ETV Bharat / briefs

जिनसे मिली जिले को पहचान, उनके सपने नहीं हो रहे पूरे - tanda news

अंबेडकरनगर के टाण्डा की पहचान बुनकरों से है. यहां बने कपड़े की देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मांग है, लेकिन दूसरी तरफ बुनकर नगरी को पहचान दिलाने वाले हुनरमंदों की हालत खस्ता है.

हुनरमंदों की हालत खस्ता.
author img

By

Published : Feb 27, 2019, 12:09 PM IST

अंबेडकरनगर : देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी टाण्डा की पहचान बुनकर नगरी के रूप में है और यहां से बना कपड़ा विदेशों में भी जाता है, लेकिन बुनकर नगरी को पहचान दिलाने वाले हुनरमंदों की हालत खस्ता है. दिन-रात मेहनत करने के बावजूद बुनकर सिर्फ दो वक्त की रोटी की ही व्यवस्था कर पा रहे हैं.

हुनरमंदों की हालत खस्ता.

एक शताब्दी पहले गुलाम भारत में टाण्डा में कपड़ा बुनाई का कार्य शुरू कर दिया था. टाण्डा हथकरघा उद्योग की पहचान बन गया. जैसे-जैसे समय परिवर्तन हुआ इस उद्योग का स्थान पावरलूम ने ले लिया और बड़े पैमाने पर कपड़ा बुनाई का कार्य होने लगा. धीरे-धीरे टाण्डा की पहचान बुनकर नगरी के रूप में होने लगी. समय के साथ कपड़ा व्यवसाय में परिवर्तन तो हुआ, लेकिन इसमें लगे मजदूरों के रहन-सहन और जीवन शैली में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. 12 घण्टे की मेहनत के बाद केवल दो जून की रोटी की ही व्यवस्था हो पाती है.

कपड़ा बुनाई के व्यवसाय में लगे मजदूरों का कहना है कि अब भी उन्हें दिहाड़ी मिलती है. यदि बिजली है तो कार्य होगा और मजदूरी मिलेगी और यदि बिजली न आई तो उस दिन की दिहाड़ी गायब, मुश्किल से दिन में 200 से 300 रुपये की कमाई हो पाती है. जिससे केवल पेट भरा जा सकता है, इस कमाई से बच्चों की पढ़ाई और उनके सपनों को पूरा करना सपने जैसा है.

undefined

अंबेडकरनगर : देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी टाण्डा की पहचान बुनकर नगरी के रूप में है और यहां से बना कपड़ा विदेशों में भी जाता है, लेकिन बुनकर नगरी को पहचान दिलाने वाले हुनरमंदों की हालत खस्ता है. दिन-रात मेहनत करने के बावजूद बुनकर सिर्फ दो वक्त की रोटी की ही व्यवस्था कर पा रहे हैं.

हुनरमंदों की हालत खस्ता.

एक शताब्दी पहले गुलाम भारत में टाण्डा में कपड़ा बुनाई का कार्य शुरू कर दिया था. टाण्डा हथकरघा उद्योग की पहचान बन गया. जैसे-जैसे समय परिवर्तन हुआ इस उद्योग का स्थान पावरलूम ने ले लिया और बड़े पैमाने पर कपड़ा बुनाई का कार्य होने लगा. धीरे-धीरे टाण्डा की पहचान बुनकर नगरी के रूप में होने लगी. समय के साथ कपड़ा व्यवसाय में परिवर्तन तो हुआ, लेकिन इसमें लगे मजदूरों के रहन-सहन और जीवन शैली में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. 12 घण्टे की मेहनत के बाद केवल दो जून की रोटी की ही व्यवस्था हो पाती है.

कपड़ा बुनाई के व्यवसाय में लगे मजदूरों का कहना है कि अब भी उन्हें दिहाड़ी मिलती है. यदि बिजली है तो कार्य होगा और मजदूरी मिलेगी और यदि बिजली न आई तो उस दिन की दिहाड़ी गायब, मुश्किल से दिन में 200 से 300 रुपये की कमाई हो पाती है. जिससे केवल पेट भरा जा सकता है, इस कमाई से बच्चों की पढ़ाई और उनके सपनों को पूरा करना सपने जैसा है.

undefined
Intro:UP-AMBEDKAR NAGAR-ANURAG CHAUDHARY
SLUG-BUNKAR
VISUAL-

स्पेशल स्टोरी

एंकर-देश मे ही नही अपितु विदेशों में भी टाण्डा की पहचान बुनकर नगरी के रूप में है और यहाँ से बना कपड़ा विदेशों में भी जाता है लेकिन इस बुनकर नगरी को पहचान दिलाने वाले हुनरमंदों की हालत खस्ताहाल है ,दिन रात मेहनत करने के बावजूद भी बुनकर मजदूर सिर्फ दो वक्त की रोटी की ही ब्यवस्था कर पा रहे हैं ,आज भी इन मजदूरों के बच्चों के ख्वाब स्वप्न्न बन कर ही रह गए हैं।


Body:vo-एक शताब्दी पहले गुलाम भारत मे ही जनपद के टाण्डा नगरी में कपड़ा बुनाई का कार्य पींगे भरना शुरू कर दिया था और हथकरघा उधोग की पहचान बन गयी थी ,जैसे जैसे समय परिवर्तन हुआ इस उधोग का स्थान पॉवर लूम ने ले लिया और बड़े पैमाने कपड़ा बुनाई का कार्य बड़े पैमाने होने लगा और धीरे धीरे टाण्डा की पहचान बुनकर नगरी के रूप में होने लगी ,समय के साथ कपड़ा ब्यवसाय में परिवर्तन तो गया लेकिन इसमें लगे मजदूरों के रहन सहन और जीवन शैली में कोई परिवर्तन नही हुआ 12 घण्टे की मेहनत के बाद केवल दो जून के रोटी की ही ब्यवस्था हो रही है।


Conclusion:vo-कपड़ा बुनाई के ब्यवसाय में लगे मजदूरों का कहना है कि अब भी उन्हें दिहाड़ी की मजदूरी मिलती है यदि बिजली है तो कार्य होगा और मजदूरी मिलेगी और यदि बिजली न आई तो उस दिन की दिहाड़ी गायब ,मुश्किल से दिन में दो तीन सौ रुपये की कमाई हो पाती है जिससे केवल पेट भरा जा सकता है इस कमाई से बच्चों की पढ़ाई और उनके सपने पूरा करना नामुमकिन हो रहा है।

अनुराग चौधरी
अम्बेडकरनगर
9451734102
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.