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एससी/एसटी अधिनियम में मजिस्ट्रेट को कार्रवाई का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट - एससी/एसटी अधिनियम इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 156(3) की अर्जी पर मजिस्ट्रेट को कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है. शिकायतकर्ता को एफआईआर दर्ज कराने के लिए एसएचओ से संपर्क करना चाहिए.

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Published : Apr 12, 2022, 8:16 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 156(3) की अर्जी पर मजिस्ट्रेट को कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है. धारा 14(1) के तहत ही विशेष अदालत को कार्रवाई करने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत को भी नियम 5(1) के तहत शिकायत को शिकायत प्रकरण मानकर सुनवाई करने का अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने ऐसे मामले, जिनमें मजिस्ट्रेट या विशेष अदालत ने इस्तगासा मानकर कार्रवाई की थी, विधि के विपरीत करार देते हुए रद्द कर दिया. अदालत ने शिकायतकर्ता से कहा कि वो संबंधित एसएचओ से शिकायत कर एफआईआरदर्ज कराएं. वो एसपी से भी शिकायत कर सकते हैं. सीधे विशेष अदालत को आपराधिक केस कायम कर कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है.

यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने सोनभद्र की सोनी देवी सहित विभिन्न जिलों की छह याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया. याची का कहना था कि मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता एससी-एसटी की अर्जी पर कंप्लेंट केस दर्ज कर सम्मन जारी करने का अधिकार नहीं है, इसलिए केस रद्द किया जाए.
ये भी पढ़ें- सीएम आवास की दीवार फांदने के दौरान गिरने से फरियादी की मौत

याचियों पर अनुसूचित जाति के लोगों के साथ मारपीट, झगड़ा करने, उनकी जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप है. शिकायतकर्ता की एफआईआर दर्ज नहीं की गई, तो उसने मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी. इसमें आपराधिक केस कायम करके कार्रवाई की गयी. इसकी वैधता को चुनौती दी गई थी.

कोर्ट ने कहा विशेष कानून के कारण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 के मजिस्ट्रेट को मिले अधिकार अपने आप समाप्त हो जायेगा. विशेष कानून के उपबंध लागू होंगे.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 156(3) की अर्जी पर मजिस्ट्रेट को कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है. धारा 14(1) के तहत ही विशेष अदालत को कार्रवाई करने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत को भी नियम 5(1) के तहत शिकायत को शिकायत प्रकरण मानकर सुनवाई करने का अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने ऐसे मामले, जिनमें मजिस्ट्रेट या विशेष अदालत ने इस्तगासा मानकर कार्रवाई की थी, विधि के विपरीत करार देते हुए रद्द कर दिया. अदालत ने शिकायतकर्ता से कहा कि वो संबंधित एसएचओ से शिकायत कर एफआईआरदर्ज कराएं. वो एसपी से भी शिकायत कर सकते हैं. सीधे विशेष अदालत को आपराधिक केस कायम कर कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है.

यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने सोनभद्र की सोनी देवी सहित विभिन्न जिलों की छह याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया. याची का कहना था कि मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता एससी-एसटी की अर्जी पर कंप्लेंट केस दर्ज कर सम्मन जारी करने का अधिकार नहीं है, इसलिए केस रद्द किया जाए.
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याचियों पर अनुसूचित जाति के लोगों के साथ मारपीट, झगड़ा करने, उनकी जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप है. शिकायतकर्ता की एफआईआर दर्ज नहीं की गई, तो उसने मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी. इसमें आपराधिक केस कायम करके कार्रवाई की गयी. इसकी वैधता को चुनौती दी गई थी.

कोर्ट ने कहा विशेष कानून के कारण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 के मजिस्ट्रेट को मिले अधिकार अपने आप समाप्त हो जायेगा. विशेष कानून के उपबंध लागू होंगे.

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