लखनऊ: नाका हिंडोला स्थित श्री गुरु सिंह सभा ऐतिहासिक गुरुद्वारा में 16 मई को छोटे घल्लू घारे में शहीद हुए सिक्खों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए. इसके अलावा सरबत के भले की अरदास भी की गई. कार्यक्रम कोविड-19 की गाइडलाइन के अनुसार किया गया.
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घल्लू घारे की कथा सुनाई
मुख्य ग्रन्थी ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने छोटे घल्लू घारे में शहीद हुए सिक्खों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि दरबार साहिब की बेअदबी करने वाले मस्सा रंगड़ (एक मुगल सेनापति) को दो सिक्ख योद्धा भाई सुखा सिंह और भाई मेहताब सिंह ने दंडित किया. 1740 के दौरान गहरे जंगलों में छिपे सिखों का मनोबल बढ़ाया.
मुगल शासक नाराज हुए
मुगल शासक इस घटना से बहुत नाराज हुए. वो लोग सिक्खों को किसी भी कीमत पर खत्म करने के लिए तैयार थे. दीवान लखपत राय और दीवान जसपत राय मुगल गवर्नर याहिया खान के साथ दरबारी भाई सिक्खों को खत्म करने में अधिक सक्रिय थे. गुजरांवाला के पास मुगल सेना की सिक्खों के साथ लड़ाई में जसवंत राय मारा गया.
मुगल सेना ने सिक्खों को घेरा
अपने भाई की मृत्यु से चिढ़कर लखपत राय ने सिक्खों को पकड़ने के लिए हर कोशिश की. उन्हें पकड़ कर लाहौर लाया गया. क्रूरतापूर्वक अत्याचार किया गया और गुरुद्वारा शहीदगंज साहिब के नाम से जाना जाने वाले स्थान पर मौत की सजा दी. परेशानी और अपनी शक्ति को भांपते हुए सिक्ख कहनुवां से शुरू होकर ब्यास नदी के घने घने जंगलों में चले गए. लखपत राय के साथ मुगलों की बड़ी सेना थी, उसने पूरे क्षेत्र को घेर लिया.
7000 सिक्ख शहीद हुए
सिक्खों ने कुछ समय तक इसका विरोध किया और फिर ब्यास की नदी पट्टी की ओर बढ़ गए. सिक्खों को भागने से रोकने के लिए मुगल सेना ने जंगल में आग लगा दी. हर जगह भयंकर युद्ध हुआ. लगभग 7000 सिक्ख शहीद हुए और 3000 को मुगल सेना ने पकड़ लिया. पकड़े गए सिक्खों को लाहौर लाया गया. सड़कों पर परेड कराई गई और फिर मौत के घाट उतार दिया गया.
गुरुवाणी का घर में ही करें पाठ
दीवान की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने छोटे घल्लू घारे में शहीद हुए सिक्खों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए. उन्होंने कहा कि शासन द्वारा जारी कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए घरों में गुरुवाणी का पाठ एवं सिमरन करें. कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह ‘मीत’ ने किया. उसके उपरान्त गुरु का कड़ाह प्रसाद संगत में वितरित किया गया.