कानपुरः रतौंधी एक ऐसी बीमारी है, जिससे मरीज की धीरे-धीरे आखों की रोशन चली जाती है. जेनेटिक बीमारी होने के साथ ही इसका इलाज पूरे विश्व में कहीं भी नहीं खोजा जा सका है, लेकिन अब इस बीमारी का भी इलाज हो सकेगा. कानपुर के मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान ने एक ऐसी तकनीक इजाद की है जिससे अब रतौंधी के मरीजों के आंखों की रोशनी वापस आएगी और वह दुनिया को देख सकेंगे. दो साल की शोध के बाद तैयार इस तकनीक से अभी तक ढाई सौ लोगों की आंखों की रोशनी वापस आ चुकी है.
ढाई सौ मरीजों के आंखों की रोशनी वापस आई
डॉ. परवेज खान ने बताया कि उन्होंने जब से अपनी प्रैक्टिस शुरू की उनको हमेशा से इसका खलल रहता था कि वह रतौंधी मरीजों के लिए कुछ नहीं पा रहे हैं और देखते देखते इन मरीजों की रोशानी चली जा रही है. इसी के चलते उन्होंने इस शोध की शुरुआत की और वह सफल हुए. डॉ. परवेज के अनुसार अभी तक इस शोध में शामिल 80% लोगों की आंखों की रोशनी वापस आ चुकी है.
प्लाज़्मा ग्रोथ फैक्टर से हो रहा इलाज
डॉ. परवेज खान ने बताया कि अभी तक प्लाज्मा ग्रोथ फैक्टर के जरिए लोगों के हेयर ट्रांसप्लांट, घुटनों में दर्द के इलाज के साथ अन्य कई बीमारियों में इसका उपयोग किया जाता है. इसी क्रम में जब आंखों में रतौंधी की वजह से रोशनी जाने में भी इसका उपयोग करने की सोच के साथ शोध शुरू किया, लेकिन समस्या यह थी कि यह आंखों तक पहुंचाए कैसे जाए. इसके लिए इस निडिल का इजाद कर लोगों की आंखों में इसको इंजेक्ट किया गया. जिसके नतीज़े हैरान करने वाले थे और 250 लोगों में किए गए इस टेस्ट में करीब 80 फीसदी लोगों की रोशनी वापस आ गयी.
500 से 1000 माइक्रोन साइज की है निडिल
डॉ. परवेज खान ने बताया कि इलाज में इस्तेमाल होने वाली निडिल कॉलेज में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ ने तैयार की है. यह निडिल 500 से 1000 माइक्रोन तक साइज की बनाई गई है. इसमें स्टॉप पर भी लगे हैं ताकि वह सुपर ककराइडल स्पेस तक ही जा सके. हर उम्र के मरीजों में अलग साइज की निडिल का प्रयोग किया जाता है.
इलाज पूरी तरह निशुल्क
डॉ. परवेज़ खान ने बताया कि उनकी शोध और तकनीक से अब कारगर रिजल्ट सामने आ रहे हैं. शोध के लिए हर मरीज की रिपोर्ट तैयार की जा रही है. यह इलाज पूरी तरह निशुल्क है, बस मरीज को इलाज से पहले और बाद में इआरजी टेस्ट और इलेक्ट्रो रेटिनोग्राम अपने खर्च पर करवाना होता है.
दो साल के शोध में तैयार की डोज और निडिल
डॉ. परवेज खान ने बताया कि उनकी टीम को यह डोज बनाने और निडिल तैयार करने में दो साल का समय लग गया. उन्होंने बताया कि मरीजों के प्लाज्मा की ग्रोथ फैक्टर की 5 डोज से मरीजों के आंखों के अधिकतम रौशनी लौट आयी है. पहले हमने प्लाज्मा रीच प्लेटलेट्स के ग्रोथ फैक्टर की डोज तैयार की. इसी के साथ उसे खुद डिजाइन की गई निडिल से मरीज की आंखों के सुपरा क्कराईडल स्पेस में इंजेक्ट करा दिया. इससे रेटिना के जो सेल मृत हो गयी थी, उन्हें वे बूस्ट हो गईं और लोगों की रोशनी लौट रही है.
निडिल जल्द हो जाएगा पेटेंट
डॉ. परवेज़ खान ने कहा कि इलाज की टेक्निक को मेडिकल कॉलेज की एथिक्स कमेटी ने मंजूरी दे दी है. प्लाज़्मा इंजेक्ट करने में उपयोग की गई विशेष निडिल के लिए अंतरराष्ट्रीय पेटेंट का आवेदन किया है. कमेटी में लोगों का कहना है कि यह पहले अमेरिका ने क्यों नहीं किया, डॉ. परवेज ने कहा कि जल्द ही यह शोध अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में पब्लिश हो जाएगा. इसके बाद यह आम लोगों के साथ पूरे विश्व में इसका इलाज संभव होगा.
क्या है रतौन्धी
रतौंधी जेनेटिक बीमारी है. कुछ मामले में विटामिन ए की कमी से भी होती है. इस बीमारी में आखों के रेटिना के सेल्स मरने लगते हैं. नस सूखने से धीरे-धीरे रोशनी कम हो जाती है. शुरुआत में रात में दिखना कम होता है और फिर दिन में और बाद में पूरी रोशनी चली जाती है. भारत में 10000 में 17 लोगों को रतौंधी होती है. अब तक रतौंधी में एक बार रोशनी चली जाए तो फिर लौटकर नहीं आती थी. दुनिया में सऊदी अरब में सबसे ज्यादा रतौंधी के मरीज है. इस बीमारी का खतरा सबसे ज्यादा खानदान में आपस में शादी करने से होता है. भारत में सबसे ज्यादा रतौंधी के मरीज यूपी, बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में है.