मेरे पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है. इस वजह से सरकारी नौकरी के लिए एप्लाई नहीं कर सका.
-नरेंद्र नाथ, सपेरा

मैेने दसवीं तक पढ़ाई की है. जब जाति प्रमाण पत्र की बात आई तो उसके लिए प्रयास भी किए, लेकिन अधिकारियों ने हमारी एक नहीं सुनी. इसी वजह से सांप दिखाने और बीन बजाने का काम करने लगे.
-महेश नाथ, सपेरा

हमारे गांव में न नाली है, न ही खरंजा है और न तालाब है. जब गांव का पानी किसानों के खेतों में जाता है. तो वह भी मारपीट पर उतर आते हैं. गांव में पानी की भी बहुत समस्या है.
-पप्पू नाथ, सपेरा

आगरा: मायानगरी का सांप और सपेरा से गहरा नाता है. तमाम हिंदी फीचर फिल्म सांप और सपेरों का बनी हैं. जिन्हें दर्शकों ने खूब पसंद भी किया. तभी तो इन फिल्मों के गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं. मगर, आज भी यह समुदाय बीन बजाने, सांप पकड़ने, सांप का खेल दिखाने और सांप काटने का इलाज करके परिवार का गुजारा कर रहा है. भले ही उन्हें वोट देने का अधिकार मिल गया है, लेकिन आजादी के बाद से अभी तक सपेरा समुदाय को यूपी में जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है.

सपेरों ने बताया जाति प्रमाण पत्र न होने का दर्द.

अंधकार में है बच्चों का भविष्य-
सपेरा समुदाय के लोगों का कहना है कि जब 'स' से सपेरा पढ़ाया जाता है, लेकिन प्रदेश में उन्हें अभी जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता हैं. इससे बच्चों का भविष्य अंधकार में है. जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से हमें सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है. जबकि हरियाणा और दूसरे प्रदेशों में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र सपेरा समुदाय को बनाकर दिया जा रहा है.

जैसे-तैसे करते हैं गुजारा-
आगरा जिले में सपेरा समुदाय की कई बस्तियां हैं. जो ये लोग आज भी लोगों के घर से सांप पकड़कर, बीन बजाकर, सांप का खेल दिखाकर अपना गुजारा करते हैं. इस सुमदाय के लोगों के पास न तो जमीन है और न ही रहने के लिए सिर पर छत. इनके घर में बच्चे भी पैदा होते हैं तो वो भी बीन की धुन और सांप की फुंसकार सुनते हुए. बच्चों का बचपन खतरनाक सांपों के साथ खेलने में बीतता है. इस खेल में वो जहरीली सांप पकड़ना, बीन बजाने के साथ ही सांप काटने का इलाज करना भी सीख लेते हैं.

किसी के पास नहीं है जाति प्रमाणपत्र-
राजस्थान और यूपी के बार्डर से सटे शमसाबाद के गांव सोरन का पुरा निवासी सोरन नाथ सपेरा समुदाय के मुखिया है. उनका कहना है कि किताबों में बच्चों को 'स' से सपेरा पढ़ाया जाता है, लेकिन अभी तक हमें जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है. मेरे गांव की आबादी 2000 है. किसी के पास जाति प्रमाणपत्र नहीं है. हमारे गांव की बात दूर जिले और प्रदेश में भी सपेरों के जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाए जाते हैं जबकि यूपी में चार लाख की सपेरा समुदाय की आबादी है. वहीं हरियाणा और दूसरे राज्यों में एसटी के जात प्रमाणपत्र सपेरा समाज को समुदाय को दिए जाते हैं.

मैंने 12वीं तक पढ़ाई की है, लेकिन जाति प्रमाण पत्र न होने से मुझे बजीफा नहीं मिला क्योंकि मेरे पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है. इस वजह से सरकारी नौकरी के लिए एप्लाई नहीं कर सका.
-नरेंद्र नाथ, सपेरा

मैेने दसवीं तक पढ़ाई की है. जब जाति प्रमाण पत्र की बात आई तो उसके लिए प्रयास भी किए, लेकिन अधिकारियों ने हमारी एक नहीं सुनी. इसी वजह से सांप दिखाने और बीन बजाने का काम करने लगे.
-महेश नाथ, सपेरा

हमारे गांव में न नाली है, न ही खरंजा है और न तालाब है. जब गांव का पानी किसानों के खेतों में जाता है. तो वह भी मारपीट पर उतर आते हैं. गांव में पानी की भी बहुत समस्या है.
-पप्पू नाथ, सपेरा

Intro:एक्सक्लुसिव....
आगरा.
मायानगरी का सांप और सपेरा से गहरा नाता है. तमाम हिंदी फीचर फिल्म सांप और सपेरों का बनी. जो हिट हुईं. फिल्म निर्माता मालामाल हो गए. फिल्मों के गीत आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ कर बोलते हैं. मगर, आज भी समुदाय बीन बजाने, सांप पकड़ने, सांप का खेल दिखाने और सांप काटने का इलाज करके परिवार का गुजारा कर रहा है. भले ही उन्हें वोट देने का अधिकार है, लेकिन उन्हें जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है. आजादी के बाद से अभी तक सपेरा समुदाय को यूपी में जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है. नाग पंचमी पर सांप की पूजा होती है. गांव-गांव और गली सांप लेकर सपेरे घूमते हैं. सपेरा समुदाय के लोगों का कहना है कि जब 'स' से सपेरा पढ़ाया जाता है. सपेरा समुदाय घुमक्कड़ भी माना जाता है,लेकिन प्रदेश में उन्हें अभी जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता हैं. इससे बच्चों का भविष्य अंधकार में है. जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से बच्चों को और हमें अभी तक सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है. जबकि हरियाणा और दूसरे प्रदेशों में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र सपेरा समुदाय को बनाकर दिया जि रहा है.


Body:आगरा जिले में सपेरा समुदाय की बस्तियां हैं. आबादी भी हजारों में है. इनका पुश्तैनी पेशा आज भी लोगों के घर से सांप पकड़ना. बीन बजाना. और सांप का गांव गांव जाकर के खेल दिखाना है. इस समुदाय के लोगों के पास न तो जमीन है और ना ही सिर पर पक्की छत है. बच्चे भी पैदा होते ही बीन की धुन और सांप की फुंसकार सुनते हैं. बच्चों का बचपन खतरनाक सांपों के साथ खेलने में बीतता है. वे खेल में जहरीली सांप पकड़ना सीख जाते हैं और बीन बजाना सीखने के साथ ही सांप काटने का इलाज जड़ी बूटियों से करना सीख लेते हैं.
राजस्थान और यूपी के बार्डर से सटे शमसाबाद के गांव सोरन का पुरा निवासी सोरन नाथ सपेरा समुदाय के मुखिया है. उनका कहना है कि किताबों में 'स' से सपेरा बच्चों को पढ़ाया जाता है. इतिहास में हमारी सपेरा जाति भी है, लेकिन अभी तक हमें जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है. मेरे गांव की आबादी 2000 है. किसी के पास जात प्रमाणपत्र नहीं है. हमारे गांव की बात दूर जिले और प्रदेश में भी सपेरों के जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाए जाते हैं. यूपी में चार लाख की सपेरा समुदाय की आबादी है. मगर आज भी हरियाणा और दूसरे राज्यों में एसटी के जात प्रमाणपत्र सपेरा समाज को समुदाय को दिए जाते हैं.
नरेंद्र नाथ सपेरा का कहना है कि, मैंने 12वीं तक पढ़ाई की. जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से ना ही मुझे बजीफा मिला. कई अधिकारियों से मिले. जाति प्रमाण पत्र नहीं मिला. इस वजह से सरकारी नौकरी के लिए एप्लाई नहीं कर सका.
महेश नाथ सपेरा का कहना है कि,पहले तो हम पढ़ाई की. दसवीं तक पढ़ा. लेकिन जब जाति प्रमाण पत्र की बात आई तो उसके लिए प्रयास भी किए. लेकिन अधिकारियों ने सुनाई नहीं की. इस वजह से फिर सांप दिखाने और बीन बजाने का काम करने लगे. सरकारों ने भी सुनवाई नहीं की.
पप्पू नाथ सपेरा का कहना है कि, हमारे गांव में ना नाली है. और ना ही खरंजा है. न तालाब है. जब गांव का पानी किसानों के खेतों में जाता है. तो वह भी मारपीट पर उतर आते हैं. गांव में न कोई नल है और न कोई टंकी है. दूसरे गांव से पीने के लिए पानी लाते हैं.


Conclusion:प्रदेश में सपेरा समुदाय की आजादी के बाद हालत जस की तस है. उन्हें आधार कार्ड बनने से मतदान करने का अधिकार तो मिल गया लेकिन अभी तक इस समुदाय को जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलता है. सपेरा समुदाय की आबादी सूबे में करीब चार लाख बताई जा रही है. इस समुदाय के बच्चों अब पढ़ रहे हैं. मगर जाति प्रमाण नहीं होने से सपेरा समुदाय के बच्चे सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से वंचित हो जाते हैं.
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सोरन नाथ, मुखिया सपेरा समुदाय।
नरेंद्र नाथ, सपेरा।
महेश नाथ, सपेरा।
पप्पू नाथ, सपेरा।

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श्यामवीर सिंह
आगरा
8387893357
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