मेरठ: 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति की शुरुआत मेरठ से हुई थी. महात्मा गांधी के "असहयोग आंदोलन" (mahatma gandhi non cooperation movement) के समर्थन में मेरठ कॉलेज में करीब 194 घंटे का हवन हुआ था. सौ स्वर्ण मुद्राएं, एक चांदी की प्लेट भी यहां के स्टूडेंट्स ने उस वक्त आंदोलन के आर्थिक सहायता के लिए गांधी जी को भेंट दी थी. महात्मा गांधी के आंदोलन को आर्थिक मदद और गति देने में पूरा सहयोग यहां के युवाओं ने किया था. इसका साक्षी है मेरठ कॉलेज में लगा बरगद का पेड़. देखें यह खास रिपोर्ट.
असहयोग आंदोलन के समय मेरठ कॉलेज में लगा बरगद का एक पौधा अब विशालकाय वृक्ष बन चुका है. वहीं, इसे स्मृति स्थल के तौर पर विकसित किया गया. यहां एक शिला पर हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और उर्दू में उस समय का जिक्र भी है. मेरठ कॉलेज प्रांगण में स्थित इस वृक्ष को देखने के लिए लोग हमेशा यहां आते रहते हैं. सन् 1929 में मेरठ कॉलेज में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Father of nation mahatma gandhi) ने संबोधित किया था. मेरठ कॉलेज के प्रोफेसर राय बताते हैं, कि 1857 की क्रांति में कॉलेज के छात्रों ने सहयोग किया था. मेरठ कॉलेज में स्थापित बरगद का पेड़ "भारत छोड़ो आंदोलन" (quit india movement) की याद दिलाता है. इस आंदोलन के समय महात्मा गांधी जी जब उपवास पर थे, तभी आंदोलन की सफलता के लिए एक बरगद का पेड़ लगाया गया था. असहयोग आंदोलन में छात्रों से सहयोग के लिए महात्मा गांधी मेरठ कॉलेज आए थे. बिना संकोच छात्रों ने उनका सहयोग किया था.
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मेरठ कॉलेज के प्रिंसिपल एसएन शर्मा (SN sharma principal of meerut college) बताते हैं, कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे सुदृढ़ नींव इसी क्रांतिधरा पर रखी गई थी. मेरठ की धरती पर महात्मा गांधी दो बार आए थे. महात्मा गांधी का मेरठ कॉलेज में उस वक्त पवित्र आगमन हुआ, जब उनका अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चल रहा था. गांधीजी ने अपने आंदोलन को गति देने और युवाओं को प्रेरणा, ऊर्जा देने के लिए आए और उनसे सहयोग मांगा था.
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