लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत ने विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया है. विपक्षी दलों में केवल समाजवादी पार्टी ने जौनपुर की मल्हनी विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की. बाकी सभी 6 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर जीत दर्ज की है. भाजपा नेतृत्व और सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस जीत को 2022 के चुनाव परिणामों के संकेत के रूप में देख रहे हैं. हालांकि जानकार उपचुनाव को सत्ता पक्ष का चुनाव मानते हैं.
बांगरमऊ में 2017 से पहले नहीं खिला था कमल
अमरोहा की नौगवां सादात और उन्नाव की बांगरमऊ सीट पर 2017 से पहले कमल कभी नहीं खिला था. 2017 में बीजेपी की लहर थी, लेकिन उपचुनाव में इन सीटों पर दोबारा जीत दर्ज करना पार्टी के लिए शुभ संकेत है. इसके अलावा एक खास बात और जिस पर ध्यान देने की जरूरत है वो ये कि बीजेपी ने जिन 6 सीटों पर जीत दर्ज की है वहां पार्टी के प्रत्याशियों ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को काफी बड़े अंतर से हराया है. उपचुनाव के परिणाम के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री ने जीत के इस बड़े अंतर का जिक्र भी किया. जबकि एक सीट जीतने वाली सपा प्रत्याशी को उतने बड़े अंतर से जीत नहीं मिली.
बड़ी जीत नहीं दर्ज कर सकी सपा
जौनपुर की मल्हनी विधानसभा सीट पर पहले से ही सपा की जीत तय मानी जा रही थी. मल्हनी विधानसभा क्षेत्र में 70 हजार से अधिक यादव मतदाता हैं. सपा के कद्दावर नेता रहे पारसनाथ यादव ने इस सीट से कई बार चुनाव जीता. पारसनाथ यादव के निधन से खाली हुई सीट पर सपा ने उनके बेटे लकी यादव को टिकट दिया था और उन्हें उम्मीद के मुताबिक जीत भी मिली है. लेकिन, पारसनाथ यादव ने 2017 में बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी, जबकि लकी यादव को सिर्फ पांच हजार मतों से ही जीत मिली है.
मतदाताओं ने नकारा जातीय गुणा-गणित
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरीश चंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि विपक्ष के प्रोपेगेंडा को जनता ने नकार दिया है. हाथरस, बिकरू कांड और बलिया की घटना के बाद विपक्ष हमलावर हो कर योगी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा था. विपक्ष कह रहा था कि यह उपचुनाव 2022 का लिटमस टेस्ट है. उसको जनता ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है. 2022 के परिणाम के संकेत भी दे दिए हैं. उपचुनाव परिणामों ने आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों के जातीय गुणा गणित को भी सिरे से नकार दिया है.
लड़ाई में दिखी बसपा
बहुजन समाज पार्टी को किसी सीट पर जीत नहीं मिली. लेकिन, वह लड़ाई में जरूर दिखी है. बसपा प्रत्याशियों को जिस प्रकार से मत मिले हैं उससे यह स्पष्ट है कि बसपा का कोर वोटर अभी भी पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है. यह बसपा के लिए अच्छे संकेत हैं. वहीं समाजवादी पार्टी के लिए यह चिंतनीय है. सपा नेतृत्व जिस दमखम के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाह रहा था वह इस उपचुनाव में नहीं हो सका. उपचुनाव के परिणाम के लिहाज से देखा जाए तो सपा, कांग्रेस या बसपा किसी भी पार्टी की स्थिति को देखकर यह नहीं कहा जा सकता है कि 2022 में उसके लिए अच्छे संकेत मिले हैं.
स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों को ध्यान रखकर किया मतदान
उपचुनाव परिणाम को लेकर वरिष्ठ पत्रकार संजय त्रिपाठी कहते हैं कि इस चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि जो ब्राह्मण समेत सामान्य मतदाताओं को भाजपा से दूर बताया जाने लगा था, वैसी स्थिति नहीं है. ब्राह्मण आज भी भारतीय जनता पार्टी के साथ है. इसके साथ ही प्रदेश के मतदाताओं ने बहुत सूझबूझ के साथ मतदान किया है. उसने स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ राष्ट्रीय मुद्दों को भी ध्यान में रखा है. चुनाव विधानसभा का हो या लोकसभा का, स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दे भी उतने ही प्रासंगिक हैं.