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पीजीआई इलाज के लिए आए मरीज बोले, सुबह करीब चार बजे लाइन में लगे घंटों नहीं आया नंबर - एसजीपीजीआई

प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले एसजीपीजीआई में मरीज दर-दर की ठोकर खाते हैं. चार दिन से इंतजार करने के बावजूद मरीजों को इलाज उपलब्ध नहीं हो पाता है. अन्य जिले से जो मरीज इलाज कराने के लिए आते हैं, उन्हें तमाम दिक्कत परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

अस्पताल में लगी भीड़
अस्पताल में लगी भीड़
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Published : Aug 23, 2022, 11:17 PM IST

लखनऊ : प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले एसजीपीजीआई में मरीज दर-दर की ठोकर खाते हैं. चार दिन से इंतजार करने के बावजूद मरीजों को इलाज उपलब्ध नहीं हो पाता है. अन्य जिले से जो मरीज इलाज कराने के लिए आते हैं, उन्हें तमाम दिक्कत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. शहर के जिला अस्पताल में गैस्ट्रोलॉजी डिपार्टमेंट नहीं है ऐसे में गैस्ट्रो से पीड़ित गंभीर मरीज आमतौर पर पीजीआई, केजीएमयू और लोहिया ही इलाज के लिए पहुंचते हैं. वहीं जितने भी अन्य जिले से इलाज के लिए मरीज आते हैं ज्यादातर मरीजों को पीजीआई ही रेफर किया जाता है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान मरीजों ने अपनी व्यथा बताई.



गैस्ट्रोलॉजी विभाग में पर्चा बनवाने के लिए हॉल खचाखच भरा दिखाई दिया. इस दौरान सुबह करीब चार बजे से जो मरीज लाइन में लगे हुए थे और जब हॉल के अंदर गए तो वह मरीज तभी पीछे हो गए, जो पीछे के मरीज थे आगे हो गए. ऐसे मरीजों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा. हॉल में करीब 500 से अधिक मरीज थे, जो ओपीडी में दिखाने के लिए पर्चा बनवाने के लिए खड़े थे. इस दौरान मरीज के तीमारदार लाइन में लगे थे. उनमें आपस में भी लड़ाई होने लगी. अफरा तफरी में सभी आपस में ही लड़ते झगड़ते दिखाई दिए.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला




गैस्ट्रोलॉजी विभाग में सुबह चार बजे से मरीज लाइन में लगे हैं. कानपुर से इलाज के लिए आए युवराज सिंह ने बताया कि जब पीजीआई दिखाने के लिए आते हैं तो हर बार उन्हें तीन से चार दिन यहीं फुटपाथ पर ही रात बितानी पड़ती है. पीजीआई में बढ़िया इलाज होता है यही सोचकर हम यहां पर दर दर की ठोकर खाने के लिए आते हैं. एक बार कम से कम मरीज का अच्छी तरह से इलाज हो जाएगा, लेकिन यहां आने पर इतना भगाया जाता है कि मरीज की हालत और भी ज्यादा बिगड़ जाती है. इलाज के लिए इतनी लंबी लाइन में लगकर हर बार पर्चा बनाना या फिर जांच कराना बहुत मुश्किल होता है.

अस्पताल में लगी भीड़
अस्पताल में लगी भीड़



इटावा से गैस्ट्रोलॉजी विभाग में दिखाने आए हिमांशु यादव ने बताया कि सुबह चार बजे से अस्पताल की ओपीडी में दिखाने के लिए लाइन में लगे हुए हैं, लेकिन दोपहर तक भी नंबर नहीं आया. चार बजे से यहां पर काफी ज्यादा भीड़ लगी हुई थी, उसके बाद सुबह सात बजे के करीब जब गार्ड आए हैं उन्होंने सभी पर्चा बनवाने लोगों को अंदर की तरफ जाने को कहा. जिसके बाद में जो मरीज आगे लगा था वह पीछे हो गया. ऐसे में बड़ी दिक्कत समस्या हो रही है. एक बार ओपीडी में दिखाने के बाद फिर जांच होती है फिर जांच के बाद एक पर्चा बनवाना पड़ता है. फिर डॉक्टर को दिखाना पड़ता है. ऐसे में एक लंबा प्रोसेस हो जाता है.

अस्पताल में लगी भीड़
अस्पताल में लगी भीड़

इस दौरान हिमांशु ने बताया कि जिस तरह से यहां पर मरीज परेशान होता है ऐसे किसी भी संस्थान में नहीं होता है. पीजीआई में इलाज कराने का मतलब है कि इतना मानकर चलते हैं कि सुबह से शाम तक का समय इसी में निकल जाता है. इलाज कराने के लिए चार दिन पहले से लखनऊ आना पड़ता है. इतनी इनकम भी नहीं होती है कि किसी होटल में रह लें. यहीं पीजीआई की ही सड़कों पर कहीं एक कोने बैठे रहते हैं और जब सुबह होती है तब दिखाने के लिए फिर आते हैं. ऐसे में यहां के स्टाफ और डॉक्टर को भी मरीजों की दिक्कत को समझना चाहिए.

अस्पताल में लगी भीड़
अस्पताल में लगी भीड़

शाहजहांपुर से इलाज के लिए आए अनुज कुमार सिंह ने बताया कि यहां इलाज कराने में बड़ी मशक्कत है. सुबह से काफी लंबी लाइन लगी हुई है, लेकिन अभी तक हमारा नंबर नहीं आ पाया है, जबकि हम सुबह चार बजे से ही लाइन में लगे हुए थे. बावजूद जब सभी को अंदर शिफ्ट किया गया तो उसके बाद जितने भी आगे वाले मरीज व तीमारदार थे वह पीछे लाइन में हो गए. जिसके कारण बड़ी दिक्कत परेशानी हो रही है. इस दौरान अनुज ने बताया कि जब हम अन्य जिले से लखनऊ में इलाज के लिए आते हैं तो इधर से उधर इतना भागना पड़ता है. कोई भी बताने वाला नहीं है कि कौन सी ओपीडी किस विभाग में है, कौन सी जांच कहां पर हो रही है. किसी को भी नहीं मालूम होता है कोई भी बताने वाला नहीं होता है. ऐसे में हमारा आधे से अधिक दिन इधर-उधर घूमते-घूमते ही चला जाता है.



चौक निवासी मोहम्मद नासिर ने बताया कि शहर के सभी जिला अस्पतालों में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं और न ही वहां पर कोई विभाग है. ऐसे में जितने भी गैस्ट्रो के मरीज होते हैं उन्हें केजीएमयू, पीजीआई या लोहिया ही रेफर किया जाता है. उन्होंने बताया कि उनकी माताजी को दिखाने के लिए वह बलरामपुर अस्पताल पहुंचे, लेकिन रात में ही वहां जवाब दिया गया कि आप मरीज को लेकर केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर जाइये. इसके बाद जब वह अपनी मरीज को ट्राॅमा सेंटर लेकर पहुंचे तो वहां पर बेड खाली नहीं होने की सूचना दी गई. इसके बाद वह अपनी माताजी को लेकर घर वापस आ गए. रात में ही हालत गंभीर होने के बाद अगली सुबह वह फिर केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर के लिए भागे. जहां पर इस समय उनका इलाज अभी चल रहा है, लेकिन उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं होने के कारण जिन अस्पतालों में गैस्ट्रोलॉजी विभाग है वहां पर मरीजों की संख्या काफी ज्यादा अधिक है. अस्पतालों में कोई भी स्टाफ कायदे से बात नहीं करता है.

यह भी पढ़ें : लंपी वायरस के चलते पशु मेलों का आयोजन स्थगित, मिशन मोड पर काम करेगी यूपी सरकार

एसजीपीजीआई पीआरओ कुसुम ने कहा कि उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल एसजीपीजीआई है. ऐसे में यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में मरीज इलाज के लिए आते हैं. क्योंकि शहर के अन्य अस्पतालों में गैस्ट्रोलॉजी विभाग नहीं है, जिसके कारण पीजीआई में रेफर होकर मरीज आते हैं. डॉक्टर यहां पर मरीज को देखने के लिए हैं. मरीजों की संख्या अधिक होने की वजह से कभी-कभी अत्यधिक भीड़ हो जाती है, लेकिन स्टाफ और डॉक्टर तत्परता से कार्य कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें : उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने फिर दोहराया, आप सबको पता है संगठन सरकार से बड़ा

लखनऊ : प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले एसजीपीजीआई में मरीज दर-दर की ठोकर खाते हैं. चार दिन से इंतजार करने के बावजूद मरीजों को इलाज उपलब्ध नहीं हो पाता है. अन्य जिले से जो मरीज इलाज कराने के लिए आते हैं, उन्हें तमाम दिक्कत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. शहर के जिला अस्पताल में गैस्ट्रोलॉजी डिपार्टमेंट नहीं है ऐसे में गैस्ट्रो से पीड़ित गंभीर मरीज आमतौर पर पीजीआई, केजीएमयू और लोहिया ही इलाज के लिए पहुंचते हैं. वहीं जितने भी अन्य जिले से इलाज के लिए मरीज आते हैं ज्यादातर मरीजों को पीजीआई ही रेफर किया जाता है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान मरीजों ने अपनी व्यथा बताई.



गैस्ट्रोलॉजी विभाग में पर्चा बनवाने के लिए हॉल खचाखच भरा दिखाई दिया. इस दौरान सुबह करीब चार बजे से जो मरीज लाइन में लगे हुए थे और जब हॉल के अंदर गए तो वह मरीज तभी पीछे हो गए, जो पीछे के मरीज थे आगे हो गए. ऐसे मरीजों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा. हॉल में करीब 500 से अधिक मरीज थे, जो ओपीडी में दिखाने के लिए पर्चा बनवाने के लिए खड़े थे. इस दौरान मरीज के तीमारदार लाइन में लगे थे. उनमें आपस में भी लड़ाई होने लगी. अफरा तफरी में सभी आपस में ही लड़ते झगड़ते दिखाई दिए.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला




गैस्ट्रोलॉजी विभाग में सुबह चार बजे से मरीज लाइन में लगे हैं. कानपुर से इलाज के लिए आए युवराज सिंह ने बताया कि जब पीजीआई दिखाने के लिए आते हैं तो हर बार उन्हें तीन से चार दिन यहीं फुटपाथ पर ही रात बितानी पड़ती है. पीजीआई में बढ़िया इलाज होता है यही सोचकर हम यहां पर दर दर की ठोकर खाने के लिए आते हैं. एक बार कम से कम मरीज का अच्छी तरह से इलाज हो जाएगा, लेकिन यहां आने पर इतना भगाया जाता है कि मरीज की हालत और भी ज्यादा बिगड़ जाती है. इलाज के लिए इतनी लंबी लाइन में लगकर हर बार पर्चा बनाना या फिर जांच कराना बहुत मुश्किल होता है.

अस्पताल में लगी भीड़
अस्पताल में लगी भीड़



इटावा से गैस्ट्रोलॉजी विभाग में दिखाने आए हिमांशु यादव ने बताया कि सुबह चार बजे से अस्पताल की ओपीडी में दिखाने के लिए लाइन में लगे हुए हैं, लेकिन दोपहर तक भी नंबर नहीं आया. चार बजे से यहां पर काफी ज्यादा भीड़ लगी हुई थी, उसके बाद सुबह सात बजे के करीब जब गार्ड आए हैं उन्होंने सभी पर्चा बनवाने लोगों को अंदर की तरफ जाने को कहा. जिसके बाद में जो मरीज आगे लगा था वह पीछे हो गया. ऐसे में बड़ी दिक्कत समस्या हो रही है. एक बार ओपीडी में दिखाने के बाद फिर जांच होती है फिर जांच के बाद एक पर्चा बनवाना पड़ता है. फिर डॉक्टर को दिखाना पड़ता है. ऐसे में एक लंबा प्रोसेस हो जाता है.

अस्पताल में लगी भीड़
अस्पताल में लगी भीड़

इस दौरान हिमांशु ने बताया कि जिस तरह से यहां पर मरीज परेशान होता है ऐसे किसी भी संस्थान में नहीं होता है. पीजीआई में इलाज कराने का मतलब है कि इतना मानकर चलते हैं कि सुबह से शाम तक का समय इसी में निकल जाता है. इलाज कराने के लिए चार दिन पहले से लखनऊ आना पड़ता है. इतनी इनकम भी नहीं होती है कि किसी होटल में रह लें. यहीं पीजीआई की ही सड़कों पर कहीं एक कोने बैठे रहते हैं और जब सुबह होती है तब दिखाने के लिए फिर आते हैं. ऐसे में यहां के स्टाफ और डॉक्टर को भी मरीजों की दिक्कत को समझना चाहिए.

अस्पताल में लगी भीड़
अस्पताल में लगी भीड़

शाहजहांपुर से इलाज के लिए आए अनुज कुमार सिंह ने बताया कि यहां इलाज कराने में बड़ी मशक्कत है. सुबह से काफी लंबी लाइन लगी हुई है, लेकिन अभी तक हमारा नंबर नहीं आ पाया है, जबकि हम सुबह चार बजे से ही लाइन में लगे हुए थे. बावजूद जब सभी को अंदर शिफ्ट किया गया तो उसके बाद जितने भी आगे वाले मरीज व तीमारदार थे वह पीछे लाइन में हो गए. जिसके कारण बड़ी दिक्कत परेशानी हो रही है. इस दौरान अनुज ने बताया कि जब हम अन्य जिले से लखनऊ में इलाज के लिए आते हैं तो इधर से उधर इतना भागना पड़ता है. कोई भी बताने वाला नहीं है कि कौन सी ओपीडी किस विभाग में है, कौन सी जांच कहां पर हो रही है. किसी को भी नहीं मालूम होता है कोई भी बताने वाला नहीं होता है. ऐसे में हमारा आधे से अधिक दिन इधर-उधर घूमते-घूमते ही चला जाता है.



चौक निवासी मोहम्मद नासिर ने बताया कि शहर के सभी जिला अस्पतालों में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं और न ही वहां पर कोई विभाग है. ऐसे में जितने भी गैस्ट्रो के मरीज होते हैं उन्हें केजीएमयू, पीजीआई या लोहिया ही रेफर किया जाता है. उन्होंने बताया कि उनकी माताजी को दिखाने के लिए वह बलरामपुर अस्पताल पहुंचे, लेकिन रात में ही वहां जवाब दिया गया कि आप मरीज को लेकर केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर जाइये. इसके बाद जब वह अपनी मरीज को ट्राॅमा सेंटर लेकर पहुंचे तो वहां पर बेड खाली नहीं होने की सूचना दी गई. इसके बाद वह अपनी माताजी को लेकर घर वापस आ गए. रात में ही हालत गंभीर होने के बाद अगली सुबह वह फिर केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर के लिए भागे. जहां पर इस समय उनका इलाज अभी चल रहा है, लेकिन उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं होने के कारण जिन अस्पतालों में गैस्ट्रोलॉजी विभाग है वहां पर मरीजों की संख्या काफी ज्यादा अधिक है. अस्पतालों में कोई भी स्टाफ कायदे से बात नहीं करता है.

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एसजीपीजीआई पीआरओ कुसुम ने कहा कि उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल एसजीपीजीआई है. ऐसे में यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में मरीज इलाज के लिए आते हैं. क्योंकि शहर के अन्य अस्पतालों में गैस्ट्रोलॉजी विभाग नहीं है, जिसके कारण पीजीआई में रेफर होकर मरीज आते हैं. डॉक्टर यहां पर मरीज को देखने के लिए हैं. मरीजों की संख्या अधिक होने की वजह से कभी-कभी अत्यधिक भीड़ हो जाती है, लेकिन स्टाफ और डॉक्टर तत्परता से कार्य कर रहे हैं.

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