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स्मारक और पार्क घोटाला : आरोपी सरकारी कर्मचारियों को राहत देने से हाईकोर्ट का इनकार - high court news

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्मारक और पार्क घोटाले के मामले में आरोपी सरकारी कर्मचारियों को राहत देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है, लिहाजा अब हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं बनता.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
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Published : Jul 4, 2021, 2:21 PM IST

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए हुए स्मारक और पार्क घोटाले के मामले के आरोपी सरकारी कर्मचारियों को कोई भी राहत देने से हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इनकार कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि मामले की विवेचना पूरी हो चुकी है, लिहाजा अब हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं बनता.


यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने त्रिलोकीनाथ व अन्य कर्मचारियों की याचिका पर पारित किया. याचियों के खिलाफ गोमती नगर थाने में आईपीसी की धारा 420, 120बी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) तथा 13(2) के तहत वर्ष 2014 में एफआईआर दर्ज की गई थी. याचियों ने निष्पक्ष विवेचना की मांग की थी, साथ ही अपना पक्ष रखने का मौका दिये जाने की भी मांग की गई थी. याचियों ने जांच एजेंसी को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वह याचियों की ओर से उपलब्ध कराए जा रहे दस्तावेजों को भी विवेचना में शामिल करे. इस याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरोध किया गया. सरकारी वकील ने दलील दी कि मामले की विवेचना पूर्ण हो चुकी है व जांच एजेंसी द्वारा भेजी रिपोर्ट पर राज्य सरकार अनुमोदन भी कर चुकी है. सरकारी वकील ने बताया कि 12 मार्च 2019 को सरकार ने फाइनल ड्राफ्ट रिपोर्ट को अप्रूवल दे दिया था. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अपने आदेश में कहा कि विवेचना पूर्ण हो जाने के बाद मामले में इस कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं बनता.

जानें क्या है स्मारक और पार्क घोटाला

बीएसपी सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2007 से 2012 के बीच लखनऊ और नोएडा में स्मारकों और पार्क का निर्माण किया गया था. लेकिन, साल 2013 में आई लोकायुक्त ने जांच रिपोर्ट में कहा गया कि इन स्मारकों और पार्कों के निर्माण में 14 हजार करोड़ से ज्यादा का घोटाला हुआ. जांच में कमीशन और घूसखोरी में रकम खर्च होने की बात सामने आई थी.

आपको बता दें कि, वर्ष 2007 से लेकर 2012 के बीच लखनऊ और नोएडा में पार्क और स्मारकों का निर्माण लोक निर्माण विभाग और नोएडा विकास प्राधिकरण ने कराया था. आरोप है कि स्मारकों में लगे गुलाबी पत्थरों की सप्लाई मीरजापुर से हुई थी, जबकि कागजों पर राजस्थान से दिखाया गया था. पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा भी इस मामले में आरोपी हैं.

इसे भी पढ़ें : बसपा के पूर्व सांसद दाऊद अहमद की अवैध बिल्डिंग गिराई गई, LDA ने चलाया बुलडोजर

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए हुए स्मारक और पार्क घोटाले के मामले के आरोपी सरकारी कर्मचारियों को कोई भी राहत देने से हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इनकार कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि मामले की विवेचना पूरी हो चुकी है, लिहाजा अब हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं बनता.


यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने त्रिलोकीनाथ व अन्य कर्मचारियों की याचिका पर पारित किया. याचियों के खिलाफ गोमती नगर थाने में आईपीसी की धारा 420, 120बी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) तथा 13(2) के तहत वर्ष 2014 में एफआईआर दर्ज की गई थी. याचियों ने निष्पक्ष विवेचना की मांग की थी, साथ ही अपना पक्ष रखने का मौका दिये जाने की भी मांग की गई थी. याचियों ने जांच एजेंसी को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वह याचियों की ओर से उपलब्ध कराए जा रहे दस्तावेजों को भी विवेचना में शामिल करे. इस याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरोध किया गया. सरकारी वकील ने दलील दी कि मामले की विवेचना पूर्ण हो चुकी है व जांच एजेंसी द्वारा भेजी रिपोर्ट पर राज्य सरकार अनुमोदन भी कर चुकी है. सरकारी वकील ने बताया कि 12 मार्च 2019 को सरकार ने फाइनल ड्राफ्ट रिपोर्ट को अप्रूवल दे दिया था. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अपने आदेश में कहा कि विवेचना पूर्ण हो जाने के बाद मामले में इस कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं बनता.

जानें क्या है स्मारक और पार्क घोटाला

बीएसपी सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2007 से 2012 के बीच लखनऊ और नोएडा में स्मारकों और पार्क का निर्माण किया गया था. लेकिन, साल 2013 में आई लोकायुक्त ने जांच रिपोर्ट में कहा गया कि इन स्मारकों और पार्कों के निर्माण में 14 हजार करोड़ से ज्यादा का घोटाला हुआ. जांच में कमीशन और घूसखोरी में रकम खर्च होने की बात सामने आई थी.

आपको बता दें कि, वर्ष 2007 से लेकर 2012 के बीच लखनऊ और नोएडा में पार्क और स्मारकों का निर्माण लोक निर्माण विभाग और नोएडा विकास प्राधिकरण ने कराया था. आरोप है कि स्मारकों में लगे गुलाबी पत्थरों की सप्लाई मीरजापुर से हुई थी, जबकि कागजों पर राजस्थान से दिखाया गया था. पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा भी इस मामले में आरोपी हैं.

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