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लखनऊ से जुड़े पांचों हाईवे के किनारे बढ़ा प्रदूषण, इन बीमारियां का खतरा

राजधानी को आसपास के जिलों से जोड़ रहे पांचों हाईवे पर गाड़ियों की आवाजाही बढ़ने से बीते 10 वर्षों में प्रदूषण का स्तर 70 गुना से अधिक बढ़ गया है. यह खुलासा लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग (Geology Department of Lucknow University) ओर से किए गए एक रिसर्च में सामने आया है.

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Published : Oct 15, 2022, 5:27 PM IST

लखनऊ : राजधानी को आसपास के जिलों से जोड़ रहे पांचों हाईवे पर गाड़ियों की आवाजाही बढ़ने से बीते 10 वर्षों में प्रदूषण का स्तर 70 गुना से अधिक बढ़ गया है. प्रदूषण बढ़ने से हाईवे के दोनों तरफ करीब 20 मीटर के दायरे में रह रहे आबादी पर कैंसर का खतरा काफी अधिक बढ़ गया है, इसके साथ ही वहां के पेड़ पौधों पर भी इसका काफी व्यापक असर देखने को मिला है. यह खुलासा लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग (Geology Department of Lucknow University) ओर से किए गए एक रिसर्च में सामने आया है. जिसे विभाग की ओर से इंटरनेशनल जर्नल में भी प्रकाशित किया गया है.

लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर अजय कुमार आर्या की गाइडेंस में उनकी छात्रा डॉ. विधु गुप्ता ने अपनी टीम के साथ लखनऊ को जोड़ने वाले पांचों हाईवे और उसके आसपास के क्षेत्र में बढ़ता ट्रैफिक का असर जानने के लिए रिसर्च किया था. जिसमें उन्होंने पाया कि हेवी मेटल्स जैसे कैडमियम, कॉपर, लेड, जिंक, मैकेनिज्म व आयरन के अति शूक्ष्म कण की मात्रा 63 मिली माइक्रोन से कम पाई गई है. प्रोफेसर आर्या ने बताया कि रिसर्च पेपर इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में पब्लिश हुआ है. उन्होंने बताया कि इन पांचों हाईवेज के आसपास के क्षेत्रों से करीब 50 से अधिक जगहों से सैंपल इकट्ठा किया गया था, जिसमें पाया गया कि हेवी मेटल्स की मात्रा इन क्षेत्रों में काफी अधिक है. उन्होंने बताया कि यह हैवी मेटल हवा में जमीन से कुछ फुट ऊपर तक रहते हैं. जिससे लोगों को कई तरह की घातक बीमारियां होने का खतरा काफी अधिक बढ़ गया है.

लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर अजय कुमार आर्या

प्रोफेसर ने बताया कि पांचों हाईवे के आस-पास कोई 20 मीटर के दायरे में एयर क्वालिटी की जांच की गई तो उसमें मौजूद ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स व डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुरूप नहीं पाए गए हैं. जिस कारण इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को फेफड़ों का कैंसर, त्वचा का कैंसर व सांस संबंधी बीमारियां होने का खतरा कई गुना अधिक तक बढ़ गया है. शोध छात्रा व हेमंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ विधु गुप्ता ने बताया कि रिसर्च के दौरान हमने पाया कि वातावरण में गाड़ियों के पेंट व उनके ब्रेक-शू से निकलने वाले छोटे डस्ट पाॅर्टिकल जिसमें आयरन की मात्रा बहुत अधिक है. उसकी संख्या हाईवे के दोनों तरफ करीब 20-20 मीटर में काफी अधिक है. जिसका असर वहां बने मकानों में रहने वाले लोगों व आसपास के पर्यावरण पर साफ तौर पर पड़ रहा है

यह भी पढ़ें : अव्यवस्थित इंतजाम के बीच UPSSSC की परीक्षा देने लखनऊ पहुंचे परीक्षार्थी

लखनऊ : राजधानी को आसपास के जिलों से जोड़ रहे पांचों हाईवे पर गाड़ियों की आवाजाही बढ़ने से बीते 10 वर्षों में प्रदूषण का स्तर 70 गुना से अधिक बढ़ गया है. प्रदूषण बढ़ने से हाईवे के दोनों तरफ करीब 20 मीटर के दायरे में रह रहे आबादी पर कैंसर का खतरा काफी अधिक बढ़ गया है, इसके साथ ही वहां के पेड़ पौधों पर भी इसका काफी व्यापक असर देखने को मिला है. यह खुलासा लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग (Geology Department of Lucknow University) ओर से किए गए एक रिसर्च में सामने आया है. जिसे विभाग की ओर से इंटरनेशनल जर्नल में भी प्रकाशित किया गया है.

लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर अजय कुमार आर्या की गाइडेंस में उनकी छात्रा डॉ. विधु गुप्ता ने अपनी टीम के साथ लखनऊ को जोड़ने वाले पांचों हाईवे और उसके आसपास के क्षेत्र में बढ़ता ट्रैफिक का असर जानने के लिए रिसर्च किया था. जिसमें उन्होंने पाया कि हेवी मेटल्स जैसे कैडमियम, कॉपर, लेड, जिंक, मैकेनिज्म व आयरन के अति शूक्ष्म कण की मात्रा 63 मिली माइक्रोन से कम पाई गई है. प्रोफेसर आर्या ने बताया कि रिसर्च पेपर इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में पब्लिश हुआ है. उन्होंने बताया कि इन पांचों हाईवेज के आसपास के क्षेत्रों से करीब 50 से अधिक जगहों से सैंपल इकट्ठा किया गया था, जिसमें पाया गया कि हेवी मेटल्स की मात्रा इन क्षेत्रों में काफी अधिक है. उन्होंने बताया कि यह हैवी मेटल हवा में जमीन से कुछ फुट ऊपर तक रहते हैं. जिससे लोगों को कई तरह की घातक बीमारियां होने का खतरा काफी अधिक बढ़ गया है.

लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर अजय कुमार आर्या

प्रोफेसर ने बताया कि पांचों हाईवे के आस-पास कोई 20 मीटर के दायरे में एयर क्वालिटी की जांच की गई तो उसमें मौजूद ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स व डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुरूप नहीं पाए गए हैं. जिस कारण इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को फेफड़ों का कैंसर, त्वचा का कैंसर व सांस संबंधी बीमारियां होने का खतरा कई गुना अधिक तक बढ़ गया है. शोध छात्रा व हेमंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ विधु गुप्ता ने बताया कि रिसर्च के दौरान हमने पाया कि वातावरण में गाड़ियों के पेंट व उनके ब्रेक-शू से निकलने वाले छोटे डस्ट पाॅर्टिकल जिसमें आयरन की मात्रा बहुत अधिक है. उसकी संख्या हाईवे के दोनों तरफ करीब 20-20 मीटर में काफी अधिक है. जिसका असर वहां बने मकानों में रहने वाले लोगों व आसपास के पर्यावरण पर साफ तौर पर पड़ रहा है

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