गोरखपुर: आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने "करो या मरो" का नारा देते हुए स्वतंत्रता आंदोलन (freedom movement in Gorakhpur) का बिगुल बजाया था, तो इसकी गूंज मुंबई से लेकर गोरखपुर के सहजनवां तक पहुंची थी. हजारों की संख्या में क्रांतिकारी गोरखपुर के डोहरिया कला बाग (Dohria Kala Bagh of Gorakhpur) के पास इकठ्ठा हुए और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया था.
तत्कालीन कलेक्टर एमएम मास के आदेश पर भीड़ के ऊपर गोलियां चलाईं गई थीं, जिसमें 9 क्रांतिकारी शहीद (9 people martyred in rebellion of British rule) हो गए थे और करीब 6 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. इसका फायदा उठाकर फिरंगियों ने गांव में आग लगा दी थी, जिससे कोहराम मच गया था. लेकिन झमाझम बारिश से अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा और गांव के लोगों की जान बच गई. डोहरिया कांड का असर आंदोलन भी पड़ा था.
सन् 1942 को महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत से देश को मुक्त कराने के लिए मुंबई में करो या मरो और अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देकर स्वतंत्रता आंदोलन का आगाज किया था. बापू के इस आह्वान पर देश के नौजवान से लेकर हर वर्ग के लोग अपनी मातृभूमि की आजादी में कूद पड़े थे. देश में बढ़ते आंदोलन के बीच सहजनवां में थाना, डाकखाना और रेलवे स्टेशन को फूंकने की तैयारी चल रही थी. सहजनवां से लगभग तीन किमी की दूरी पर स्थित डोहरिया कला बाग के पास क्षेत्रीय लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. यहां लोग हजारों की संख्या में इकठ्ठे हुए थे. वहीं, तत्कालीन थानेदार एनुलहक और परगना हाकिम, साहब बहादुर आंदोलनकारियों को जबरन पीछे करने का प्रयास करने लगे थे, लेकिन आजादी के दीवाने पीछे हटने को तैयार नहीं हुए थे. इसी वजह से कलेक्टर एमएम मास ने थानेदार को क्रांतिकारियों के ऊपर गोली बरसाने का हुक्म दे दिया था.
क्रांतिकारियों के खून के प्यासे अंग्रेज सिपाही बस एक इशारे पर भीड़ के ऊपर अंधाधुंध गोली चलाने लगे थे. गोली कांड में देश को आजादी दिलाने के लिए नौ वीर सपूतों ने अपनी कुर्बानी दे दी थी. गोलीबारी में कई राष्ट्रभक्त शहीद हो गए थे. इसी तांडव के बीच तेज बारिश होने से गांव में लगी आग बुझ गई थी. वहीं, अंग्रेजी हुकूमत को वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा थी, हालांकि बाद में न्यायालय से 15 लोगों को दंडित किया गया था.
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